ना एसआईआर, ना एफआईआर – बस लोकतंत्र चाहिए!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 18 जुलाई :बिहार में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया को लेकर गहराता विवाद अब जनआंदोलन का रूप लेने लगा है. वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम पर एफआईआर के विरोध में आज पटना की सड़कों पर सैकड़ों नागरिकों, बुद्धिजीवियों, छात्रों और राजनेताओं ने मिलकर एकजुटता दिखाई है.
जीपीओ गोलंबर से स्टेशन गोलंबर तक चला प्रतिवाद मार्च, जिसमें भाग लेने वालों के नारों ने स्पष्ट कर दिया कि जनता इस प्रक्रिया को संदेह की नजर से देख रहा है. एसआईआर वापस लो! अजीत अंजुम पर एफआईआर क्यों? और चुनाव चोर, गद्दी छोड़! जैसे नारों से राजधानी की फिजा गूंज उठा
भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का तीखा हमला
प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने एसआईआर को वोटबंदी की एक संगठित साजिश करार दिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग द्वारा तय की गई पारदर्शी प्रक्रिया जमीन पर नहीं उतर रही है.
बीएलओ के घर-घर जाने और दस्तावेज रिसीव करने की बात तो किया गया था.लेकिन अब सब कुछ उल्टा हो रहा है. जो पत्रकार सच दिखा रहा है उसे ही निशाना बनाया जा रहा है — दीपंकर भट्टाचार्य
उन्होंने 9 जुलाई को बिहार में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन का हवाला देते हुए कहा कि यह जनादेश एसआईआर के खिलाफ है.
35 लाख नामों की छंटनी? आंकड़े पर सवाल
भट्टाचार्य ने सवाल उठाया कि जब अभी दस्तावेजों की जांच ही नहीं हुआ है तो 35 लाख वोटर नाम हटाने का आंकड़ा कहां से आया? उनका आरोप है कि इस तरह का माहौल बनाकर गरीब, दलित, प्रवासी मजदूर और मुस्लिम समुदाय के लोगों को सूची से बाहर किया जा रहा है.
उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेशी, म्यांमार और नेपाली नागरिकों की घुसपैठ का झूठा प्रचार कर एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की कोशिश की जा किया जा रहा है.
2016 से 2019 के बीच संसद में खुद चुनाव आयोग ने कहा था कि विदेशी मतदाताओं की पुष्टि नहीं हुआ था तो अब 2025 में अचानक विदेशी कहां से आ गए?— का. दीपंकर भट्टाचार्य
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क्या मुसहर, झुग्गीवासी, मजदूर अब विदेशी हो गए?
भट्टाचार्य ने बेहद तीखे शब्दों में कहा कि बिहार के मुसहर, झुग्गीवासियों, प्रवासी मजदूरों और मुसलमानों को विदेशी बताकर उनकी नागरिकता और मताधिकार पर हमला किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बंगाली बोलने वालों को बांग्लादेशी बताना पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार तक आम होता जा रहा है.
अब तो हिंदी बोलने वाले मजदूरों को भी विदेशी कहा जा रहा है. यह संविधान के साथ सीधा खिलवाड़ है.
झुग्गी में मकान नहीं, अब झुग्गी पर बुलडोजर
भट्टाचार्य ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी द्वारा दिया गया नारा जहां झुग्गी वहीं मकान याद दिलाया और कहा कि अब सरकार की नीति बदल गया है. जहां झुग्गी, वहीं बुलडोजर और बुलडोजर उन गरीबों पर चलया जा हा है जो बिहार से दिल्ली गए थे रोटी की तलाश में.
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बिहार के गरीबों के पास कौन से दस्तावेज़ हैं?
उन्होंने यह भी बताया कि जब डॉक्यूमेंट देने की अंतिम तिथि अभी तक नहीं आई है तो नाम कैसे हट रहे हैं? अधिकांश गरीबों के पास न तो निवास प्रमाणपत्र है और न ही जाति प्रमाणपत्र मिल रहा है.
आवासीय और जाति प्रमाणपत्र के बिना कोई गरीब अपनी नागरिकता कैसे साबित करेगा?
अन्य नेताओं की भी जोरदार मांग: एसआईआर वापस लो
सभा को माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, फुलवारी विधायक गोपाल रविदास, एमएलसी शशि यादव सहित कई वक्ताओं ने संबोधित किया.सभी ने एक स्वर में एसआईआर को “लोकतंत्र विरोधी कवायद” बताते हुए इसकी तत्काल वापसी की मांग किया है.
उन्होंने कहा कि माले और INDIA गठबंधन इसे विधानमंडल सत्र में प्रमुखता से उठाएंगे.
कौन-कौन थे शामिल?
मार्च और सभा में माले पोलित ब्यूरो सदस्य अमर, धीरेन्द्र झा, केडी यादव, ऐपवा की अनीता सिन्हा, ऐक्टू के रणविजय कुमार, इंसाफ मंच के लखन चौधरी, दिव्या गौतम, नसरीन बानो, आफशा जबीं समेत कई संगठनों के कार्यकर्ता मौजूद रहे.
सभा का संचालन एआइपीएफ के कमलेश शर्मा ने किया.
निष्कर्ष
बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर गहराता जन असंतोष अब सरकार और चुनाव आयोग के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है. पत्रकारों को चुप कराने की कोशिश, और नागरिकों के वोटर लिस्ट से नाम हटाने की आशंका ने लोकतंत्र की बुनियाद को सवालों के घेरे में ला दिया है.
जनता अब पूछ रही है वोट हमारा है, हक भी हमारा है. तो फिर यह तय कौन कर रहा है कि कौन रहेगा और कौन नहीं?

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