बिहार से उठी आवाज़: मतदाता अधिकारों पर हमला या वोटर लिस्ट सुधार?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना ,9 जुलाई:बिहार एक बार फिर बिहार कि जनता सड़कों पर है — लेकिन इस बार मुद्दा महंगाई या बेरोज़गारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के सबसे मूल अधिकार मतदान से जुड़ा है.राष्ट्रीय जनता दल (राजद ने भाजपा और संघ (RSS) पर सीधा हमला करते हुए कहा है कि “पक्षपातपूर्ण मतदाता पुनरीक्षण के नाम पर गरीबों, बहुजनों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचला जा रहा है.

क्या है पूरा मामला?
पिछले कुछ हफ्तों से बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है. चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया का उद्देश्य वोटर लिस्ट को अपडेट करना है, लेकिन आरजेडी का आरोप है कि इसमें खास वर्गों को जैसे दलित, पिछड़े, मुस्लिम और वंचित तबकों के लोगो को टारगेट किया जा रहा है.
RJD के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लटफॉर्म एक्स हैंडल से किए गए पोस्ट में कहा गया कि ,
“गरीबों, बहुजनों और अल्पसंख्यकों के मताधिकार पर हमला, पूरे संविधान पर हमला है!”
पक्षपातपूर्ण मतदाता पुनरीक्षण के नाम पर भाजपा और संघ का बहुजन विरोधी एजेंडा स्वीकार नहीं!
पार्टी ने इसे संघ और भाजपा का बहुजन विरोधी एजेंडा करार दिया और इसके विरोध में बिहार भर में चक्का जाम आंदोलन का आह्वान किया.
चक्का जाम: बिहार से देश तक
9 जुलाई को बिहार में जगह-जगह चक्का जाम किए गए.सड़कों पर लोगों ने पोस्टर, बैनर और नारेबाज़ी के साथ केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया.
RJD का दावा है कि यह आंदोलन अब केवल बिहार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका संदेश देश के कोने-कोने तक जा रहा है.
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यह आवाज़ सिर्फ आरजेडी की नहीं, यह उन करोड़ों लोगों की है जिन्हें लोकतंत्र में बराबरी नहीं मिल रहा है.
क्या वास्तव में पक्षपात हो रहा है?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप कोई नया नहीं है.कई बार यह देखा गया है कि चुनावों से पहले वोटर लिस्ट से कुछ नाम रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते हैं खासकर गरीब इलाकों या अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों से.
अगर यह सच है, तो सवाल सीधा है कि
क्या लोकतंत्र अब वोट बैंक की रणनीति बन चुका है?
सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग मुद्दा
सोशल मीडिया पर भी मताधिकार पर हमला और बहुजन विरोधी एजेंडा जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं. युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर उठाया है और RJD के चक्का जाम को समर्थन भी मिला है.
निष्कर्ष: यह सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं
मतदाता सूची का मुद्दा सुनने में छोटा लग सकता है.लेकिन यह हमारे लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है. अगर किसी वर्ग को व्यवस्थित तरीके से मताधिकार से वंचित किया जाता है, तो यह केवल चुनावी खेल नहीं है यह संविधान पर सीधा हमला है.
बिहार की सड़कों पर निकली यह आवाज़ अब पूरे देश में गूंज रही है.देखना होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या रुख अपनाता है और सत्ता पक्ष इन आरोपों का जवाब कैसे देता है.

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