जब लोकतंत्र की बुनियाद पर उठे सवाल, तब आवाज़ उठाना ज़रूरी हो जाता है
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,16 अगस्त :भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनाव सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं है.बल्कि जनता की आवाज़ और विश्वास का प्रतीक होते हैं. लेकिन क्या हो जब उसी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा हो जाये ? समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में एक ऐसा ही सवाल उठाया है कि, जिसने देशभर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. उनका मानना है कि जब तक तकनीक पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं होता तब तक बैलेट पेपर ही सबसे सुरक्षित विकल्प है.
उन्होंने न सिर्फ भारत की चुनावी व्यवस्था पर चिंता जताई है बल्कि जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों का उदाहरण देकर यह भी दिखाया कि दुनिया के बड़े लोकतंत्र भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को लेकर सतर्क हैं.
आइये, आगे जानते हैं कि अखिलेश यादव ने क्यों दी बैलेट पेपर की वापसी की दलील और इसके पीछे क्या है अंतरराष्ट्रीय सच्चाई और राजनीतिक रणनीति…
लखनऊ से उठी तकनीकी चुनाव प्रणाली पर सबसे बड़ी आवाज
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक बार फिर भारत के चुनावी प्रक्रिया में ईवीएम (EVM) के इस्तेमाल पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.लखनऊ में मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि,
टेक्नोलॉजी इतनी फुल-प्रूफ होनी चाहिए कि उसमें बेईमानी की कोई गुंजाइश ही न हो”
उनका कहना है कि तकनीक को आंख मूंदकर स्वीकार नहीं किया जा सकता है. खासकर तब जब लोकतंत्र की नींव उसी पर टिका हो.
जर्मनी-अमेरिका का उदाहरण देकर अखिलेश ने EVM के खिलाफ खोला मोर्चा
अखिलेश यादव ने अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों का हवाला देते हुए बताया कि विकसित लोकतंत्रों में भी ईवीएम पर संदेह किया गया है. उन्होंने कहा कि,
“जर्मनी के कोर्ट ने कहा कि अगर EVM से वोट पड़ता हैं तो यह असंवैधानिक होगा.अमेरिका में अब भी बैलेट पेपर से वोटिंग होता है.
यह बयान यह दर्शाता है कि अखिलेश सिर्फ राजनीतिक आलोचना नहीं कर रहे है. बल्कि तकनीकी और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी सवाल उठा रहा हैं.
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क्या EVM से लोकतंत्र की पारदर्शिता खतरे में है?
समाजवादी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों का मानना है कि ईवीएम में हेराफेरी की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. उनकी मांग है कि चुनावों में फिर से बैलेट पेपर की वापसी की जाये ताकि जनता का भरोसा बहाल किया जा सके.
इस तर्क के पीछे मुख्य सोच यह है कि बैलेट पेपर से मतदान अधिक पारदर्शी, ट्रेसेबल और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल होता है.
EVM या बैलेट पेपर: किस पर टिका है लोकतंत्र का असली भरोसा?
EVM समर्थकों का तर्क है कि यह प्रणाली तेज, सटीक और आधुनिक है. जबकि विरोधी इसे लोकतंत्र के लिए संभावित खतरा मानते हैं.
यह बहस अब केवल तकनीकी नहीं रहा.बल्कि यह सवाल बन गया है कि लोकतंत्र में जनता का भरोसा किस पर टिका है — मशीन पर या मतदाता की उंगली से डाले गए बैलेट पर?
विपक्ष की रणनीति: बैलेट पेपर की वापसी का रोडमैप?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आगे होने वाले आम चुनाव को लेकर विपक्षी दल मिलकर बैलेट पेपर की वापसी के लिए अभियान चला सकते हैं.अखिलेश यादव का यह बयान उसी रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है.
बड़ी बात यह है कि अगर जनता का समर्थन मिला तो यह मांग चुनावी मुद्दा बन सकता है — और तब सवाल होगा, क्या भारत फिर से बैलेट की ओर लौटेगा?
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















