बिहार में सांसद के कुत्ते की खोज पर तैनात प्रशासन!क्राइम पर कौन लगाम लगाएगा?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 12 जुलाई:बिहार के कानून व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है.लेकिन इस बार वजह हैरान करने वाला है. कांग्रेस पार्टी ने सोशल मीडिया पर बिहार प्रशासन के प्राथमिकताओं पर सवाल खड़ा किया है. जब एक सांसद के पालतू कुत्ते को गुम होने पर पूरा प्रशासन उसे खोजने में जुट गया.कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत द्वारा साझा किया गया एक पोस्ट में कहा गया है कि बिहार में आम नागरिकों, विशेष रूप से बच्चे, महिलायें और कारोबारी लगातार अपराध के साए में जी रहा हैं लेकिन सरकार और प्रशासन उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में असफल नजर आ रहा है.
कांग्रेस का तंज: बिहार में सबसे सुरक्षित सिर्फ एक कुत्ता!
कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया एक्स X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट से साझा किया गया एक पोस्ट में तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा गया है कि “बिहार में सबसे ज्यादा सुरक्षित एक कुत्ता है. यहां एक सांसद जी का कुत्ता खो गया, तो उसे खोजने के लिए पूरा पुलिस प्रशासन लग गया और अंत में खोज निकाला.”इस टिप्पणी के माध्यम से कांग्रेस ने प्रशासन के प्राथमिकताओं पर सवाल उठाया है कि आम जनता की जान-माल की सुरक्षा की जगह एक पालतू जानवर पर इतना ज़ोर क्यों?
मामला क्या है
बिहार में अपराध से जुड़ी खबरें आए दिन सुर्खियों में बना रहता है.लेकिन इस बार पुलिस की तत्परता ने सभी को चौंका कर रख दिया है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के खगड़िया से सांसद राजेश वर्मा का महंगा साइबेरियन हस्की कुत्ता गुम हो गया था.खबर मिलते ही इशाकचक थाना पुलिस हरकत में आ गई और महज दो दिनों में उस कुत्ते को बरामद कर लिया गया था.
गौरतलब है कि इस नस्ल के कुत्तों की कीमत लगभग ₹60,000 से ₹1.5 लाख तक का होता है.यह नस्ल अपने शांत स्वभाव और बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार के लिए भी जाना जाता है. मंगलवार को यह कुत्ता सांसद राजेश वर्मा के भागलपुर स्थित आवास से लापता हो गया था.आसपास के इलाके में इस कुत्ते को आवारा समझकर कुछ लोग उसे पालने की कोशिश करने लगा लेकिन इस पर दो पक्षों में विवाद की स्थिति बन गया और सूचना पुलिस तक पहुंच गया इसके बाद इशाकचक थाना के पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए कुत्ते की तस्वीर को सांसद के पास भेजा इसके बाद पुष्टि मिलते ही पुलिस ने उसे सुरक्षित उनके आवास पर पहुंचा दिया.
इस घटना ने लोगों के बीच एक बार फिर यह बहस छेड़ दिया कि आम जनता के मामलों में जहां पुलिस निष्क्रिय दिखाई देता है वहीं वीआईपी से जुड़े मामलों में तेज़ी से काम होता है. हाल के कुछ दिनों में कई हत्या और लूट की घटनाएं सामने आया जिनमें अब तक कोई ठोस गिरफ्तारी या सुराग नहीं मिल पाया है.
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जनसुरक्षा बनाम वीआईपी कल्चर
बिहार में पिछले कुछ महीनों में अपराध के घटनाएं लगातारबढ़ा हैं. हत्या, लूट, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि देखा गया है. ऐसे में कांग्रेस ने पूछा है कि क्या राज्य सरकार और प्रशासन केवल वीआईपी वर्ग की सेवा के लिए है?
सवाल उठता है कि यह सरकार किसके लिए चल रही है?
कांग्रेस के पोस्ट में यह भी सवाल किया गयाहै कि क्या बिहार सरकार और प्रशासन बच्चों, कारोबारियों और महिलाओं के लिए नहीं हैं? आखिर यह सरकार किसके लिए चल रही है?”
सवाल सीधा है: जब आम लोगों के सुरक्षा को लेकर सरकार सुस्त है और वीआईपी लोगों के पालतू जानवरों पर पूरा तंत्र लग जाता है तो इससे आमजन का भरोसा कैसे बचेगा?
2014 की यूपी की घटना याद आई
यह मामला साल 2014 के उस घटना को याद दिलाता है जब यूपी के मंत्री आजम खां की भैंसें चोरी हो गया था. तब यूपी पुलिस ने केवल 24 घंटे में हरियाणा से भैंसों को बरामद कर लिया था. अब बिहार के पुलिस ने भी ऐसा ही ‘कारनामा’कर के दिखाया है.
पुलिस की प्राथमिकता पर सवाल
इस घटना ने यहाँ पर सवाल खड़ा कर दिया है कि आम जनता के सुरक्षा कब पुलिस की प्राथमिकता बनेगी? जब VIP के पालतू जानवरों को खोजने में इतनी मुस्तैदी दिखाया जाता है तो अपराध के शिकार आम नागरिकों को कब न्याय मिलेगा?
निष्कर्ष
बिहार के जनता उम्मीद कर रहा है कि शासन व्यवस्था का ध्यान सिर्फ विशेष लोगों तक सीमित न रहकर हर नागरिक के सुरक्षा, शिक्षा और रोजगार पर केंद्रित हो.विपक्ष ने एक कुत्ते की खोज को उदाहरण बनाकर प्रशासन के कार्यशैली पर सवाल उठाया हैं.और यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस का केंद्र बन सकता है.

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