इंडिया गठबंधन के सांसदों ने संसद में किया प्रदर्शन, चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 22 जुलाई: संसद के मानसून सत्र के दौरान आज विपक्षी इंडिया गठबंधन के सांसदों ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया.यह विरोध प्रदर्शन उस कथित साजिश के खिलाफ था.जिसमें दलितों, पिछड़े वर्गों, आदिवासियों, मुस्लिमों और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों की नागरिकता और मताधिकार को कमजोर करने की कोशिश किया जा रहा है. इस आरोप के केंद्र में चुनाव आयोग है. जिस पर विपक्ष ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में काम करने का गंभीर आरोप लगाया है.
प्रदर्शन का स्वरूप और प्रमुख आवाजें
संसद परिसर के भीतर शांतिपूर्ण लेकिन प्रभावशाली तरीके से हुए इस प्रदर्शन में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद ), डीएमके, आम आदमी पार्टी (AAP) और अन्य प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों ने भाग लिया.हाथों में बैनर और पोस्टर लिए सांसदों ने लोकतंत्र के मूल सिद्धांत समानता, निष्पक्षता और समावेशन की रक्षा की मांग किया.
प्रियंका भारती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर)@priyanka2bharti
पर प्रदर्शन के तस्वीरों को साझा करते हुये उसने लिखा कि,चुनाव आयोग जब भाजपा आयोग के तरह काम करने लगे तो विरोध होगा!
दलित, पिछड़ों, आदिवासी, मुस्लिमों, वंचितों की नागरिकता खत्म करने की साजिश के खिलाफ आज संसद परिसर में INDIA के सभी सांसद प्रदर्शन करते हुए.हम वंचित समुदायों की नागरिकता और वोटिंग अधिकारों पर हो रहे हमले को बर्दाश्त नहीं करेंगे. चुनाव आयोग को संविधान की शपथ याद दिलाने का समय आ गया है.
चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप
प्रदर्शन की मुख्य वजह बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की प्रक्रिया रहा है .जिसे विपक्ष ने “चयनात्मक और पक्षपातपूर्ण” बताया उनका कहना है कि यह कदम खासतौर पर मुस्लिमों और अन्य वंचित समूहों को सूची से बाहर करने की एक रणनीति है.
आरजेडी और अन्य दलों ने इस प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दिया है. विपक्षी नेताओं का दावा है कि यह संशोधन प्रक्रिया संविधान द्वारा प्रदत्त मताधिकार को छीनने की कोशिश है.और यह प्रक्रिया तो लोकतंत्र की हित के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है.
वंचित समुदायों की हाशिए पर होती भागीदारी
प्रदर्शनकारियों ने तर्क दिया कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में हाशिए पर पड़े समुदायों की राजनीतिक भागीदारी लगातार घट रहा है. उदाहरण के लिए:
लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या अब केवल 24 रह गया है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम है.
गैर-भाजपा दलों ने भी 2024 के आम चुनावों में 2019 की तुलना में कम मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जिससे अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व और कमजोर हुआ.
यह असमानता न केवल संसद में दिख रहा है. बल्कि नीति-निर्माण, संसाधन आवंटन और सरकारी योजनाओं में भी झलकता है.
जातिगत जनगणना की मांग फिर से उठी
प्रदर्शन के दौरान विपक्षी नेताओं ने फिर से जातिगत जनगणना की मांग फिर दुहराया. उनका कहना है कि इससे यह स्पष्ट होगा कि कौन से वर्ग वास्तव में पीछे हैं. और कैसे उन्हें न्यायसंगत हिस्सेदारी दी जा सकता है. बिहार में पहले से ही यह मांग ज़ोर पकड़ रहा है.और 2025 के राज्य विधानसभा चुनावों में यह एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन सकता है.
भाजपा और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
भाजपा ने अब तक इस प्रदर्शन पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दिया है. हालांकि अतीत में उसने ऐसे सभी आरोपों को “राजनीतिक प्रोपेगेंडा” बताया है. पार्टी प्रवक्ता अक्सर यह दोहराते हैं कि:मोदी सरकार की योजनाएं ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत पर आधारित हैं और इसमें सभी समुदायों को लाभ मिलता है.
वहीं, चुनाव आयोग ने भी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मतदाता सूची में सुधार एक नियमित और आवश्यक प्रक्रिया है. जिसका उद्देश्य केवल सही और अद्यतन डाटा सुनिश्चित करना है. आयोग ने यह भी कहा कि वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ग के खिलाफ भेदभाव नहीं करता.
राजनीतिक विश्लेषण और आगे की राह
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष का यह प्रदर्शन केवल एक सांकेतिक विरोध नहीं है बल्कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतिक मोर्चाबंदी है. वंचित वर्गों के अधिकारों, प्रतिनिधित्व और पहचान पर केंद्रित यह आंदोलन भाजपा के हिंदू-बहुसंख्यकवादी एजेंडे को टक्कर देने का प्रयास है.
एक बात तो साफ है कि जैसे-जैसे चुनाव पास आयेगा यह मुद्दा और तूल पकड़ेगा. और अगर वोटर लिस्ट से नाम काटने या अल्पसंख्यकों को किनारे करने जैसी बातों के पक्के सबूत मिल गए, तो फिर तो बवाल तय है
निष्कर्ष: लोकतंत्र बनाम पक्षपात की लड़ाई?
इंडिया गठबंधन का यह प्रदर्शन लोकतंत्र, समावेशन और नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा संकेत है. यह दर्शाता है कि विपक्ष अब केवल संसद के भीतर नहीं, बल्कि संसद के बाहर भी सक्रिय संघर्ष के मूड में है.
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह एकजुटता केवल प्रदर्शन तक सीमित रहेगी या इससे विपक्ष को ठोस राजनीतिक लाभ भी मिलेगा.
आपकी राय क्या है? क्या चुनाव आयोग पक्षपात कर रहा है? क्या वंचित समुदायों के मताधिकार पर खतरा मंडरा रहा है? कमेंट में अपनी राय साझा करें.

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