तीसरा पक्ष ब्यूरो : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चूका है और राज्य का सियासी माहौल भी तूफानी मोड़ लेता जा रहा है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में दरार के खबरें और महागठबंधन के आक्रामक तैयारियां चर्चा का केंद्र बना हुआ है. इस बीच, प्रशांत किशोर का जन सुराज पार्टी की एंट्री ने सियासी समीकरणों को और भी पेचीदा बना दिया है. क्या बिहार की सत्ता का ताज पुराने खिलाड़ियों के पास रहेगा, या कोई नया चेहरा इतिहास रचेगा?
NDA में तनाव: पशुपति पारस का बाहर होना
NDA के लिए मुश्किलें तब बढ़ गया , जब केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने गठबंधन से बाहर आने का ऐलान किया। सूत्रों के मुताबिक, सीट बंटवारे और सम्मान को लेकर उनकी नाराजगी चरम पर था दूसरी तरफ बीजेपी और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच नीतीश कुमार के नेतृत्व को लेकर अंतर्कलह के खबरें भी सामने निकल के आती रही हैं. हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी को बिहार में विजय का झंडा फहराने वाला बताया, जिसे कुछ विश्लेषकों ने नीतीश के प्रति अप्रत्यक्ष टिप्पणी भी मान रहे है.
हालांकि, जेडीयू ने भी अब अपनी रणनीति तेज कर दिया है. नीतीश कुमार का दलित वोटरों के लिए “भीम संवाद” और महिलाओं को लुभाने के लिए “नारी शक्ति रथ” अभियान जोर पकड़ रहा है. बीजेपी भी पीएम नरेंद्र मोदी के 24 अप्रैल को मधुबनी में होने वाली रैली के जरिए माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगा हुआ है.लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह प्रयास NDA की एकजुटता पर उठ रहे सवालों को दबा पाएंगे?
महागठबंधन का दमखम: तेजस्वी की रणनीति
महागठबंधन, जिसमे राजद ,कांग्रेस, और वाम दल शामिल हैं, इन सभी ने भी अपनी कमर कस ली है. राजद के नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात कर गठबंधन की रणनीति को अंतिम रूप देने का प्रयास किया है. सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन बेरोजगारी, शिक्षा, और जातिगत समीकरणों पर फोकस करेगा. तेजस्वी का नारा ,नौकरी, शिक्षा, और सम्मान, युवाओं और पिछड़े वर्गों को लुभाने की कोशिश में लगे हुए है.
2024 के लोकसभा चुनाव में NDA को बिहार में 30 मिला था ,जबकि महागठबंधन को 9 सीटों से संतोष करना पड़ा था. लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे और तेजस्वी के आक्रामक रणनीति इस बार खेल बदल सकता है.और राजद चाहेगा की 180 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े इसलिए गठबंधन पर भी सीट बंटवारे को लेकर सबकी नजरें टिकी हुई है.
जन सुराज: नया खिलाड़ी, नई चुनौती
चुनावी रण में प्रशांत किशोर का जन सुराज पार्टी ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर सियासी हलचल मचा दिया है. प्रशांत किशोर, जो पहले कभी नीतीश और तेजस्वी दोनों के रणनीतिकार रह चुके हैं, अब “बिहार के लिए नई सोच” का दावा करने में लगे हुये है. उनकी पार्टी का फोकस भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और शिक्षा पर है, जो युवा वोटरों को आकर्षित कर सकता है.लेकिन सवाल यह है कि क्या जन सुराज सिर्फ वोट काटेगी, या सत्ता की दौड़ में कोई बड़ा उलटफेर करेगी?
मधुबनी से मैदान गर्म
बीजेपी की बात करे तो मधुबनी, जहां पीएम मोदी 24 अप्रैल को रैली होने बाला है. इस समय मधुबनी,सियासी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है. स्थानीय मतदाताओं में ,बेरोजगारी और प्रवास जैसे बड़े मुद्दे शामिल . वहाँ के युवा मतदाताओं का कहना है की “हमें नौकरी चाहिए, बड़े-बड़े वादे नहीं.” दूसरी तरफ जेडीयू और बीजेपी कार्यकर्ता मधुबनी को NDA का गढ़ बता रहे हैं, जबकि RJD समर्थक तेजस्वी के “नौकरी दो” अभियान को जनता का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं.
क्या कहते हैं विश्लेषक?
लेकिन ,राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है की NDA की ताकत ही उसकी एकजुटता है ,लेकिन पशुपति पारस का बाहर होना और नीतीश-बीजेपी के बीच तनाव भी एनडीए की कमजोरी बन सकता है. महागठबंधन को अगर सीट बंटवारे में संतुलन बनाए रखा, तो वह बड़ा उलटफेर कर सकता है. जन सुराज का प्रभाव अभी अनिश्चित है, लेकिन यह युवा वोटरों को लुभा सकती है.
आगे क्या?
बिहार का सियासी रण अब रोमांचक मोड़ पर है. NDA की एकजुटता पर सवाल, महागठबंधन का आक्रामक रुख, और जन सुराज की नई चुनौती ने 2025 के चुनाव को रोमांचक बना दिया है. अगले कुछ हफ्तों में नेताओं के दौरे, रैलियां, और बयानबाजी इस रण को और गर्म करेंगे. सवाल यह है कि बिहार की जनता इस बार किसे चुनेगी—नीतीश का अनुभव, तेजस्वी का जोश, या प्रशांत किशोर की नई सोच?

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