न्याय की मांग पर मुकदमा, क्या यही है नीतीश सरकार का ‘सुशासन’?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 4 अगस्त:फुलवारी शरीफ में दो मासूम बच्चों को जिंदा जलाकर मारने की वीभत्स घटना को लेकर उठे जनाक्रोश पर प्रशासन ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दिया है.उससे राजनीतिक माहौल और गरमा गया है. इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे नेताओं पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए जाने के खिलाफ आज भाकपा-माले और महागठबंधन के नेताओं ने बिहार के डीजीपी से मिलकर पटना के सीनियर एसपी की शिकायत किया है.
विधायक गोपाल रविदास को बनाया गया निशाना
भाकपा-माले विधायक और फुलवारी शरीफ से जनप्रतिनिधि गोपाल रविदास पर आरोप है कि उन्हें राजनीतिक द्वेष के चलते झूठे मुकदमे में फंसाया गया है.माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि हत्या के खिलाफ सड़कों पर उतरना अगर अपराध है. तो हम यह अपराध बार-बार करेंगे.प्रशासन एक तरफ घटना को प्रेम प्रसंग का नाम देकर असल मुद्दे से भटका रहा है. दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों को निशाना बना रहा है.
संवेदनहीनता या साजिश?
विधायक गोपाल रविदास ने प्रशासन की संवेदनहीनता पर सवाल उठाते हुए कहा कि घटना पर शर्मिंदा होने के बजाय प्रशासन अड़ियल रवैया अपना रहा है.जिन लोगों ने न्याय की मांग किया उन्हें ही नामजद अभियुक्त बना दिया गया.दुकानदारों तक को नहीं बख्शा गया.क्या ये सब चुनावी रणनीति का हिस्सा है?

सभी महागठबंधन दल एकजुट
इस मुद्दे पर महागठबंधन के सभी घटक दल एक सुर में बोले.
सीपीआई के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने कहा कि यह लोकतांत्रिक विरोध को कुचलने की कोशिश है. जिसका जवाब जनता देगी.
सीपीएम के नेता मनोज चंद्रवंशी ने चेतावनी दिया कि यदि फर्जी मुकदमे वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन और तेज होगा.
राजद के नेता शुभम यादव ने बताया कि घटना से जुड़े कई व्यापारियों को भी झूठे मामलों में फंसा दिया गया है.
फुलवारी की घटना को बताया जा रहा प्रेम प्रसंग, पीड़ितों को नहीं मिल रही सुरक्षा
महबूब आलम ने प्रशासन की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रशासन जानबूझकर इतनी जघन्य हत्या को हल्का बना रहा है.पुलिस की भूमिका संदिग्ध है और स्थानीय थानेदार की भूमिका की स्वतंत्र जांच होना चाहिये. पीड़ित परिजनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है.
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राज्यभर में विरोध दिवस
आज पूरे बिहार में भाकपा-माले के बैनर तले विरोध दिवस मनाया गया. सड़कों पर उतरे कार्यकर्ताओं ने फर्जी मुकदमों की वापसी और दोषियों की गिरफ्तारी की मांग किया है.
क्या यह प्रशासनिक चूक है या विपक्ष को दबाने की रणनीति?
इस पूरे घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि, क्या बिहार में अब न्याय की मांग करना भी अब अपराध बन गया है? और क्या विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई कर प्रशासन सत्ता पक्ष को खुश करने की कोशिश कर रहा है?
निष्कर्ष
फुलवारी शरीफ की हृदयविदारक घटना और उसके बाद का प्रशासनिक रवैया न सिर्फ चिंता का विषय है.बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का भी उदाहरण बन रहा है. अगर आवाज उठाना जुर्म बन जाए, तो यह किसी भी लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है.

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