अशोका विजयादशमी: आत्म-विजय और अहिंसा का पर्व

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Advocate Ajit Kumar

भारततीसरा पक्ष आलेख
अशोका विजयादशमी: आत्म-विजय और अहिंसा का पर्व

कलिंग युद्ध से अशोक का हृदय परिवर्तन: तलवार से शांति तक का सफर

तीसरा पक्ष डेस्क,पटना: भारत में विजयादशमी या दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना जाता है.
लेकिन इस दिन का एक और ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व भी है – इसे अशोका विजयादशमी के रूप में भी मनाया जाता है.

यह पर्व महान सम्राट अशोक महान की उस ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है, जब उन्होंने तलवार और हिंसा का रास्ता छोड़कर अहिंसा और करुणा का मार्ग अपनाया.

अशोका विजयादशमी कब मनाई जाती है?

अशोका विजयादशमी हर साल विजयादशमी (दशहरा) के दिन ही मनाई जाती है.
जैसे दशहरा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है, उसी दिन इसे अशोका विजयादशमी भी कहा जाता है.

यानी रावण पर राम की विजय का पर्व और अशोक की आत्म-विजय – दोनों एक ही दिन याद किए जाते हैं.

कलिंग युद्ध और अशोका विजयादशमी का ऐतिहासिक महत्व

अशोका विजयादशमी: आत्म-विजय और अहिंसा का पर्व
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विजयादशमी के दिन ही सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का मार्ग छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया था.
कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) में लाखों लोगों की मौत हुई. कलिंग युद्ध में हजारों सैनिकों और लाखों आम लोगों की मौत से धरती लहूलुहान हो गई. कहा जाता है कि युद्धभूमि देखकर सम्राट अशोक की आत्मा भीतर तक हिल गई.

इतिहास बताता है कि युद्धभूमि की त्रासदी देखकर सम्राट अशोक की आत्मा विचलित हो गई. उन्होंने तलवार छोड़कर अहिंसा, करुणा और शांति के मार्ग को अपनाया.

यही परिवर्तन का क्षण अशोका विजयादशमी के रूप में याद किया जाता है.
इस दिन को उस विजय के रूप में देखा जाता है, जो बाहरी शत्रु पर नहीं, बल्कि स्वयं की हिंसक प्रवृत्तियों पर मिली थी. उन्होंने महसूस किया कि असली जीत दूसरों को हराने में नहीं, बल्कि खुद की हिंसक प्रवृत्तियों को हराने में है.

इसी क्षण उन्होंने तलवार को हमेशा के लिए त्याग दिया और बौद्ध धर्म को अपनाया. यहीं से शुरू हुआ अशोक का नया जीवन – एक सम्राट से “धम्म सम्राट” बनने का सफर.

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क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
अशोका विजयादशमी: आत्म-विजय और अहिंसा का पर्व
  • आत्म-विजय का प्रतीक – रावण पर राम की विजय बाहरी युद्ध है, लेकिन अशोक की विजय आत्मिक युद्ध की जीत है.
  • अहिंसा और शांति का संदेश – यह दिन याद दिलाता है कि असली ताकत हथियारों से नहीं, बल्कि करुणा और प्रेम से आती है.
  • बौद्ध धर्म का प्रसार – अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के कई देशों में बौद्ध विचारधारा फैली.
  • समाज सुधार का अवसर – यह पर्व दलित-बहुजन समाज के लिए भी विशेष महत्व रखता है, क्योंकि अशोक ने समानता और समरसता की राह दिखाई थी.
आज के समय में प्रासंगिकता

आज जब समाज में नफ़रत, हिंसा और कट्टरता की घटनाएँ बढ़ रही हैं, अशोका विजयादशमी हमें सही रास्ता दिखाती है. अशोका विजयादशमी का मूल संदेश है – आत्म-विजय ही सबसे बड़ी विजय है.

  • यह पर्व बताता है कि युद्ध और हिंसा केवल विनाश लाते हैं.
  • असली ताक़त करुणा, प्रेम और भाईचारे में छिपी होती है.
  • अहिंसा अपनाकर भी दुनिया को जीता जा सकता है.
  • यह पर्व हमें शांति, समानता और करुणा की ओर लौटने का संदेश देता है.
  • दलित-बहुजन समाज के लिए भी यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि अशोक ने वर्ण-भेद और ऊँच-नीच से परे समरस समाज का सपना दिखाया था.
निष्कर्ष

विजयादशमी जहाँ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, वहीं अशोका विजयादशमी आत्म-विजय और अहिंसा का पर्व है.
यह दिन इतिहास का वह क्षण याद दिलाता है जब एक महान सम्राट ने रक्तपात छोड़कर करुणा और शांति का मार्ग अपनाया और पूरी मानवता को नया रास्ता दिखाया.

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