भारतीय संविधान, केंद्र सरकार और आरक्षण

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kmSudha

तीसरा पक्ष आलेखभारत

डॉ. विलक्षण रविदास की कलम से

भारतीय संविधान, केंद्र सरकार और आरक्षण

आज का ही वह काला दिन है जबकि दिनांक 08.01.2019 को आरएसएस के अंध भक्त मोदी की सरकार ने भारतीय संविधान पर जबरदस्त हमला करते हुए 15% सवर्ण जातियों के लिए 10% आरक्षण के बिल को संसद से पास करवाने में सफलता प्राप्त की थी। 54% की आबादी वाले पिछड़े वर्गों के लिए मात्र 27 % आरक्षण है और वह भी क्रीमीलेयर को लागू करते हुए।
हम सभी जानते हैं कि सामान्य श्रेणी (सवर्ण ) में आरक्षण को लागू करने के लिए किसी भी आयोग का गठन नहीं किया गया था और न ही सामाजिक- आर्थिक सर्वेक्षण करवाया गया था। मोदी ने बिल्कुल मनमानी करते हुए आरक्षण देने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15.4और 16.4 के प्रावधानों में वर्णित सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार को दरकिनार कर सवर्ण जातियों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू कर दिया। इस आरक्षण के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट के दशकों से लागू निर्णय को ठेंगा दिखाते हुए आरक्षण की सीमा 50%से बढ़ा कर 60%कर दिया गया ।
संविधान पर सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1951ई में हमला किया था जबकि तमिलनाडु में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्गों के लिए 68% आरक्षण लागू किया गया।जब उस कानून को सुप्रीम कॉर्ट में वहां के एक ब्राह्मण तथाकथित हिन्दू ने चुनौती दी थी तो कोर्ट का फैसला आया था कि 50% से अधिक आरक्षण देना संविधान के विरुद्ध है, इसलिए केवल 50% ही आरक्षण दिया जा सकता है। पुनः सुप्रीम कोर्ट ने उसी के अनुरूप 1993 ई में मंडल कमीशन की सिफारिशों के अनुरूप पिछड़े वर्गों के लिए लागू हुए आरक्षण में आर्थिक आधार को जोड़ते हुए क्रीमीलेयर को भी लगा दिया गया जो संविधान के अनुच्छेद 15.4 और 16.4 पर हमला था।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की ब्राह्मणवादी मनोवृत्ति को भांप कर ही मोदी सरकार ने आरएसएस के एजेंडे को लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर के 370 अनुच्छेद पर हमला किया है और आतंकवाद के नाम पर पूरे कश्मीर को तहस-नहस करने का कदम उठाया है। इसके साथ ही मोदी सरकार एन आर सी को पूरे भारत में लागू करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून संसद से पास कराया है ताकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्गों एवं मुसलमानों की 70% अशिक्षित-अनपढ आबादी को वैध पेपर की कमी के कारण राजनीतिक अधिकारों,आर्थिक सुविधाओं एवं मानसिक- शारीरिक तौर पर उत्पीड़न किया जा सके और नागरिकता से अलग किया जा सके।
इस कानून से नागरिकता देने सम्बन्धी संविधान के अनुच्छेद 5 से 8 का घोर उल्लंघन हुआ है क्योंकि उसमें कहीं भी धर्म के आधार पर नागरिकता देने का उल्लेख नहीं है। इस कानून से अनुच्छेद 14 और 21 के प्रावधानों का भी घोर उल्लंघन होता है जिसमें सभी व्यक्तियों के लिए समानता और सम्मानपूर्ण जीवन संरक्षण की गारंटी के प्रावधान हैं, चाहे वे भारत के नागरिक हों या फिर विदेशों से आए हुए शरणार्थी।
लेकिन मोदी और शाह सहित सभी मंत्रीगण दिन-रात झूठ बोलते रहे हैं कि यह कानून नागरिकता देने के लिए है। तो फिर इस कानून में धर्म के आधार पर विभेद करते हुए केवल तीन ही देशों को क्यों चुना गया है?लंका,वर्मा, नेपाल के नाम क्यों नहीं हैं?मुसलमानों, तमिलों एवं अन्य शरणार्थियों को क्यों छोड़ दिया गया है?दरअसल ये आर एस एस के गुर्गे इस देश के संविधान के विरोधी हैं, ये इस देश के मूलनिवासी बहुजन समाज के दुश्मन हैं ,ये लोग महिलाओं के विरोधी हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों एवं व्यवस्था के दुश्मन हैं।
इसी का नतीजा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर ये लाठी चार्ज करवाते हैं, गोली चलवाते हैं, विश्व विद्यालय पर अपने गुंडों और पुलिस के द्वारा हमले करवाते हैं। जामिया मिल्लिया विवि , अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जेएनयू पर हुए हमलों से तो इनका दंगाई चेहरा बिल्कुल बेनकाब हो गया है।ऐसा करते हुए इन्हें लज्जा भी नहीं आती है, क्योंकि सदियों से इनके हाथ मूलनिवासी बहुजन समाज के निर्दोष लोगों के खून से रंगे हुए हैं।हिंसा, शोषण और उत्पीड़न इनकेे खून में सम्मिलित है। इनके खिलाफ हमें लगातार अहिंसक लोकतांत्रिक संघर्ष एवं युद्ध करना ही होगा।
तो आइए, संविधान और देश को बचाने के लिए एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए हम तब तक संघर्ष करें जब तक कि ब्राह्मणवादी भाजपा और आरएसएस को सत्ता एवं समाज से उखाड़ कर फेंक सकेंगे।

विलक्षण रविदास,बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन, बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच, सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार .

(यह आलेख लेखक का निजी विचार पर आधारित है। तीसरा पक्ष -एक हस्तक्षेप का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई सम्बन्ध नहीं है। लेखक प्रोफेसर के साथ साथ कई संगठनों से जुड़े है और सामाजिक कार्यकर्त्ता भी हैं।)

 

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