रोजगार दो – सामाजिक न्याय दो: आम आदमी पार्टी की पदयात्रा बनी उत्तर प्रदेश की नई जनलहर

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Ajit Kumar

भारत
रोजगार दो – सामाजिक न्याय दो: आम आदमी पार्टी की पदयात्रा बनी उत्तर प्रदेश की नई जनलहर

बेरोजगारी और असमानता के ख़िलाफ़ नई जनयात्रा

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना , 13 नवंबर 2025 — उत्तर प्रदेश में बेरोज़गारी और सामाजिक असमानता अब सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं रही, बल्कि यह सड़कों पर उतर आई है.इसी दर्द को आवाज़ देने के लिए आम आदमी पार्टी (AAP) ने शुरू की है एक ऐतिहासिक पहल —रोज़गार दो – सामाजिक न्याय दो पदयात्रा।

यह यात्रा पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय सिंह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों से होकर गुजर रही है.
यह केवल एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उन लाखों युवाओं और वंचित तबकों की आवाज़ बन चुकी है,
जो वर्षों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

युवाओं की उम्मीदों की यात्रा

पदयात्रा के दूसरे दिन ही भीड़ का जोश देखने लायक था.
छात्र, बेरोज़गार युवक, किसान परिवारों के बेटे-बेटियां, और यहां तक कि बुज़ुर्ग भी इस यात्रा का हिस्सा बने.
हर किसी के हाथ में एक ही नारा था — रोज़गार दो, न्याय दो!

यह नारा सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक पीढ़ी की पुकार है.
AAP सांसद संजय सिंह ने कहा की,

हम उस उत्तर प्रदेश की लड़ाई लड़ रहे हैं जहां हर युवा को नौकरी मिले और हर वंचित को सम्मान.

उनका यह संदेश साफ़ था — अब सिर्फ चुनावी वादे नहीं, नीतिगत बदलाव चाहिए.

राजनीति से परे एक सामाजिक आंदोलन

दिलचस्प बात यह है कि यह पदयात्रा किसी एक समुदाय या जाति तक सीमित नहीं है.
इसका मूल लक्ष्य है — समान अवसर, समान हक़, समान न्याय.

AAP ने इस अभियान को राजनीति से ऊपर उठाकर सामाजिक चेतना का रूप दिया है.
युवाओं से लेकर शिक्षकों, कर्मचारियों, और सामाजिक संगठनों तक, सभी वर्गों का इसमें जुड़ाव देखा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश में बदलाव की आहट

उत्तर प्रदेश, जो लंबे समय से बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता के मुद्दों से जूझ रहा है.
वह अब राजनीतिक रूप से एक नए मोड़ पर खड़ा है.
AAP की यह पदयात्रा इस बात का संकेत है कि प्रदेश की जनता अब जवाब चाहती है — विकास के नाम पर नौकरी कहां है?

2017 से 2025 तक, प्रदेश के लाखों बेरोज़गारों ने भर्ती घोटालों, पेपर लीक, और राजनीतिक भेदभाव का सामना किया है.
इसी पृष्ठभूमि में रोज़गार दो – सामाजिक न्याय दो आंदोलन एक वैकल्पिक राजनीतिक दिशा प्रदान कर रहा है.

संजय सिंह का संदेश: सत्ता नहीं, व्यवस्था बदलनी है

AAP सांसद संजय सिंह, जो अपने बेबाक और जनमुखी तेवरों के लिए जाने जाते हैं,
ने इस यात्रा के दौरान कहा कि,

हम सत्ता पाने नहीं, व्यवस्था बदलने निकले हैं.
जब तक उत्तर प्रदेश का हर युवा सम्मानजनक रोज़गार नहीं पाता,
जब तक दलित, पिछड़े और गरीबों को समान न्याय नहीं मिलता —तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा.

उनकी यह बात भीड़ के नारों में गूंज उठी.
लोगों ने ताली बजाकर इस विचार को समर्थन दिया,जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जनता अब सिर्फ नारों से नहीं, नीतियों से बदलाव चाहती है.

पदयात्रा का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पदयात्रा उत्तर प्रदेश की राजनीति में,एक नया विमर्श पैदा कर रही है — विकास बनाम अवसर.
जहां पहले धर्म और जाति की राजनीति हावी थी, अब रोज़गार और सामाजिक न्याय की बात होने लगी है.

AAP इस बदलाव को एक दीर्घकालिक रणनीति के रूप में देख रही है,जिसमें पार्टी खुद को जनसंघर्ष की पार्टी के रूप में स्थापित करना चाहती है.

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लोगों की आवाज़, डिजिटल युग की ताकत

इस यात्रा के दौरान AAP के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल्स ने लगातार लाइव कवरेज,वीडियो संदेश और जनता की राय साझा की.
हर ट्वीट और हर वीडियो ने युवाओं के दिलों में जोश भरा है.

सिर्फ X (Twitter) पर ही नहीं, Facebook, Instagram और YouTube पर भी इस पदयात्रा के लाखों व्यूज़ और कमेंट्स मिले.
यह साबित करता है कि डिजिटल युग में आंदोलन केवल सड़कों तक सीमित नहीं रहते,बल्कि ऑनलाइन भी उतनी ही तेज़ी से फैलते हैं.

निष्कर्ष: जनआवाज़ से नीति तक

रोज़गार दो – सामाजिक न्याय दो केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की नई राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन चुका है.
यह यात्रा यह याद दिलाती है कि जब जनता एकजुट होती है,तो सरकारें भी अपने वादों का हिसाब देने को मजबूर हो जाती हैं.

AAP की यह पहल यह साबित करती है कि राजनीति का अर्थ केवल चुनाव जीतना नहीं,बल्कि समाज के सबसे वंचित वर्गों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ना है.

अगर यह पदयात्रा इसी गति से आगे बढ़ती रही,तो यह न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश की राजनीति में रोज़गार और सामाजिक न्याय को केंद्र में ला सकती है.

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