गांधी की हत्या: पाप, आतंकवाद या कुछ और? गोडसे विवाद में उमा भारती की स्पष्ट राय
तीसरा पक्ष डेस्क,भोपाल: भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने हाल ही में महात्मा गांधी की हत्या को लेकर एक ऐसा बयान दिया है जिसने राजनीतिक हलकों के साथ-साथ इतिहास के विद्यार्थियों और विचारकों का ध्यान भी खींचा है.
टीवी-9 को दिए एक विशेष इंटरव्यू में, उनसे जब पूछा गया कि क्या नाथूराम गोडसे को “भारत का पहला आतंकवादी” कहा जा सकता है, तो उन्होंने बिना हिचकिचाए कहा:
“नाथूराम गोडसे ने जो पाप किया है, वह आतंकवाद शब्द से भी बड़ा है। उसने एक ऐसे व्यक्ति को मारा, जो सपना देख रहा था कि आज़ाद भारत कैसा होगा—आत्मनिर्भर, अपनी आत्मा पर निर्भर, और विदेशी कर्ज से मुक्त.”
गोडसे और गांधी — एक ऐतिहासिक टकराव
30 जनवरी 1948 की शाम, दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधी जी प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे. तभी नाथूराम गोडसे ने नजदीक आकर तीन गोलियां चलाईं.
गोडसे का दावा था कि गांधी जी के विचार और नीतियां हिंदू समाज के लिए हानिकारक थीं. लेकिन इस घटना को दुनिया ने महज एक राजनीतिक हत्या नहीं माना, बल्कि इसे उस युग के सबसे बड़े नैतिक झटकों में गिना गया.
गांधी की अंतिम संध्या और उमा भारती का संदेश — ‘यह आतंकवाद नहीं, पाप था’

दिल्ली, 30 जनवरी 1948 |
सर्दी की हल्की चुभन थी. बिड़ला हाउस का आंगन चुप था, पर भीतर महात्मा गांधी की धीमी चाल से जैसे समय भी थम-सा गया था. उनकी हथेली में प्रार्थना की माला, होंठों पर बुदबुदाते शब्द — “हे राम…”
भीड़ में कोई अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा था कि अगले कुछ सेकंड में इतिहास बदलने वाला है.
तीन तेज धमाके, बारूद की गंध, और सफेद धोती पर लाल धब्बे. गांधी धराशायी हो गए। उनके होंठों से आखिरी बार वही शब्द निकले — “हे राम!
उमा भारती का दृष्टिकोण — ‘हत्या नहीं, आदर्शों का वध’
उमा भारती के मुताबिक, गांधी जी की हत्या केवल एक व्यक्ति का अंत नहीं थी, बल्कि उस विचारधारा का अंत करने की कोशिश थी, जो भारत को स्वावलंबी और नैतिक आधार पर खड़ा करने का सपना देख रही थी.
उनके बयान में दो अहम संदेश छिपे हैं:
- आतंकवाद का सीमित अर्थ — शब्द ‘आतंकवाद’ अक्सर राजनीतिक या सामरिक हिंसा के लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन गांधी जी की हत्या एक नैतिक अपराध था, जिसका असर पीढ़ियों तक रहेगा.
- गांधीवाद की प्रासंगिकता — आज जब ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा फिर से गूंज रहा है, गांधी जी के आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण को समझना पहले से ज्यादा जरूरी हो गया है.
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उमा भारती का बयान — 77 साल बाद की गूंज
कई दशक बाद, भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने इस घटना पर बोलते हुए कहा:
“नाथूराम गोडसे ने जो पाप किया है, वह आतंकवाद शब्द से भी बड़ा है. उसने एक ऐसे व्यक्ति को मारा, जो सपना देख रहा था कि आज़ाद भारत कैसा होगा — आत्मनिर्भर, अपनी आत्मा पर निर्भर, विदेशी कर्ज पर नहीं.”
उनके शब्दों में केवल राजनीति नहीं थी, बल्कि उस दर्द की झलक थी जो 1948 में पूरे देश के सीने में उतरी थी.
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
- कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उमा भारती के बयान का स्वागत करते हुए कहा कि भाजपा नेताओं से इस तरह के शब्द दुर्लभ हैं, और यह ऐतिहासिक सच्चाई की ओर लौटने का संकेत है.
- कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने इस बयान को गोडसे समर्थक विचारधारा के विपरीत बताते हुए असहमति जताई.
- सोशल मीडिया पर भी दो धाराएं बन गईं — एक तरफ वे लोग जो इसे गांधी जी के प्रति सम्मान का प्रतीक मानते हैं, दूसरी तरफ वे जो इसे राजनीतिक छवि सुधारने का प्रयास कहते हैं.
निष्कर्ष – अंतिम पंक्ति — एक चेतावनी
गांधी जी की हत्या हमें यह याद दिलाती है कि जब हम अहिंसा, सत्य और आत्मनिर्भरता के रास्ते से भटकते हैं, तो इतिहास खुद को दोहराने से नहीं हिचकता.
उमा भारती का बयान सिर्फ अतीत का स्मरण नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक चेतावनी है —
“गांधी को मत मारो, चाहे वह किताबों में हों या विचारों में.”
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