सहनी ने पूछा: फर्जी वोटर कैसे बने, जवाब दे भाजपा!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,12 जुलाई: बिहार के राजनीति में इन दिनों “फर्जी वोटर” को लेकर तीखी बहस छिड़ गया है. इस बार आरोपों की ज़द में न केवल भारतीय जनता पार्टी है बल्कि देश का चुनाव आयोग भी इस आरोप के जद में आ गया है. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख और पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने अपने अधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक बड़ा दावा करते हुए सवाल खड़ा कर दिया है.
मुकेश सहनी ने अपने ट्वीट में कहा है कि अगर पिछले 20 सालों से बिहार में और 11 सालों से केंद्र में भाजपा की सरकार है, तो फिर बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिक वोटर लिस्ट में कैसे शामिल हो गए?
सहनी का तीखा सवाल: लोकतंत्र पर हमला?
मुकेश सहनी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए पूछा कि
“क्या यह मान लिया जाए कि यह सब भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत का नतीजा है? मोदी जी, जवाब दो!”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि गरीबों, पिछड़ों और वंचित वर्गों के वोटिंग अधिकार को साजिश के तहत छीना जा रहा है, ताकि उन्हें संवैधानिक और सरकारी लाभों से दूर रखा जा सके.
20 साल बिहार में भाजपा की सत्ता, फिर भी घुसपैठ?
वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी का तर्क है कि बिहार में भाजपा लंबे समय से सत्ता में रही है कभी सीधे तो कभी गठबंधन के जरिये.साथ ही केंद्र की सत्ता भी बीते एक दशक से भाजपा सरकार के पास है तो ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि अगर बांग्लादेशी या रोहिंग्या जैसे बाहरी नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो रहा है तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?
विपक्षी दलों को मिला एक और नया मुद्दा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सहनी का यह बयान बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले एक नए नैरेटिव को जन्म दे सकता है.यह मुद्दा खासकर पिछड़े और दलित वर्ग के वोटर्स के बीच काफी असर डाल सकता है जो लंबे समय से समाजिक न्याय की राजनीति का केंद्र रहा हैं.
यह भी पढ़े :एक मराठी, एक मंच’: ठाकरे युग की नई शुरुआत है?
यह भी पढ़े :घोषणाएं हमारी, नकल उनकी! RJD का BJP और जदयू पर तीखा वार
क्या चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल?
मुकेश सहनी के इस बयान में चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाया गया है जो अब तक खुद को एक निष्पक्ष संवैधानिक संस्था के रूप में प्रस्तुत करता रहा है.यदि वास्तव में वोटर लिस्ट में घुसपैठियों के नाम शामिल हुआ है तो यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर बहुत गहरा चोट है.
भाजपा की प्रतिक्रिया का इंतजार
अब तक भाजपा के ओर से इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आया है. हालांकि यह तो तय है कि यदि विपक्ष इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाता है तो भाजपा को जवाब देना हि पड़ेगा.
निष्कर्ष: लोकतंत्र या सियासी साजिश?
मुकेश सहनी के इस बयान ने न केवल एक बड़ा सवाल लाकर खड़ा किया है बल्कि चुनावों की प्रामाणिकता, पारदर्शिता और जिम्मेदारी को लेकर भी नई बहस को जन्म दिया है. अब देखना यह होगा कि भाजपा और चुनाव आयोग इस पर क्या सफाई देता है और क्या यह मुद्दा आगामी चुनावों में मुख्य एजेंडा बनता है या नहीं यह तो समय ही बताये.

I am a blogger and social media influencer. I have about 5 years experience in digital media and news blogging.