बिहार में मतदाता पुनरीक्षण अभियान पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार: भाकपा (माले) ने जताई राहत, मगर चिंता बरकरार

| BY

Ajit Kumar

बिहारभारत
बिहार में मतदाता पुनरीक्षण अभियान पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार: भाकपा (माले) ने जताई राहत, मगर चिंता बरकरार

दीपंकर– वोटर सूची सुधार के नाम पर लोकतांत्रिक अधिकारों पर मंडरा रहा है संकट

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,10 जुलाई : बिहार में हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर उठ रही चिंताओं पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान ले लिया है. अदालत ने अभियान की संवैधानिक और कानूनी खामियों को गंभीरता से लेते हुए आयोग को फटकार लगाई है.इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह आदेश उन तमाम आशंकाओं की पुष्टि करता है जिन्हें आम मतदाताओं ने पहले ही याचिकाओं के ज़रिए उठाया था.

दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ़ पुनरीक्षण प्रक्रिया की अव्यवस्थाओं पर सवाल उठाया है बल्कि यह भी माना है कि इससे आम मतदाताओं को व्यवहारिक रूप से काफी परेशानी हो रही है. कोर्ट ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि वह आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे प्रचलित दस्तावेजों को मान्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करे जो कि ज़मीन से जुड़ी सबसे प्रमुख और व्यापक मांग रही है.

पावती नहीं, सबूत नहीं – प्रक्रिया बनी जनता के लिए पहेली

अभियान शुरू होने के शुरुआती पंद्रह दिनों में मतदाताओं के सामने आई समस्याएं अब खुलकर सामने आने लगी हैं. भाकपा (माले) का कहना है कि ज़्यादातर लोगों को यह तक नहीं पता कि उन्होंने जो फ़ॉर्म जमा किए हैं उनका कोई पंजीकरण हुआ भी है या नहीं.पावती की व्यवस्था न होने के कारण लोगों के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि उन्होंने चुनाव आयोग के साथ अपनी जानकारी साझा किया है की नहीं.

प्रवासी मज़दूर, विशेषकर जो विदेशों में कार्यरत हैं या किसी आकस्मिक कारण से राज्य से बाहर गए हैं उनके लिए यह प्रक्रिया और भी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. इन वर्गों के लिए वोटर फॉर्म भरना और दस्तावेज़ देना लगभग असंभव हो गया है. जिससे उनके मताधिकार और नागरिकता पर संकट खड़ा हो गया है.

जाति और निवास प्रमाण पत्र बन गए सिरदर्द

अभियान में जाति प्रमाण पत्र और डोमिसाइल जैसे दस्तावेज़ों की अनिवार्यता को लेकर भी व्यापक विरोध देखा जा रहा है.भट्टाचार्य ने चेताया कि यह प्रक्रिया न केवल अनावश्यक है बल्कि एक बड़ी आबादी को मतदाता सूची से बाहर करने का रास्ता खोल सकती है. अगर कोई दस्तावेज़ नहीं दे पाता है, तो अंतिम निर्णय ERO (इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर) के विवेक पर छोड़ दिया गया है जो कि पारदर्शिता की पूरी तरह अनदेखी करता है.

उन्होंने चेतावनी दी कि हजारों लोगों के नाम इस विवेकाधिकार के आधार पर या तो काटे जा सकते हैं या जोड़े जा सकते हैं और यह पूरी प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण तथा मनमानी हो सकती है.

यह भी पढ़े :मतदाता सूची या नागरिकता जांच? बिहार में लोकतंत्र पर संकट?
यह भी पढ़े: बिहार में इंडिया गठबंधन का चक्का जाम आंदोलन ऐतिहासिक

चक्का जाम में दिखा जनरोष, संघर्ष के लिए तैयार बिहार

भाकपा (माले) लिबरेशन ने 9 जुलाई को हुए चक्का जाम का हवाला देते हुए कहा कि जनता अब इस वोटबंदी अभियान को लेकर पूरी तरह सतर्क हो गई है. भारी भागीदारी और समर्थन ने यह साफ कर दिया है कि बिहार की जनता अपने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की रक्षा को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है.

चक्का जाम में दिखा जनरोष, संघर्ष के लिए तैयार बिहार

दीपंकर भट्टाचार्य ने दो टूक कहा कि बिहार की जनता यह समझ चुकी है कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक कवायद नहीं है बल्कि उसके लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला है. हम इस हमले के खिलाफ पूरे प्रदेश में व्यापक जनसंघर्ष चलाएंगे.

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने जहां एक ओर मतदाताओं को राहत दी है वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट कर दिया है कि मतदाता सूची में सुधार के नाम पर किसी भी तरह की अपारदर्शिता और भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.अब देखना यह है कि चुनाव आयोग इन सलाहों और जनभावनाओं को किस हद तक गंभीरता से लेता है.

यह सिर्फ वोट की नहीं, लोकतंत्र की लड़ाई है- और बिहार इसका अगुवा बनता दिख रहा है.

Trending news

Leave a Comment