तेजस्वी यादव का खुलासा या सरकारी पोलपट्टी?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,10 अगस्त: जब घरों का नंबर ही ‘000’ निकला, तो किसके सिर है ये जिम्मेदारी? बिहार में एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है.राज्य के 3 लाख घरों का पता ‘000’ या ‘000/00’ दर्ज है! यह कोई टाइपिंग मिस्टेक नहीं, बल्कि सरकारी फाइलों में दर्ज वो सच है, जो सिस्टम की नींव को हिलाकर रख देता है.
क्या ये घर वाकई ज़मीन पर मौजूद हैं?
क्या योजनाएं केवल कागज़ों में पूरा हो रहा हैं?
और सबसे बड़ा सवाल कि — क्या जनता को छलने का नया तरीका ईजाद हो चुका है?
जब घर का नंबर ही न हो, तो सिस्टम में भरोसा कैसे हो?
जब 3 लाख घरों का कोई ठिकाना न हो, तो योजनाओं की पारदर्शिता का दावा कैसे किया जाए?
तेजस्वी यादव के इस खुलासे ने जहां सियासी हलकों में हलचल मचा दिया है.वहीं सोशल मीडिया पर जनता अब सीधे सवाल पूछ रहा है कि,
ये घर पाताललोक में हैं या सिर्फ पावरपॉइंट प्रेज़ेंटेशन में?
तो आइए, आगे जानते हैं विस्तार से कि इस आंकड़े के पीछे क्या छिपा है — लापरवाही, साजिश, या सुनियोजित घोटाला?
बिहार की राजनीति में एक नया विस्फोट तब हुआ जब विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया कि राज्य में 3 लाख से अधिक घरों का घर नंबर ‘000’ या ‘000/00’ है.
यह सुनकर कोई भी चौंक सकता है कि — क्या ये घर जमीन पर बने हैं या किसी काल्पनिक दुनिया में?
सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा आग की तरह फैल गया खासकर जब यूज़र Priyanka Bharti (@priyanka2bharti) ने तंज कसते हुए पूछा कि,
ये घर पाताल लोक में हैं या वायुमंडल में? या ये 00 घर इसलिए बनाए गए ताकि भाजपा 00 ना हो जाए?
सबसे बड़ा सवाल: क्या सरकार को ही नहीं पता लोग कहां रहते हैं?
जब किसी सरकार को ये तक न पता हो कि उसके नागरिकों का वास्तविक पता क्या है. तो उस सरकार की योजनाओं की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है.
3 लाख घरों में ‘000’ नंबर कैसे दर्ज हो सकते हैं? क्या यह सिस्टम की गलती है या जानबूझकर किया गया घोटालेबाज़ी?
क्या सरकार सिर्फ फॉर्म भरवा रहा है.या वाकई लोगों तक घर पहुंच रहा हैं?
अगर इन 3 लाख घरों का कोई असली वजूद नहीं है, तो क्या ये ‘घोस्ट एंट्री’ नहीं है?
सरकारी आंकड़े या घोटाले का दस्तावेज?
प्रधानमंत्री आवास योजना, शहरी विकास मिशन, और राज्य की ग्रामीण आवास योजनाये — सबका एक ही उद्देश्य है कि, हर व्यक्ति को छत देना.
लेकिन जब घरों का नंबर ही ‘000’ हो, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि या तो ये घर कभी बने ही नहीं, या फिर बनाए गए लेकिन कागज़ों पर.
क्या यह पूरी की पूरी स्कीम सिर्फ आंकड़ों का जाल बन चुका है.जिससे फंड निकाला जाए, फोटो खिंचवाए जाएं और जनता को भ्रमित किया जाए?
डिजिटल इंडिया’ की असलियत यही है क्या?
सरकारें बड़ी-बड़ी बातें करता हैं — डिजिटलीकरण, ट्रांसपेरेंसी, स्मार्ट गवर्नेंस.
लेकिन जब रियलिटी चेक किया जाता है तो लाखों घरों का पता सिर्फ ‘000/00’ निकलता है.
यह डेटा एंट्री ऑपरेटर की गलती नहीं है. बल्कि पूरे सिस्टम की संस्थागत लापरवाही है.
इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या ऐसे ही डमी डेटा के आधार पर फंड रिलीज किया जा रहा है?
अब चुप रहने का वक्त नहीं — जवाब चाहिए सरकार!
बिहार जैसे राज्य में जहां लाखों लोग अब भी खुले आसमान के नीचे रह रहा हैं. वहां अगर घर बांटने की योजना में ही ‘बिना पते वाले घर’ बांटे जा रहे हों तो यह केवल लापरवाही नहीं है.बल्कि जनता के साथ एक धोखा है.
अब वक्त आ गया है कि:
सरकार स्पष्ट करे कि ये 3 लाख घर कहां हैं?
किन अफसरों के ज़रिए यह डाटा एंट्री हुई?
कितनी राशि इन घरों पर खर्च दिखाई गई है?
क्या CAG या RTI से इसकी जांच करवाया जायेगा?
निष्कर्ष: यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि सिस्टम की कब्रगाह है!
‘000’ घर नंबर केवल एक सरकारी भूल नहीं बल्कि एक सियासी और प्रशासनिक धोखे की निशानी बन चुका है.
यह मुद्दा अगर सही ढंग से उठाया गया तो यह बिहार की राजनीति की दिशा ही बदल सकता है.

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