22 साल की तपस्या को सलाम – माउंटेन मैन की पुण्यतिथि पर देश ने याद किया असली हीरो
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली,17 अगस्त 2025 :जब भी भारत में असाधारण साहस और अटूट जज़्बे की बात होती है.तो एक नाम दिल में गूंजता है, वह है — ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी. एक ऐसा व्यक्ति जिसने न तो किसी सत्ता का सहारा लिया और न ही किसी सुविधा का इंतज़ार किया है — बल्कि खुद अपने हाथों से पहाड़ को काटकर इतिहास रच डाला.
आज जब देश उनकी पुण्यतिथि मना रहा है.तब भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने उन्हें याद करते हुए एक ऐसा सशक्त संदेश दिया है जिसने लाखों लोगों की सोच को झकझोर दिया है.
उनकी यह श्रद्धांजलि सिर्फ एक व्यक्ति को नमन नहीं है बल्कि पूरे समाज को यह याद दिलाना है कि बदलाव लाने के लिए सिर्फ एक व्यक्ति का दृढ़ संकल्प ही काफी है.
आइए, आगे जानते हैं कि कैसे दशरथ मांझी ने अपनी ज़िंदगी को संघर्ष से सफलता तक पहुँचाया और क्यों आज भी उनके साहस को चंद्रशेखर आज़ाद जैसे युवा नेता अपना आदर्श मानते हैं.

समाज के असली हीरो को याद करते हुए – चंद्रशेखर आज़ाद का ट्वीट वायरल
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने 17 अगस्त को माउंटेन मैन के नाम से पहचाने जाने वाले दशरथ मांझी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दिया है.उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर भावुक संदेश साझा किया है और लिखा है कि,
“पहाड़ को चीर कर रख देने का हौसला देने वाले अभूतपूर्व साहस की बेमिसाल मूरत ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी जी के स्मृति दिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन एवं विनम्र आदरांजलि”
इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर मांझी जी की कहानी एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया और हजारों लोगों ने इस प्रेरणादायक संघर्ष को सलाम किया.
कौन थे दशरथ मांझी? संघर्ष, साहस और समर्पण की मूर्ति
दशरथ मांझी का जन्म बिहार के गया जिले के गहलौर गांव में हुआ था. गरीबी और पिछड़ेपन से जूझते गांव में एक दिन उनकी पत्नी फगुनी देवी की मौत सिर्फ इसलिए हो गई थी क्योंकि अस्पताल समय पर नहीं पहुंचाया जा सका था कारण कि – रास्ते में एक विशाल पहाड़ आड़े आता था.
इस हादसे के बाद मांझी ने ठान लिया कि जब सरकार रास्ता नहीं बनाएगी तब वो खुद अपने हाथों से पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे.और उन्होंने किया भी – 22 वर्षों तक (1960–1982) अकेले हथौड़ा और छेनी से 360 फुट लंबा, 30 फुट चौड़ा और 25 फुट ऊँचा पहाड़ काट डाला और उन्होंने रास्ता बनाकर इतिहास रच डाला.
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मांझी के हौसले को चंद्रशेखर आज़ाद ने बताया आज के भारत के लिए प्रेरणा
चंद्रशेखर आज़ाद, जो दलित समाज के हक और अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं. दशरथ मांझी को एक प्रतीक के रूप में देखते हैं – उस आम आदमी का प्रतीक जिसने असंभव को संभव कर दिखाया है. उनका यह ट्वीट सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं है. बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह याद दिलाने की कोशिश है कि एक व्यक्ति का संकल्प भी बदलाव की लहर ला सकता है.
सोशल मीडिया पर उमड़ा सम्मान – मांझी की कहानी को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की अपील
चंद्रशेखर आज़ाद के ट्वीट के बाद हजारों लोगों ने दशरथ मांझी को याद करते हुए पोस्ट शेयर किये .कई यूज़र्स ने लिखा कि मांझी की कहानी को स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए, ताकि युवाओं को यह समझ में आए कि सच्चा परिवर्तन जज़्बे से आता है. न कि सुविधाओं से.
दशरथ मांझी की विरासत – एक राह जो सिर्फ रास्ता नहीं, बल्कि उम्मीद बन गई
दशरथ मांझी ने जो रास्ता गहलौर और वज़ीरगंज के बीच बनाया था. वह सिर्फ पत्थरों को हटाने का काम नहीं था – वो रास्ता लाखों लोगों की उम्मीदों का रास्ता था. आज भी वह पथशिला बनकर खड़ा है. यह बताने के लिए कि एक अकेला व्यक्ति भी इतिहास रच सकता है.
निष्कर्ष
दशरथ मांझी सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक विचार हैं — कि अगर इरादे बुलंद हों तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होता.उन्होंने यह साबित किया है कि सामाजिक व्यवस्था या संसाधनों की कमी, किसी व्यक्ति के संकल्प के सामने नहीं टिक सकता.
चंद्रशेखर आज़ाद का उन्हें श्रद्धांजलि देना यह दर्शाता है कि आज भी देश को मांझी जैसे जमीनी नायकों से प्रेरणा मिलती है. ऐसे लोगों की कहानियां हमें यह सिखाता हैं कि असली क्रांति सत्ता के गलियारों में नहीं बल्कि ज़मीन पर पसीना बहाने वालों के हाथों में जन्म लेती है.
आज, जब समाज विकास की नई राहों पर बढ़ रहा है. तो मांझी की बनाई गई वह राह हमें याद दिलाती है कि अगर रास्ता नहीं है, तो बनाना होगा. यही सोच देश को आगे ले जाती है.
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















