चुनाव आयोग की दावों पर भाकपा-माले ने जताया ऐतराज
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 6 अगस्त:बिहार में चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान को लेकर चुनाव आयोग के दावों पर सवाल खड़ा हो गया हैं.भाकपा-माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य ने एक प्रेस बयान में कहा कि आयोग यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है.कि सब कुछ सामान्य और बिना विवाद के चल रहा है. लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है.
कॉ. भट्टाचार्य ने बताया कि भले ही आयोग दावा कर रहा हो कि कहीं से कोई बड़ी शिकायत नहीं आया है.लेकिन स्वयं आयोग यह मान चुका है कि उसे सीधे मतदाताओं से लगभग 3,000 आपत्तियाँ मिली हैं. और ये आपत्तियाँ बूथ लेवल एजेंटों के ज़रिए नहीं बल्कि मतदाताओं ने खुद दर्ज करवाई हैं. इसके बावजूद इन शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है.
गलत तरीके से हटाए गए नामों का सवाल
भाकपा-माले नेता ने आरोप लगाया कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है.और अब उन्हें फिर से फॉर्म-6 भरकर नाम जुड़वाने को कहा जा रहा है. उन्होंने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग यह कैसे साबित करेगा कि अब तक जमा हुए करीब 15,000 फॉर्म-6 केवल नए मतदाताओं द्वारा भरा गया है. क्या इनमें उन लोगों की भी संख्या नहीं हो सकता जिनके नाम अनायास हटा दिए गए हैं?
पारदर्शिता पर उठते सवाल
पारदर्शिता के अभाव की ओर इशारा करते हुए माले महासचिव ने कहा कि उनकी पार्टी लगातार यह मांग कर रहा है कि आयोग बूथ स्तर पर हटाए गये मतदाताओं की सूची और उनके नाम हटाए जाने के कारण सार्वजनिक करे. लेकिन आयोग केवल समेकित आँकड़े देने पर अड़ा है.जिससे एक-एक मामले की तह तक जाकर जाँच करना बेहद मुश्किल हो जाता है.
उन्होंने कहा कि,अगर आयोग सचमुच चाहता है कि एक भी पात्र नागरिक मतदाता सूची से वंचित न हो तो फिर वह यह विवरण देने से पीछे क्यों हट रहा है?
भाषा की बाधा: अंग्रेज़ी में सूचियाँ क्यों?
भाकपा-माले ने आयोग द्वारा साझा किया जा रहा सूचनाओं की भाषा को लेकर भी आपत्ति जताया है.वर्तमान में यह सूचियाँ केवल अंग्रेज़ी में उपलब्ध हैं. जिससे आम लोगों को जानकारी समझने में कठिनाई होता है.पार्टी ने मांग किया है कि वोटर लिस्ट की भाषा हिंदी या स्थानीय भाषाओं में भी होना चाहिये ताकि आम नागरिकों के लिए यह प्रक्रिया सहज और पारदर्शी बन सके.
निष्कर्ष
एसआईआर अभियान को लेकर भले ही चुनाव आयोग आश्वस्त दिखाई दे रहा हो.लेकिन विपक्षी दलों खासकर भाकपा-माले ने जो सवाल उठाया हैं.वे बिहार की चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और समावेशिता पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता हैं.यदि इन चिंताओं को समय रहते नहीं सुलझाया गया. तो इससे मतदाता विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

I am a blogger and social media influencer. I have about 5 years experience in digital media and news blogging.