5000 साल पुरानी विसंगतियों को दूर करने की मांग
तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ,23 सितंबर 2025 भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव एक गहरी जड़ें जमाए हुई समस्या है, जो हजारों वर्षों से सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करती रही है.समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज लखनऊ में इस मुद्दे पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि आज भी “स्वजातीय, वर्चस्ववादी और ताकतवर लोगों को हर जगह बैठाया हुआ है” और 5000 साल पुरानी विसंगतियों को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
उनका यह बयान न केवल मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य बल्कि सामाजिक चेतना के लिए भी अहम माना जा रहा है.
अखिलेश यादव का बयान
समाजवादी पार्टी के आधिकारिक X (Twitter) अकाउंट से साझा किए गए बयान में अखिलेश यादव ने स्पष्ट कहा कि,
“स्वजातीय, वर्चस्ववादी और ताकतवर लोगों को हर जगह बैठाया हुआ है.यह जो 5000 साल पुरानी बातें थी उनको दूर कैसे करेंगे, बाबा साहब को जाति की वजह से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा.
इस बयान से साफ है कि अखिलेश यादव जातिगत अन्याय और असमानता की समस्या को केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं मानते, बल्कि इसे सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों की लड़ाई से जोड़ते हैं.
5000 साल पुराना भेदभाव: क्यों ज़रूरी है इसका अंत?
भारत की सामाजिक संरचना में जाति व्यवस्था ने हमेशा एक गहरी खाई बनाई है.ऐतिहासिक रूप से यह व्यवस्था कुछ वर्गों को विशेषाधिकार और कुछ को वंचना देती रही है.
सामाजिक असमानता: शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक भागीदारी पर ऊंची जातियों का वर्चस्व.
आर्थिक पिछड़ापन: निम्न और वंचित वर्गों को संसाधनों से दूर रखा गया.
सांस्कृतिक भेदभाव: धार्मिक और सांस्कृतिक मंचों पर भी समान अवसर नहीं.
अखिलेश यादव का तर्क यही है कि अगर इन विसंगतियों को जड़ से खत्म नहीं किया गया, तो लोकतंत्र का असली मकसद अधूरा रह जाएगा.
बाबा साहब और जाति का संघर्ष
डॉ. भीमराव आंबेडकर, जिन्हें बाबा साहब के नाम से जाना जाता है, खुद जातिगत भेदभाव का शिकार हुए थे.उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के लिए अपना पूरा जीवन संघर्ष में लगाया.
उन्होंने संविधान में आरक्षण व्यवस्था देकर सामाजिक न्याय की नींव रखी.
शिक्षा और राजनीति में वंचित वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया.
सामाजिक क्रांति के लिए जाति उन्मूलन को सबसे अहम माना.
अखिलेश यादव का यह बयान बाबा साहब के विचारों की उसी विरासत को आगे बढ़ाता है.
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आज की राजनीति और जातिगत समीकरण
भारतीय राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा अहम भूमिका निभाते रहा हैं.
समाजवादी पार्टी लंबे समय से सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के हक की आवाज़ उठाती रही है.
दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग SP की राजनीति के केंद्र में रहा है.
आज भी जातिगत भेदभाव और सत्ता में वर्चस्व का मुद्दा भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है.
समाधान की दिशा: अखिलेश यादव का विजन
अखिलेश यादव का मानना है कि केवल भाषणों और नारेबाज़ी से जातिगत भेदभाव खत्म नहीं होगा. इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे:
समान अवसर की गारंटी – शिक्षा, रोजगार और राजनीति में वंचित वर्गों की भागीदारी.
आरक्षण का सख्त पालन – संविधान में दिए गए आरक्षण को पूरी ईमानदारी से लागू करना.
सामाजिक जागरूकता – समाज में जाति आधारित सोच को खत्म करने के लिए अभियान चलाना.
राजनीतिक इच्छाशक्ति – सत्ता और संस्थानों में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना.
सोशल मीडिया पर चर्चा
Samajwadi Party के इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर बड़ी बहस छिड़ गई.
कई लोगों ने अखिलेश यादव के बयान का समर्थन किया और इसे सच्चाई की आवाज़ बताया.
वहीं कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि जातिगत राजनीति को खत्म करने के लिए केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
निष्कर्ष
अखिलेश यादव का यह बयान न केवल जातिगत भेदभाव की वास्तविकता को उजागर करता है, बल्कि सामाजिक समानता की दिशा में गंभीर चर्चा को भी जन्म देता है. 5000 साल पुरानी सामाजिक विसंगतियों को मिटाने के लिए राजनीति और समाज दोनों को मिलकर आगे बढ़ना होगा.
भारत तभी असली लोकतंत्र कहलाएगा जब हर नागरिक को, चाहे उसका धर्म, जाति या वर्ग कोई भी हो, समान अधिकार और अवसर मिलें.
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















