पहचान की सियासत, विचारों का जोर: बिहार 2025 का रण

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kmSudha

तीसरा पक्ष आलेखबिहार

तीसरा पक्ष ब्यूरो : बिहार के सियासी जमीन पर 2025 के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. इस बार का रण केवल सत्ता के कुर्सी का खेल नहीं, बल्कि पहचान की सियासत और विचारों की जंग का अनूठा संगम है.जातिगत समीकरण, विकास के वादे, और बदलाव की बयार—सब कुछ इस चुनावी रणक्षेत्र में एक साथ उभर कर सामने आ रहा है.

जाति और पहचान का जटिल समीकरण

बिहार के राजनीति में जाति हमेशा से एक बड़ा फैक्टर रहा है. इस बार भी पार्टियां जातिगत गणित को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा हैं. एनडीए, जिसमें बीजेपी और जेडी(यू) प्रमुख हैं, अपनी “सबका साथ, सबका विकास” की नीति को आगे रख रहा है, लेकिन पिछड़ा-अति पिछड़ा और दलित वोटों को साधने के लिए विशेष रणनीति बनाई जा ही है. केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने हाल ही में कहा की नीतीश कुमार का 20 साल का साथ दिल का साथ है, और 2025 में एनडीए भारी बहुमत से सरकार बनाएगी.
वहीं, महागठबंधन, जिसमें आरजेडी और कांग्रेस शामिल हैं, युवा नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यादव, मुस्लिम, और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वोटों को एकजुट करने की कोशिश में लगे हुये है. तेजस्वी ने हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए कहा की इस बार बिहार की जनता एनडीए की खटारा गाड़ी को बदलने जा रहा है.2025 में महागठबंधन की सरकार बनेगी.

इस बीच, जनसुराज जैसे नए खिलाड़ी भी मैदान में हैं. यह नया राजनीतिक मंच जातिगत राजनीति से हटकर विकास और सुशासन के मुद्दे पर जोर दे रहा है.जनसुराज की रैलियों में उमड़ रही भीड़ बिहार में बदलाव की चाहत को दर्शाती है.

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विचारों का टकराव: विकास बनाम सुशासन

स चुनाव में विचारधाराओं का टकराव भी साफ दिख रहा है. नीतीश कुमार की सरकार सुशासन और पिछले दो दशकों के विकास कार्यों को अपनी उपलब्धि बता रहा है. बिहार सरकार के मंत्री राजू सिंह ने दावा किया, “2025 में हमारा नारा है—225 सीटें.” दूसरी ओर, महागठबंधन बेरोजगारी, महंगाई, और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को उठाकर जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है. तेजस्वी यादव ने कहा की बिहार में गरीबों का राज स्थापित होगा.

कांग्रेस भी इस बार बिहार में अपनी रणनीति को मजबूत करने में लगा हुआ है. वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार, कांग्रेस का प्लान टेबल पर भले ही मजबूत दिखे, लेकिन उसे जमीनी स्तर पर उतारना चुनौतीपूर्ण है.

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जनता की पुकार: बदलाव या स्थिरता?

बिहार की जनता इस बार बदलाव और स्थिरता के बीच किसी एक को चुनने के लिए तैयार है. एक तरफ नीतीश कुमार की स्थापित छवि और एनडीए का संगठित ढांचा है, तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की युवा ऊर्जा और जनसुराज जैसे नए विकल्प हैं.सोशल मीडिया पर भी इस चुनाव को लेकर चर्चा जोरों पर है.कुछ यूजर्स का मानना है कि नीतीश सरकार के खिलाफ जनता में गुस्सा है, और यह 2025 में बूथ पर दिखेगा.

निष्कर्ष

बिहार का 2025 का चुनाव केवल सियासी दलों की जीत-हार का मसला नहीं है.यह पहचान की सियासत और विचारों के जोर का एक ऐसा रण है, जो बिहार के भविष्य को नई दिशा दे सकता है. जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आएगी, यह साफ होगा कि बिहार की जनता बदलाव की लहर पर सवार होगी या स्थिरता को चुनेगी.

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