लद्दाख की छठी अनुसूची की मांग क्यों बनी राष्ट्रीय बहस का मुद्दा?
तीसरा पक्ष डेस्क,नई दिल्ली/पटना: लद्दाख के प्रसिद्ध इंजीनियर, शिक्षा सुधारक और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हालिया गिरफ्तारी ने देशभर में एक नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है. वांगचुक की गिरफ्तारी ने भारत भर में तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है. “आइस स्टूपा” तकनीक से विश्वभर में प्रसिद्ध वांगचुक केवल एक वैज्ञानिक या सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि लद्दाख की अस्मिता और पर्यावरण संरक्षण की आवाज़ भी बन चुके हैं. उनकी गिरफ्तारी ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर सरकार को उनसे इतना डर क्यों है और छठी अनुसूची की मांग अचानक सुर्ख़ियों में क्यों आ गई है.
सोनम वांगचुक: लद्दाख की अस्मिता और पर्यावरण की लड़ाई का प्रतीक

सोनम वांगचुक सिर्फ एक इंजीनियर नहीं, बल्कि लद्दाख की पहचान और पारिस्थितिकी के प्रहरी माने जाते हैं. उनका काम तकनीक, शिक्षा और पर्यावरण—तीनों को जोड़कर एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत करता है, जो आधुनिक विकास और प्रकृति के बीच संतुलन की सीख देता है. “थ्री इडियट्स” फिल्म के फुन्सुख वांगडू से प्रेरणा देने वाले सोनम वांगचुक को 2018 में रैमॉन मैग्सेसे अवॉर्ड मिला। उनकी वैश्विक पहचान ने उनकी मुहिम को और प्रभावशाली बनाया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यही अंतरराष्ट्रीय समर्थन सरकार के लिए असहजता का कारण बन रहा है.
- पर्यावरण को बचाने की अनोखी दृष्टि: वांगचुक का मानना है कि हिमालयी इलाकों में अंधाधुंध सड़क निर्माण, बड़े होटल और अनियंत्रित पर्यटन ग्लेशियरों के लिए खतरा हैं. उन्होंने पानी की कमी से जूझते लद्दाख के लिए “आइस स्टूपा” जैसी अभिनव तकनीक बनाई, जो सर्दियों में पानी को बर्फ के रूप में संग्रहित कर गर्मियों में धीरे-धीरे पिघलकर खेतों तक पहुंचाती है. उनका संदेश साफ़ है: “स्थायी विकास का रास्ता प्रकृति से लड़ना नहीं, उसके साथ चलना है.”
- शिक्षा सुधार की नई परिभाषा: 1988 में उन्होंने SECMOL नामक संस्था शुरू की, जो लद्दाख के युवाओं को स्थानीय संस्कृति, विज्ञान और व्यवहारिक शिक्षा के साथ तैयार करती है. यह मॉडल किताबों से आगे बढ़कर पर्यावरण और जीवन कौशल पर जोर देता है. वांगचुक मानते हैं कि स्कूल तभी सफल हैं जब वे बच्चों को अपने इलाके की ज़रूरतों और चुनौतियों के हिसाब से शिक्षित करें.
- छठी अनुसूची की मुहिम: 2019 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बावजूद लद्दाख को जनजातीय और भूमि अधिकारों की ठोस गारंटी नहीं मिल पाई. वांगचुक लगातार मांग कर रहे हैं कि लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि स्थानीय समुदाय को संसाधनों, जमीन और संस्कृति की रक्षा का संवैधानिक अधिकार मिल सके. उनके मुताबिक यह सिर्फ राजनीतिक मांग नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा का सवाल है.
- शांतिपूर्ण आंदोलन और गिरफ्तारी: वांगचुक ने कई बार चरम मौसम में अहिंसक अनशन और पदयात्राएं कीं, जिससे पूरे देश का ध्यान लद्दाख की ओर गया. हाल ही में इसी तरह के आंदोलन को प्रशासन ने “कानून-व्यवस्था का खतरा” बताकर रोकने की कोशिश की और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह कार्रवाई जनता की आवाज़ दबाने का प्रयास है.
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सोनम वांगचुक के प्रमुख कार्य और उपलब्धियाँ

1. नवोन्मेषी तकनीकी परियोजनाएँ
- आइस स्टूपा: लद्दाख की सर्द जलवायु में पानी को कृत्रिम ग्लेशियर के रूप में संग्रहित करने की अनूठी तकनीक विकसित की. यह गर्मियों में धीरे-धीरे पिघलकर खेती और पेयजल की जरूरतों को पूरा करती है.
- सौर ऊर्जा आधारित भवन निर्माण: कम तापमान वाले क्षेत्रों के लिए ऊर्जा-कुशल घरों का डिज़ाइन, जो सर्दियों में बिना हीटर के भी गर्म रहते हैं.
2. शिक्षा सुधार में योगदान
- SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh) की स्थापना 1988 में की, जिससे लद्दाखी युवाओं के लिए व्यवहारिक और स्थानीय ज़रूरतों के अनुरूप शिक्षा का मार्ग खुला.
- Operation New Hope पहल के माध्यम से सरकारी स्कूलों में पाठ्यक्रम सुधार और शिक्षकों का प्रशिक्षण कराया.
3. पर्यावरण संरक्षण में नेतृत्व
- जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर पिघलने की समस्या पर वैश्विक मंचों पर लद्दाख का पक्ष रखा.
- स्थानीय समुदायों को टिकाऊ खेती, जल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की तकनीक सिखाई.
4. सामाजिक और राजनीतिक पहल

- लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मुहिम चलाई, ताकि भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए संवैधानिक अधिकार मिल सकें.
- युवाओं और स्थानीय संगठनों को शांतिपूर्ण आंदोलन और लोकतांत्रिक संवाद के लिए प्रेरित किया.
5. पुरस्कार और सम्मान
- रैमॉन मैग्सेसे अवॉर्ड (2018): शिक्षा और सामुदायिक विकास में योगदान के लिए.
- Rolex Award for Enterprise (1993): ठंडे क्षेत्रों में सौर हीटिंग नवाचार के लिए.
- कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सतत विकास और शिक्षा सुधार के लिए सम्मानित.
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छठी अनुसूची की मांग: लद्दाख की असली चिंता

लद्दाख को 2019 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा तो मिला, लेकिन स्वायत्तता और भूमि-संसाधनों की सुरक्षा के लिए अब तक ठोस कानूनी ढांचा नहीं बन पाया.
- छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रीय परिषदों को भूमि, प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय संस्कृति की रक्षा का संवैधानिक अधिकार मिलता है.
- लद्दाख के स्थानीय लोग डरते हैं कि बाहरी पूंजी निवेश और खनन परियोजनाएं उनकी पारंपरिक जीवनशैली और नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
- सोनम वांगचुक लगातार पर्यावरण और स्थानीय जनजातीय अधिकारों के लिए इस संवैधानिक संरक्षण की मांग कर रहे थे.
क्या सरकार वांगचुक से डर गई है?

यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या सरकार को सच में एक पर्यावरण कार्यकर्ता से खतरा है.
- उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान और शांतिपूर्ण आंदोलन ने सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है.
- वांगचुक की अपील पर हजारों लोग लद्दाख और अन्य राज्यों में प्रदर्शन कर चुके हैं.
- विशेषज्ञ मानते हैं कि यह गिरफ्तारी एक प्रकार का “डराने का संदेश” है, ताकि बड़े पैमाने पर विरोध न फैल सके.
विपक्ष का तीखा हमला
आम आदमी पार्टी के संजय सिंह सहित कई विपक्षी नेताओं ने सरकार की इस कदम की कड़ी निंदा की है। राजद सांसद मनोज झा ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” करार देते हुए कहा, “पद्मश्री पुरस्कार विजेता, जिन्होंने हिमालयी क्षेत्र में जलवायु संरक्षण के लिए अनुकरणीय कार्य किया, उनके खिलाफ NSA का इस्तेमाल चिंताजनक है.” कांग्रेस और आप जैसी पार्टियों ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की है.
जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया Xसहित कई मंचों पर नागरिकों, मशहूर हस्तियों, और कार्यकर्ताओं ने वांगचुक के समर्थन में आवाज उठाई है. एक यूजर ने लिखा, “सोनम वांगचुक ने लद्दाख को जल संकट से बचाने के लिए जीवन समर्पित किया, और बदले में उन्हें जेल? यह अन्याय है!” वहीं, कुछ लोग सरकार के पक्ष में तर्क दे रहे हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कठोर कदम जरूरी हैं.
आगे क्या?
वांगचुक की रिहाई की मांग तेज हो रही है, और लद्दाख में प्रदर्शन और तीव्र हो सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केंद्र और लद्दाख के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है. पर्यावरणविदों का कहना है कि वांगचुक जैसे लोगों की आवाज को दबाने से भारत के सतत विकास लक्ष्यों को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही साथ अंतराष्ट्रीय मंचो पर भी भारत की छवि को नुकसान पहुँच सकता है.

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