धमकी विवाद: CJI गवई के समर्थन में आजाद की हुंकार
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 27 सितंबर 2025 – भारत की न्यायपालिका की गरिमा पर हमला करने वाला एक चौंकाने वाला विवाद खड़ा हो गया है.धार्मिक प्रवचनकर्ता अनिरुद्धाचार्य ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति बीआर गवई के खिलाफ कथित धमकी भरा बयान देकर पूरे देश में हलचल मचा दिया है. इस बयान ने न केवल न्यायपालिका की गरिमा को चुनौती दी है, बल्कि संविधान की आत्मा पर भी चोट पहुंचाई है.
विवाद की जड़: खजुराहो विष्णु मंदिर मामला
खजुराहो के जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति को बहाल करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी. इसी दौरान CJI बीआर गवई की टिप्पणी को कुछ लोगों ने धार्मिक आस्था पर व्यंग्य के रूप में लिया.अनिरुद्धाचार्य ने इसे सनातन धर्म का अपमान बताते हुए CJI को खुले मंच से धमकी दे डाली.
उसका यह कथन—”तुम्हें अगर अपनी छाती फड़वानी है…”—सीधे तौर पर हिंसा का संकेत माना जा रहा है. यह शब्द न्याय की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के लिए न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि लोकतंत्र के मूल ढांचे पर सीधा हमला भी.
चंद्रशेखर आजाद का कड़ा प्रहार: जातिवाद और संविधान पर चोट
भीम आर्मी प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने इस धमकी को “जातिवादी मानसिकता का प्रतीक” करार दिया है.उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:
“CJI सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस नहीं, बल्कि भारत के न्याय का सर्वोच्च प्रतीक हैं. उन पर हमला, संविधान पर हमला है”
आजाद ने साफ कहा कि यह बयान सिर्फ CJI गवई के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे दलित समाज और संविधानिक व्यवस्था के खिलाफ है. उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), यूपी सरकार और अपनी पार्टी से कठोर कार्रवाई की मांग किया है .
संविधान पर हमला: लोकतंत्र की नींव हिलाने की साजिश
अनुच्छेद 124 के तहत CJI का पद भारतीय न्यायपालिका की आत्मा है. लेकिन जब धार्मिक प्रवचनकर्ता अदालत की गरिमा को चुनौती देने लगें, तो यह केवल एक “बयान” नहीं बल्कि संविधान की बुनियाद को हिलाने की कोशिश है.
यह घटना दलित पृष्ठभूमि से आने वाले CJI गवई के खिलाफ जातिवादी हमले की ओर इशारा करती है.
इससे यह भी साफ होता है कि धर्म की आड़ में संविधान और न्यायपालिका को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है.
डॉ. अंबेडकर ने चेताया था: “अगर अंधविश्वास बढ़ा, तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा.
आज यह चेतावनी खौफनाक सच्चाई बनकर सामने खड़ी है.
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सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ: नफरत का कारोबार
अनिरुद्धाचार्य जैसे तथाकथित बाबा सोशल मीडिया और प्रवचनों के जरिए लाखों लोगों को प्रभावित करता हैं. जब वे खुलेआम हिंसा और नफरत की बात करता हैं, तो यह समाज को टुकड़ों में बांटने का काम करता है.
इससे दलित समाज और हाशिए पर खड़े वर्गों में असुरक्षा की भावना बढ़ती है.
राजनीतिक रूप से, यह मामला यूपी और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी पर सवाल खड़ा करता है कि क्या वे न्यायपालिका और संविधान की रक्षा में खड़े होंगे या चुप रहेंगे.
कार्रवाई की मांग: अब या कभी नहीं
चंद्रशेखर आजाद की मांग है कि IPC की धारा 506 (आपराधिक धमकी) और अन्य सख्त प्रावधानों के तहत तुरंत गिरफ्तारी हो. अगर ऐसी बयानबाजी पर लगाम नहीं लगाई गई, तो यह लोकतंत्र के लिए स्थायी खतरा बन जाएगा.
सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए.
न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा हर नागरिक का कर्तव्य है.
अंधविश्वास और नफरत फैलाने वालों को कानून के शिकंजे में लेना ही होगा.
निष्कर्ष: संविधान सर्वोपरि है
यह विवाद सिर्फ CJI गवई या किसी एक व्यक्ति का मुद्दा नहीं है. यह सवाल है कि क्या भारत का लोकतंत्र और संविधान किसी भी “तथाकथित बाबा” से कमजोर हो जाएगा.
चंद्रशेखर आजाद का स्पष्ट संदेश है –
संविधान पर हमला बर्दाश्त नहीं होगा.
न्यायपालिका की गरिमा हर कीमत पर सुरक्षित रखी जाएगी.
नफरत और अंधविश्वास फैलाने वालों को जेल भेजना ही होगा.
अब देश को तय करना है: क्या हम संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करेंगे या अंधविश्वास और नफरत को जीतने देंगे?

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