सीमांचल में ओवैसी की एंट्री: क्यों मची बिहार की सियासत में खलबली?

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Kumar Ranjit

बिहार
सीमांचल में ओवैसी की एंट्री: क्यों मची बिहार की सियासत में खलबली?

असदुद्दीन ओवैसी का सीमांचल दौरा: राजनीति में हलचल और नींद हराम

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 27 सितंबर 2025 – ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अपने सीमांचल दौरे को लेकर बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (Twitter) पर लिखा है कि –
“मेरे सीमांचल दौरे से बहुतों की नींद हराम हो गई है”

उनका यह बयान न सिर्फ विपक्षी दलों को सीधे तौर पर चुनौती देता है, बल्कि बिहार की सियासत में नये समीकरण बनने का संकेत भी देता है.सीमांचल, जहां मुस्लिम आबादी का बड़ा प्रतिशत है, लंबे समय से ओवैसी की राजनीति का केंद्र रहा है. ऐसे में उनका दौरा और बयान बिहार चुनावी राजनीति को गहराई से प्रभावित कर सकता है.

असदुद्दीन ओवैसी का सीमांचल दौरा: राजनीति में हलचल और नींद हराम

सीमांचल: राजनीतिक रूप से संवेदनशील इलाका

सीमांचल बिहार का वह इलाका है, जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले आते हैं. यह क्षेत्र सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम माना जाता है.

यहाँ मुस्लिम आबादी लगभग 40-45% के बीच है.

सीमांचल की राजनीति अब तक कांग्रेस, राजद और जदयू जैसी पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमता रहा है.

लेकिन 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनावों में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने यहाँ अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराया है.

ओवैसी का यह दौरा ऐसे समय में हुआ है, जब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियाँ चरम पर हैं. ऐसे में उनका सीधा संदेश यही है कि AIMIM को नज़रअंदाज करना अब किसी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

ओवैसी के दौरे से क्यों बढ़ी बेचैनी?

ओवैसी ने जब लिखा कि उनके दौरे से “बहुतों की नींद हराम हो गई है”, तो यह संकेत साफ है कि उनका इशारा बिहार की सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों ही पार्टियों की ओर है.

राजद (RJD) – राजद लंबे समय से मुस्लिम-यादव समीकरण पर आधारित राजनीति करते आया है .ओवैसी की एंट्री इस समीकरण में सेंध लगा सकता है.

कांग्रेस (INC) – सीमांचल में कांग्रेस की पकड़ पारंपरिक रूप से मजबूत रहा है .लेकिन हाल के वर्षों में ओवैसी ने कांग्रेस के वोट बैंक पर असर डाला है.

जेडीयू और बीजेपी – एनडीए गठबंधन भी सीमांचल में अपनी पैठ बनाने की कोशिश करता रहा है, लेकिन यहाँ AIMIM की उपस्थिति उनके लिए अतिरिक्त चुनौती पेश करता है.

AIMIM की रणनीति

ओवैसी की पार्टी AIMIM लगातार सीमांचल को अपना राजनीतिक गढ़ बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है.

पार्टी ने स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दिया है, जैसे शिक्षा, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और बाढ़ की समस्या.

AIMIM का प्रयास यह दिखाने का है कि वह सिर्फ मुस्लिम राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सीमांचल क्षेत्र के विकास को लेकर प्रतिबद्ध है.

यही वजह है कि ओवैसी का हर दौरा यहाँ सियासी हलचल मचा देता है.

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चुनावी समीकरणों पर असर

बिहार चुनाव 2025 के नज़दीक आते ही, हर राजनीतिक दल सीमांचल को नजर में रखकर रणनीति बना रहा है.ओवैसी की सक्रियता के कई संभावित असर हो सकते हैं.

राजद और कांग्रेस की चिंता बढ़ेगी – मुस्लिम वोट बैंक में विभाजन की संभावना.हलाकि ऐसा कुछ होने की संभावना नहीं है क्योकि राजद और कांग्रेस दोनों इंडिया महागठबंधन के हिस्सा है और वो लोग एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे.

एनडीए के लिए अप्रत्यक्ष लाभ – विपक्षी वोटों में बंटवारा होने से भाजपा-जदयू को सीटें हासिल करने में फायदा मिल सकता है.

AIMIM की सीटें बढ़ सकती हैं – अगर ओवैसी का सीधा जुड़ाव ज़मीनी स्तर पर और गहराता है, तो AIMIM सीमांचल की कई सीटों पर मजबूत दावेदार बन सकती है.

ओवैसी की राजनीतिक शैली

ओवैसी अपनी सीधी और बेबाक बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं.उनका हर ट्वीट और भाषण सुर्खियों में आ जाता है.

वे खुद को संविधान और लोकतंत्र की आवाज कहते हैं.

उनका दावा है कि वे उन लोगों की राजनीति करते हैं, जिन्हें पारंपरिक दलों ने हमेशा नजरअंदाज़ किया.

यही वजह है कि सीमांचल जैसे उपेक्षित और पिछड़े इलाकों में उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है.

निष्कर्ष

असदुद्दीन ओवैसी का सीमांचल दौरा सिर्फ एक राजनीतिक यात्रा भर नहीं है, बल्कि बिहार चुनाव 2025 से पहले आने वाले बड़े बदलाव का संकेत भी है. उनके X (Twitter) पोस्ट – “मेरे सीमांचल दौरे से बहुतों की नींद हराम हो गई है” – ने यह साफ कर दिया है कि AIMIM अब बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है.

सीमांचल की जनता किसे अपना समर्थन देती है, यह तो चुनाव परिणाम तय करेंगे, लेकिन इतना तय है कि ओवैसी के इस दौरे ने हर राजनीतिक दल की धड़कनें तेज कर दी हैं.

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