बिना नाम लिए अखिलेश का वार,सत्ता की लालसा में मत तोड़ो विश्वास
तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ 29 अगस्त 2025 —समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने एक बार फिर सोशल मीडिया के ज़रिए सत्ता की राजनीति पर करारा प्रहार किया है. एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए अपने एक पोस्ट में उन्होंने न सिर्फ सत्ता में बैठे लोगों की नीतियों पर सवाल खड़े किए बल्कि ‘नियमों की सुविधानुसार व्याख्या पर भी तीखी टिप्पणी की है.
राजनीतिक संदेश या चुनावी रणनीति?
अखिलेश यादव ने अपने पोस्ट में लिखा है कि,
न रिटायर होऊंगा, न होने दूँगा. जब अपनी बारी आई तो नियम बदल दिये… ये दोहरापन अच्छा नहीं. अपनी बात से पलटनेवालों पर पराया तो क्या, कोई अपना भी विश्वास नहीं करता है.आगे उन्होंने लिखा की जो विश्वास खो देता हैं, वह राज भी खो देता हैं.
उनका यह बयान सीधे तौर पर उन नेताओं की ओर इशारा करता दिख रहा है जो सत्ता में बने रहने के लिए संवैधानिक या नैतिक मर्यादाओं को दरकिनार कर देते हैं. उन्होंने बिना किसी का नाम लिए, अखिलेश यादव ने सत्ता की राजनीति में दोहरे मापदंड और भरोसे की गिरावट जैसे मुद्दों को तीखे शब्दों में उठाया है.
सियासी गलियारों में हलचल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश का यह बयान मौजूदा सत्ताधारी दलों की कार्यशैली और हालिया फैसलों को लेकर नाराज़गी का संकेत है.खासकर ऐसे समय में जब 2026 के चुनावों की हलचल तेज हो रही है. यह बयान मतदाताओं को एक वैकल्पिक नेतृत्व का संदेश दे सकता है.
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भरोसे पर राजनीति की नींव
इस पोस्ट में अखिलेश यादव ने राजनीति में भरोसे को सबसे अहम मूल्य बताया है.उनका यह मानना कि,जो विश्वास खो देते हैं, वो राज खो देते हैं, साफ तौर पर यह दर्शाता है कि वे नैतिक राजनीति और जनविश्वास को प्राथमिकता देते हैं.
क्या यह संदेश दूर तक जाएगा?
हालांकि यह सिर्फ एक पोस्ट है, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक गूंज को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यह नारा, न रिटायर होऊंगा, न होने दूँगा, चुनावी मैदान में एक चुनौतीपूर्ण संदेश बन सकता है — खासकर उन नेताओं के लिए जो सत्ता को किसी भी कीमत पर बनाए रखना चाहते हैं.

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