बिहार बदलाव रैली : प्रशांत किशोर बिहार विधानसभा चुनाव में कितना बड़ा फैक्टर

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kmSudha

तीसरा पक्ष आलेखबिहार

जन सुराज की रैली का टैगलाइन ‘फैसला तो गांधी मैदान में ही होगा‘ प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति को कितना बदल पाएंगे ?

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना : प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी की ‘बिहार बदलाव रैली’ (11 अप्रैल 2025, पटना) बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में चर्चा का विषय रही,, जिसमें बिहार के कई जिलों से अच्छी संख्या में लोग पहुंचे थे लेकिन यह भीड़ उम्मीद के मुताबिक नहीं रही.‘बिहार बदलाव रैली’ को लेकर जन सुराज ने दावा किया था कि यह बिहार की राजनीति में नया मोड़ लाएगी. लेकिन कम भीड़ और संगठनात्मक कमजोरी के कारण यह अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ पाई. रैली को लेकर उनकी ओर से बड़े दावे किए गए थे, जैसे 10 लाख लोगों की भीड़ जुटाने का, पर वास्तव में भीड़ अपेक्षा से काफी कम रही—कुछ अनुमानों के अनुसार 50 हजार से भी कम. इसे कई विश्लेषकों ने उनकी राजनीतिक ताकत की कमी के रूप में देखा.सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं थीं—कुछ ने इसे फ्लॉप बताया, तो कुछ ने इसे शुरुआती प्रयास के रूप में देखा. इस रैली का नेतृत्व जन सुराज के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने किया.

रैली में युवाओं की भारी भागीदारी देखी गई, जो इस आयोजन को और खास बनाती है. गांधी मैदान को पोस्टरों, बैनरों और जन सुराज के झंडों से सजाया गया था. मंच पर प्रशांत किशोर के साथ पार्टी के कई प्रमुख नेता मौजूद थे, जिन्होंने बिहार के विकास के लिए अपनी योजनाओं को जनता के सामने रखा.

प्रशांत किशोर ने क्या कहा ?

रैली का टैगलाइन ‘फैसला तो गांधी मैदान में ही होगा‘ बिहार के लोगों में खासा उत्साह पैदा कर रहा था. हलाकि यह रैली दोपहर 2 बजे से शुरू होनी थी लेकिन काम भीड़ की वजह से समय आगे बढ़ता गया और लगभग शाम को इस रैली में बिहार के कोने-कोने से लोग पहुंचे.

प्रशांत किशोर ने अपने संबोधन में बिहार की बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पलायन जैसे ज्वलंत मुद्दों को उठाया और इसे खत्म करने के लिए एक नए विकल्प की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “बिहार को अब वादों की नहीं, काम की जरूरत है. जन सुराज इस बदलाव का मंच बनेगा“.

प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि इसी जगह से मुझे पुलिस ने हिरासत में लिया था और उस समय मैंने घोषणा किया था कि मैं गाँधी मैदान फिर लौटूंगा. उन्होंने नीतीश कुमार पर हमले बोलते हुए कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक श्राद्ध साबित होगा. प्रशांत किशोर ने दावा किया कि बिहार के अपेक्षित विकाश नहीं होने तथा राज्य के लोगों में बेरोजगारी और पलायन के लिए नीतीश कुमार, लालू यादव और प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ये सभी जिम्मेदार है.

प्रशांत किशोर ने प्रशासन को अव्यव्श्था का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि एक बार फिर प्रशासन ने मुझे अपने समर्थकों से बातचीत करने से रोकने की सरकार के इसारे पर गहरी साजिश रची.उन्होंने जनता से माफ़ी मांगते हुए कहा कि मैं अब से 10 दिनों के भीतर फिर से यात्रा शुरू करूंगा आप से दरवाजे पर मिलूंगा

जन सुराज और बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण:

बिहार की राजनीति में जाति का बड़ा रोल है. प्रशांत किशोर ने दलित और मुस्लिम समुदायों को साधने की कोशिश की, जैसे दलित नेता मनोज भारती को पार्टी का चेहरा बनाकर. लेकिन,RJD और JD(U) का इन समुदायों पर मजबूत आधार उनकी राह में चुनौती है. प्रशांत किशोर ने 2022 से जन सुराज अभियान शुरू किया और बिहार में 5,000 किमी की पदयात्रा की. इसके बावजूद, उनकी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा अभी कमजोर है, खासकर दक्षिण बिहार जैसे क्षेत्रों में. 2024 के उपचुनावों में जन सुराज को चार सीटों पर केवल 10% वोट मिले, जो सम्मानजनक है, लेकिन जीत से कोसों दूर. यह दर्शाता है कि उनकी अपील अभी तक बड़े पैमाने पर जनाधार में नहीं बदली.

प्रशांत किशोर ने शिक्षा, रोजगार, भ्रष्टाचार, और शराबबंदी जैसे मुद्दों को उठाया, जो बिहार की जनता से जुड़े हैं. खासकर शराबबंदी को हटाने की उनकी मांग ने ध्यान खींचा, फिर भी, इन मुद्दों को जन आंदोलन में बदलने में वे पूरी तरह सफल नहीं हुए.

प्रशांत किशोर की आगे की राह

बिहार बदलाव रैली के बाद प्रशांत किशोर की आगे की राह आसान नहीं दिख रही है. परन्तु,बिहार विधान सभा चुनाव 2025 में कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह रैली जन सुराज पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो बिहार की दो ध्रुवीय राजनीति (एनडीए और महागठबंधन) के बीच तीसरे विकल्प के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है.

प्रशांत किशोर बिहार विधानसभा चुनाव में एक उभरता हुआ फैक्टर तो हैं, लेकिन अभी वे नीतीश कुमार, लालू यादव, या BJP जैसे स्थापित दलों को सीधे टक्कर देने की स्थिति में नहीं दिखते. उनकी रणनीति और मुद्दे कुछ हद तक युवाओं और बदलाव चाहने वालों को आकर्षित कर सकते हैं, पर संगठनात्मक कमजोरी और जमीनी आधार की कमी उनके प्रभाव को सीमित करती है. रैली के बाद उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे हैं. अगर वे अगले कुछ महीनों में संगठन को मजबूत कर पाए और स्थानीय नेताओं को जोड़ पाए, तो वे कुछ सीटों पर प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर सत्ता हासिल करना अभी दूर की कौड़ी लगता है.

नोट: यह विश्लेषण उपलब्ध जानकारी और हाल के रुझानों पर आधारित है। बिहार की राजनीति गतिशील है,और अगले कुछ महीनों में राजनीति किधर करवट लेगी उसका हमें इंतजार करना होगा।

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