आयात शुल्क हटने से कपास संकट गहराया, केजरीवाल ने सरकार को घेरा
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 8 सितंबर 2025:भारत के कपास किसान एक बार फिर गंभीर आर्थिक संकट की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है .केंद्र सरकार द्वारा अमेरिका से आयात होने वाली कपास पर लगी 11 प्रतिशत ड्यूटी को हटाकर 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है.इस फैसले ने न केवल कपास उत्पादक करने वालो किसानों को चिंता में डाल दिया है. बल्कि इससे देश की मंडियों पर भी गहरा असर पड़ने की आशंका जताया जा रहा है.
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है और उन्होंने लिखा है कि टेक्सटाइल कंपनियों ने पहले ही अमेरिका से सस्ती कपास मंगवा ली है.ऐसे में भारतीय किसानों की फसल मंडियों में बिकेगी नहीं और वे कर्ज़ के बोझ तले दबकर आत्महत्या की कगार पर पहुँच जाएंगे
किसानों पर बढ़ता संकट
भारत देश के लाखों किसान कपास की खेती पर निर्भर हैं. किसानों का कहना है कि इस साल उत्पादन लागत पहले से ही बढ़ गई है. खाद, बीज और डीजल के दाम में बढ़ोतरी ने खेती को महंगा बना दिया है.ऊपर से अगर मंडी में उनकी फसल की कीमत गिर जाएगी तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी.
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि जब सस्ती विदेशी कपास बाजार में आ जाएगी तो देशी कपास की मांग घटेगी. इससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी नहीं मिल पाएगा.ग्रामीण इलाकों में इससे बेरोजगारी और पलायन की समस्या और गंभीर हो सकती है.
टेक्सटाइल उद्योग बनाम किसान
सरकार का तर्क है कि कपास आयात शुल्क हटाने से टेक्सटाइल उद्योग को सस्ती कच्ची सामग्री मिलेगी और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा. भारत का वस्त्र उद्योग दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है.जो लाखों लोगों को रोजगार देता है.उद्योगपति लंबे समय से सरकार से कपास पर आयात शुल्क कम करने की मांग कर रहे थे.
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लेकिन किसानों के संगठनों का कहना है कि सरकार केवल उद्योगपतियों को राहत दे रही है.जबकि किसानों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. उनका कहना है कि अगर आयात शुल्क हटाना ही था तो सरकार को किसानों के लिए भी राहत पैकेज लाना चाहिए था.
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
केंद्र सरकार के इस फैसले पर विपक्ष ने जमकर निशाना साधा है. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मोदी सरकार ने चोरी-छिपे यह फैसला लिया और किसानों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया है. उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि अगर किसानों को न्याय नहीं मिला तो आंदोलन और तेज़ होगा.
वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कहना है कि विपक्ष केवल राजनीतिक लाभ के लिए किसानों की भावनाओं से खेल रहा है.सरकार का उद्देश्य टेक्सटाइल उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाना है ताकि देश को वैश्विक बाजार में बढ़त मिल सके.
किसान संगठनों की चेतावनी
पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कपास उत्पादक राज्यों में किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया तो वे आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरेंगे. किसान नेताओं का कहना है कि कपास की उचित कीमत न मिलने से किसानों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ सकती हैं.
समाधान क्या हो सकता है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस विवाद का समाधान संतुलित नीति में है.सरकार को एक ओर टेक्सटाइल उद्योग के हितों को देखना होगा, वहीं किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी सुनिश्चित करनी होगी. साथ ही, किसानों को सीधे सब्सिडी, बीमा योजना और कर्ज़ माफी जैसी राहत भी दी जा सकती है.
निष्कर्ष
कपास पर आयात शुल्क हटाना अभी भी बहस का मुद्दा है.एक तरफ उद्योग जगत इसे आर्थिक सुधार की दिशा में कदम मान रहा है, तो दूसरी तरफ किसान इसे अपने अस्तित्व पर सीधा प्रहार बता रहे हैं.
अरविन्द केजरीवाल ने इस विषय को एक मुद्दा बनया जो राजनीतिक रंग दे गया है दिया है. अब आगे यह देखना दिलचस्प होगा की किसनो की आवाज को सरकार सुनता है या फिर उद्योगपतियों की जो मांग है उसको प्राथमिकता देती है.
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















