तीसरा पक्ष ब्यरो : बिहार के राजनितिक सियासी जमीन पर 2025 का विधानसभा चुनाव एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव के लिए अग्निपरीक्षा बनने जा रहा है.महागठबंधन के नेतृत्व में तेजस्वी यादव न केवल नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के मजबूत गठबंधन को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि अपनी पार्टी और गठबंधन के भीतर की आंतरिक चुनौतियों से भी जूझ रहे हैं. सवाल यह है कि क्या तेजस्वी इस बार बिहार में महागठबंधन की सत्ता में वापसी करा पाएंगे?
तेजस्वी का मिशन 2025
तेजस्वी यादव ने 2025 के बिहार विधान सभा चुनाव को बिहार के लिए परिवर्तन का साल बता रहे है. हाल ही में पटना में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने दावा किया, की 2025 में बिहार की जनता खटारा सरकार को उखाड़ फेक देगी. हमारी सरकार निष्पक्ष परीक्षाएं, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा-कृषि में बिहार को नंबर वन बनाने का लक्ष्य लेकर आएगी.उनका फोकस युवा वोटरों, बेरोजगारी, और पेपर लीक जैसे मुद्दों पर है. बीपीएससी पेपर लीक और छात्रों पर लाठीचार्ज जैसे विवादों को तेजस्वी ने नीतीश सरकार के खिलाफ हथियार बनाया है. उन्होंने कहा, “हमारे शासन में पेपर लीक नहीं होता था. नीतीश जी जवाब क्यों नहीं देते?”
महागठबंधन की चुनौतियां
महागठबंधन के सामने भी कई चुनौतियां हैं. सबसे बड़ी है गठबंधन के भीतर एकता की कमी. कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे को लेकर तनाव की खबरें सामने आई हैं.पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने हाल ही में दावा किया था की “बिहार में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में होगी,” जिसे तेजस्वी के नेतृत्व को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है.
इसके अलावा, 2024 के उपचुनाव में चार में से तीन सीटें गंवाने के बाद महागठबंधन की रणनीति पर सवाल भी उठा है. खासकर, बेलागंज और रामगढ़ जैसी सीटों पर हार ने तेजस्वी की रणनीति को कठघरे में खड़ा किया है.
नीतीश कुमार का पलटवार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए गठबंधन ने तेजस्वी के दावों को खारिज किया है. जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, “लालू जी और तेजस्वी का समय खत्म हो चुका है. बिहार की जनता विकास चाहती है, न कि जातिवाद और कुशासन. एनडीए 225 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रहा है.नीतीश अपनी महिला संवाद यात्रा और शराबबंदी जैसे मुद्दों के जरिए महिला वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे है. वहीं, दूसरी ओर भाजपा भी हिंदू स्वाभिमान यात्रा जैसे अभियानों के जरिए अपने कोर वोटरों को मजबूत करने में लगा हुआ है.
तेजस्वी की रणनीति
तेजस्वी यादव ने अपनी कार्यकर्ता दर्शन संवाद यात्रा के जरिए बिहार के कोने-कोने में पहुंचने की योजना बनाई है. उनकी रणनीति में मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और दलित वोटरों को जोड़ना शामिल है. हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राजपूत वोटरों का समर्थन खोने से आरजेडी को नुकसान हो सकता है.
तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर भी अपनी मौजूदगी मजबूत किये है .उनके पोस्टरों में “नौकरी, शिक्षा, और स्वास्थ्य” जैसे नारे प्रमुखता से दिखाई दे रहा है.
जनता का मूड
लोगो का कहना है की बिहार की जनता का मूड बदलाव की ओर झुका हुआ माना जा रहा है. तेजस्वी के पक्ष में युवा और बेरोजगार वर्ग का गुस्सा है, जो नीतीश सरकार की नाकामियों को उजागर करता है. वही दूसरी तरफ नीतीश और भाजपा का गठबंधन ग्रामीण और महिला वोटरों पर भरोसा कर रहा है.
क्या कहते हैं जानकार?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तेजस्वी के लिए यह चुनाव उनकी विश्वसनीयता का सवाल है.विश्लेषकों का मानना है की तेजस्वी के पास ऊर्जा और जोश है, लेकिन गठबंधन की एकता और रणनीति में कमी उनकी राह में रोड़ा बन सकती है.
निष्कर्ष
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव और महागठबंधन के लिए एक कठिन परीक्षा है. नीतीश कुमार के अनुभव और एनडीए की मजबूत संगठनात्मक ताकत के सामने तेजस्वी की युवा ऊर्जा और जनता का गुस्सा कितना रंग लाएगा, यह आने वाले महीनों मेंदेखने को मिलेगा फिलहाल, बिहार की सियासत में हर कदम पर नजरें टिकी हैं.

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