RJD दफ्तर में पहुंचा न्याय का संदेश
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 18 अगस्त 2025 —राजधानी आज भूतपूर्व सैनिकों की आवाज़ से गूंज उठी जब डायल 112 से जुड़े करीब 150 पूर्व सैनिक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रदेश कार्यालय कर्पूरी सभागार पहुंचे.उनके हाथों में था एक मांग-पत्र, और दिलों में उम्मीद — कि अब उनकी वर्षों की अनदेखी सुनी जाएगी.

जब आवाज उठी वर्दी के सम्मान में…
देश की सीमाओं पर तैनात रहकर जिन जवानों ने अपनी जान की परवाह किए बिना राष्ट्र की रक्षा किया.आज वही पूर्व सैनिक अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं. दिल में देशभक्ति, आँखों में उम्मीद और हाथ में मांग-पत्र लिए, पटना में सैकड़ों पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश कार्यालय का रुख किया. यह सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि सम्मान और स्थायीत्व की मांग थी — एक ऐसी आवाज़ जिसे अब अनसुना नहीं किया जा सकता.
आइए, जानते हैं कि आखिर क्या हैं इन जांबाज़ों की मांगें, किसने दिया उन्हें समर्थन, और क्या कहती है आने वाली राजनीति की तस्वीर…
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नाम सौंपा गया मांग-पत्र
पूर्व सैनिकों ने अपनी समस्याओं और मांगों को लेकर जो ज्ञापन सौंपा वह नेता प्रतिपक्ष श्री तेजस्वी प्रसाद यादव के नाम संबोधित था. ज्ञापन को राजद के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल, प्रवक्ता चितरंजन गगन, और भूतपूर्व सैनिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विजय कुमार यादव ने विधिवत प्राप्त किया.इस दस्तावेज़ में रोजगार की स्थायीत्व, भूतपूर्व सैनिक आयोग की स्थापना, और सेवा-शर्तों में सुधार जैसी प्रमुख मांगें शामिल थीं.

चितरंजन गगन का वादा: महागठबंधन सरकार बनाएगी,भूतपूर्व सैनिक आयोग
सभा को संबोधित करते हुए चितरंजन गगन ने कहा कि, महागठबंधन की सरकार आते ही हम भूतपूर्व सैनिक आयोग का गठन करेंगे और अनुबंध पर कार्य कर रहे सभी कर्मियों की सेवा को स्थायी किया जायेगा.उन्होंने भरोसा दिलाया कि राजद, देश की सेवा कर चुके इन जांबाज़ों के साथ खड़ा है और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने दिया जायेगा.
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मंच पर गूंजा एक सुर — सम्मान चाहिए, भीख नहीं!
सभा में पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ के प्रधान महासचिव दिनेश कुमार सुमन, अभिषेक कुमार, प्रदेश सचिव संजय यादव, मुनेश्वर कुमार, अभिनंदन यादव और गजेन्द्र झा ने भी अपने विचार रखे. वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि पूर्व सैनिकों को भीख’ नहीं, उनका हक चाहिए. उन्होंने बताया कि जिन लोगों ने सीमा पर जान जोखिम में डाला है. आज वही लोग बेरोजगारी और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं.
आने वाले चुनावों में ‘फौजियों की फौज’ बन सकती है निर्णायक ताकत
राजनीतिक दृष्टिकोण से यह आयोजन एक बड़ा संकेत है. पूर्व सैनिकों की यह एकजुटता सिर्फ मांगों तक सीमित नहीं बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों में एक निर्णायक वोटबैंक के रूप में उभर सकता है. यह स्पष्ट है कि अगर उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो वे सियासी समीकरणों को पलटने की ताकत रखते हैं.
निष्कर्ष
राजद कार्यालय में हुआ यह आयोजन सिर्फ एक ज्ञापन सौंपने तक सीमित नहीं था. यह आवाज थी उन जांबाज़ों की जिन्होंने देश की सुरक्षा की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर किया और अब खुद के अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं. क्या आने वाली सरकारें उनकी इस पुकार को सुनेंगी? वक्त ही बताएगा.

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