तो समझिए लोकतंत्र खतरे में है – तेजस्वी यादव का तंज!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 23 अगस्त 2025 –बिहार की राजनीति में हमेशा से तेजस्वी यादव का सोशल मीडिया इस्तेमाल थोड़ा अलग और तीखा रहा है. अब एक बार फिर उन्होंने X (पहले ट्विटर) के ज़रिए ऐसा बयान दिया है. जिसने सत्ता के गलियारों में बहस को नया मोड़ दे दिया है.
लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि अब वोटर को अपने वोट को बचाने के लिए लड़ना पड़ रहा है?
यह छोटा सा वाक्य न सिर्फ सवाल उठाता है.बल्कि लोकतंत्र के मौजूदा हालात पर बड़ा कटाक्ष भी करता है. सवाल यह है – क्या वाकई भारत में मतदाता अपने वोट के अधिकार को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है?
क्या कहना चाहते हैं तेजस्वी यादव?
इस पोस्ट में तेजस्वी ने सीधे तौर पर किसी दल या नेता का नाम नहीं लिया है, लेकिन बात साफ़ है – इशारा उस व्यवस्था की ओर है. जहाँ वोटिंग में गड़बड़ियाँ, फर्जी वोटिंग, और ईवीएम से जुड़ी शिकायतें लगातार सामने आ रहा हैं.
ऐसा पहली बार नहीं है जब तेजस्वी ने चुनावी प्रक्रिया को लेकर चिंता जताई हो.वे पहले भी कई बार ,लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहे हैं.इस बार उन्होंने सीधे मतदाता की स्थिति को ही केंद्र में रखते हुए कहा कि अब आम जनता को अपने वोट की सुरक्षा के लिए आवाज उठाना पड़ रहा है.
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वोटर की लड़ाई – हकीकत या सियासी बयानबाज़ी?
ब्लॉग की बात करें तो यह सवाल खुद से भी पूछा जाना चाहिए –
क्या सचमुच आम वोटर को आज ,अपने ही वोट को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है?
ग्राउंड रिपोर्ट्स और स्थानीय चुनावों की खबरें बताती हैं कि कई जगहों पर मतदाता सूचियों से नाम गायब होने, ईवीएम में गड़बड़ी, या फर्जीवाड़े की शिकायतें आती रही हैं.ऐसे में तेजस्वी का यह बयान केवल राजनीति तक सीमित नहीं रह जाता, बल्कि आम मतदाता की चिंता को भी आवाज़ देता है.
सोशल मीडिया पर क्या चल रहा है?
जैसे ही यह पोस्ट सामने आया X पर यूज़र्स ने अपनी-अपनी राय रखना शुरू कर दिया.
किसी ने इसे जनता की आवाज बताया है
तो किसी ने कहा कि तेजस्वी यादव मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि, सच्चाई ये है कि बयान छोटा है. लेकिन इसकी गूंज दूर तक जा रही है.
निष्कर्ष
लोकतंत्र में वोट सिर्फ एक अधिकार नहीं, सबसे बड़ी ताक़त है.और जब किसी नेता को यह कहना पड़े कि वोटर को अब अपने वोट को बचाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है – तो यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सेहत पर एक गंभीर सवाल है.
तेजस्वी यादव के इस बयान को समर्थन दें या आलोचना करें लेकिन इससे निकलने वाली बहस ज़रूरी है – क्योंकि लोकतंत्र की बुनियाद वोटर के भरोसे पर ही टिकी होती है.
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















