शिक्षा में भेदभाव नहीं, समानता हो:अखिलेश यादव

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Ajit Kumar

भारत
शिक्षा में भेदभाव नहीं, समानता हो:अखिलेश यादव

शिक्षा में समानता ही असली समाजवाद है — अखिलेश यादव

तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ 18 अक्टूबर 2025—समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव ने एक बार फिर सामाजिक न्याय और शिक्षा में समानता की दिशा में अपनी मजबूत प्रतिबद्धता को दोहराया है.अपने आधिकारिक X (Twitter) अकाउंट पर साझा संदेश में उन्होंने कहा है कि,

ये भेदभाव का झगड़ा 5 हज़ार साल पुराना है. जिसके साथ अन्याय हो रहा है सब एक पीड़ा के सूत्र से बंधे लोग हैं, शिक्षा में भेदभाव नहीं होना चाहिए.

अखिलेश यादव का यह वक्तव्य केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है — जो शिक्षा, समान अवसर और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में गंभीर सोच को उजागर करता है.

शिक्षा — समानता का सबसे बड़ा आधार

शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है. लेकिन जब इसमें जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव होने लगे, तो समाज की जड़ें कमजोर पड़ जाता हैं.अखिलेश यादव ने इस बात पर जोर दिया है कि,शिक्षा में भेदभाव खत्म किए बिना सामाजिक समानता संभव नहीं है .

आज भी देश के कई हिस्सों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और पिछड़े समुदायों को शिक्षा प्राप्त करने में तमाम रुकावटों का सामना करना पड़ता है.सरकारी स्कूलों की स्थिति, कोचिंग कल्चर की बढ़ती खाई, और निजी संस्थानों की फीस — ये सब असमानता को और गहरा करता हैं.

समाजवादी पार्टी इस सोच के साथ आगे बढ़ रही है कि हर बच्चे को गुणवत्ता-युक्त शिक्षा मिले, चाहे उसका सामाजिक या आर्थिक दर्जा कुछ भी हो.

समाजवादी विचारधारा — सबको समान अवसर

अखिलेश यादव की सोच उस समाजवादी विचारधारा से जुड़ी है, जिसने हमेशा कमजोर वर्गों, दलितों, पिछड़ों और वंचितों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है.
उनकी बातों में एक स्पष्ट संदेश है,
.
जो अन्याय झेल रहा हैं, वे सब एक ही पीड़ा के सूत्र में बंधे हुए हैं.

यह वाक्य न केवल संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति है, बल्कि एकता का आह्वान भी करता है.
समाजवादी पार्टी के नीतिगत निर्णयों में यह भावना झलकता है,

सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के प्रयास

छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार

लैपटॉप वितरण जैसी पहलें

पिछड़े और दलित वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा तक पहुंचाने की नीति

इन सबके ज़रिए पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश किया है कि शिक्षा सबकी है, किसी वर्ग की नहीं.

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5 हज़ार साल पुराने भेदभाव को चुनौती

अखिलेश यादव का यह कहना कि, यह भेदभाव का झगड़ा 5 हजार साल पुराना है — भारतीय समाज की ऐतिहासिक सच्चाई को सामने लाता है.
हजारों वर्षों से समाज में ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव और अवसरों की असमानता की जड़ रहा हैं.

लेकिन 21वीं सदी के भारत में यह सवाल पहले से ज्यादा प्रासंगिक है,
क्या हम अब भी शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत को किसी की जाति या पृष्ठभूमि के हिसाब से तय करेंगे?

अखिलेश यादव ने यह बात ऐसे समय पर उठाई है जब देशभर में आरक्षण, जाति जनगणना, और शिक्षा में अवसरों की समानता पर बहस तेज है.उनका संदेश एक व्यापक सामाजिक सुधार की दिशा में प्रेरक कदम माना जा रहा है.

समाज को जोड़ने वाला संदेश

अखिलेश यादव ने हमेशा कहा है कि,समाज को तोड़ने वाली राजनीति से देश नहीं, समाज कमजोर होता है.
उनका ताजा बयान भी समाज को जोड़ने की दिशा में दिया गया संदेश है.
भेदभाव का अंत केवल कानून या योजनाओं से नहीं, बल्कि सोच में बदलाव से आता है.

समाजवादी पार्टी का मानना है कि शिक्षा ही वह माध्यम है जो पीढ़ियों के बीच मौजूद असमानता को मिटा सकती है.
हर बच्चे को समान अवसर मिले — यही सच्चे समाजवाद की पहचान है.

निष्कर्ष

अखिलेश यादव का यह संदेश केवल राजनीतिक विमर्श नहीं, बल्कि भारत की सामाजिक चेतना के लिए एक गूंजता हुआ आह्वान है.
उनकी बातों में यह स्पष्ट है कि जब तक शिक्षा सबके लिए समान नहीं होगी, तब तक समाज में वास्तविक समानता नहीं आ सकती.

शिक्षा में भेदभाव नहीं होना चाहिए— यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक विचारधारा है जो समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की प्रेरणा देती है.

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