जब जनता को पता ही न हो कि उसका नाम क्यों काटा गया, तो चुनाव क्या और अधिकार कैसा?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 4 अगस्त :बिहार में लोकतंत्र की नींव हिलती दिखई दे रहा है. भाकपा-माले ने चुनाव आयोग पर एक गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम बिना पारदर्शिता के हटाया गया है.और आयोग इससे जुड़े जरूरी विवरण राजनीतिक दलों को नहीं दे रहा है.इस मुद्दे ने चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया हैं.
मतदाता सूची से नाम गायब, लेकिन क्यों? आयोग मौन!
चुनाव आयोग के तरफ से दावा किया गया था कि 24 जून 2025 को प्रकाशित मतदाता सूची और 1 अगस्त को जारी प्रारूप सूची के बीच जिन मतदाताओं के नाम हटाया गया है. उनकी पूरी जानकारी सभी मान्यता प्राप्त दलों के साथ साझा कर दिया गया है. लेकिन भाकपा-माले का कहना है कि यह केवल ,आँकड़ों की कागजी बाज़ीगरी, है.
राज्य सचिव कुणाल ने बताया कि आयोग जो सूची दे रहा है. उसमें यह नहीं बताया गया है कि किसी मतदाता का नाम किस कारण से हटाया गया.मृतक, डुप्लिकेट, स्थानांतरित या कोई और कारण.
यानी संख्या तो बताया गया लेकिन नामों को हटाने के कारणों पर गहरा चुप्पी है.
चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल
चुनाव आयोग का यह रुख न केवल गैर-पारदर्शी है.बल्कि लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ भी है.
भाकपा-माले ने बार-बार पत्र के ज़रिए राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से आग्रह किया कि सभी 65 लाख हटाये गये मतदाताओं की सूची को स्पष्ट कारणों के साथ सार्वजनिक किया जाये.
लेकिन आयोग ने अब तक कोई ठोस जानकारी नहीं दिया है.
16 जुलाई को जिला स्तर पर जो सूची मिली उसमें भी कारणों का कोई ज़िक्र नहीं था.
ऐसे में सवाल उठता है कि, आखिर आयोग किससे क्या छिपा रहा है?
क्या लोकतंत्र का सबसे बड़ा आधार ही खतरे में है?
नाम हटाने की प्रक्रिया के पीछे कारण छुपाना सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं है बल्कि यह एक सुनियोजित साजिश की आशंका भी पैदा करता है.
अगर किसी मतदाता को यह ही नहीं पता है कि उसका नाम क्यों काटा गया तो उसका मतदान का अधिकार छिन जाता है.
और जब यह संख्या 65 लाख तक पहुंच जाए तो यह महज आंकड़ा नहीं लोकतंत्र पर हमला बन जाता है.
क्या यह कोई राजनीतिक समीकरण साधने की कोशिश है? क्या कुछ खास तबकों को टारगेट किया जा रहा है?
यह भी पढ़े :वोटर लिस्ट से गायब जनता, चुप क्यों है चुनाव आयोग? कांग्रेस ने उठाए 5 बड़े सवाल
यह भी पढ़े :बिहार में इंसाफ मांगना गुनाह! फुलवारी कांड पर बोलने वालों को प्रशासन ने बनाया आरोपी!
भाकपा-माले ने 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया
पार्टी ने एक बार फिर चुनाव आयोग को पत्र लिखकर मांग किया है कि वह अगले 24 घंटे में पूरी सूची सार्वजनिक करे.सभी हटाए गए मतदाताओं के नाम और कारणों के स्पष्ट विवरण के साथ.
कुणाल ने कहा है कि, चुनाव आयोग की जवाबदेही बनती है कि वह यह सिद्ध करे कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष है. वरना जनता इसे सत्ता संरक्षित साजिश मानने के लिए मजबूर होगा.
अब चुप रहना मुमकिन नहीं: लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई
यह मामला केवल एक राजनीतिक दल का नहीं है. यह सवाल है हर उस नागरिक का.जिसे बिना कारण बताए उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है.
भविष्य में चुनाव की वैधता पर उंगली न उठे. इसके लिए यह ज़रूरी है कि चुनाव आयोग तुरंत पारदर्शिता दिखाये.जवाबदेही तय करे और सार्वजनिक विश्वास बहाल करे.
वरना बिहार में उठी ये चिंगारी जल्द ही देशव्यापी जन आंदोलन का रूप ले सकता है.
विश्लेषण: क्या यह डिजिटल जनसंहार की शुरुआत है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि बिना किसी जांच और संतुलन के करोड़ों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाया जा सकता हैं.तो यह तकनीकी रूप से एक डिजिटल जनसंहार जैसा कृत्य बन सकता है.जिसमें लोगों के अस्तित्व को कागज़ पर मिटा दिया जाए, और उन्हें इसका कोई स्पष्टीकरण भी न दिया जाये.
निष्कर्ष: यह अब सिर्फ सूची का मामला नहीं है बल्कि लोकतंत्र की परीक्षा है.आयोग को अब जवाब देना चाहिये.

I am a blogger and social media influencer. I have about 5 years experience in digital media and news blogging.