हंग असेंबली का खतरा: तीन तरफा मुकाबला और अनिश्चित भविष्य
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 27 अक्टूबर 2025 — बिहार की राजनीति हमेशा जातिगत संतुलन पर टिका रहा है, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव इस संतुलन को एक नए युग में प्रवेश करा रहा हैं. 243 सीटों पर 6 और 11 नवंबर को मतदान और 14 नवंबर को नतीजे आने हैं.यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि नए नेतृत्व और नई सोच की तलाश का चुनाव है.
एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज—तीनों मोर्चों के बीच मुकाबला इस बार त्रिकोणीय है, और यह मुकाबला तय करेगा कि 13 करोड़ बिहारी जाति की राजनीति से आगे बढ़ेंगे या फिर वही पुराना समीकरण हावी रहेगा.
जातिगत समीकरण: बिहार की राजनीति की रीढ़
2022 के जाति सर्वेक्षण ने बिहार की सामाजिक संरचना को स्पष्ट किया है,
63% आबादी: अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
19% आबादी: अनुसूचित जाति (SC)
14% यादव और 17% मुस्लिम वोट अब भी चुनावी धुरी बने हुए हैं.
एनडीए (जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी) ने जातिगत गणित को साधने की कोशिश किया है.
नीतीश कुमार की जेडीयू: कुर्मी और ईबीसी वोटों पर निर्भर हैं.
बीजेपी: भूमिहार, राजपूत और शहरी मतदाताओं की पार्टी.
चिराग पासवान और मांझी: दलित वोटों में पकड़ बनाए रखने की कोशिश में है.
हालांकि नीतीश की बढ़ती उम्र, गठबंधन बदलने की छवि और हाल के 11 बागी नेताओं का निष्कासन उनकी चुनौती बढ़ा रहा हैं.
महागठबंधन: सामाजिक न्याय से रोजगार तक
आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों का महागठबंधन इस बार फिर सामाजिक न्याय के नारे के साथ मैदान में है.
तेजस्वी यादव 143 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा जैसे मुद्दों को उठाकर युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं.
उनका नारा हर घर एक नौकरी युवाओं में गूंज रहा है.
कांग्रेस ने राजेश कुमार (रविदास समुदाय) को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलित वोटों को साधने की रणनीति अपनाई है.
हालांकि, वाम दलों के साथ तालमेल की कमी और परिवारवाद व भ्रष्टाचार के आरोप महागठबंधन की राह कठिन बना रहा हैं.
नामांकन वापसी की अंतिम तिथि पर तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करना रणनीतिक रूप से देर से लिया गया फैसला माना जा रहा है.

नया विकल्प: प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी
प्रशांत किशोर (PK) की जन सुराज पार्टी 2025 की सबसे नई और चर्चित एंट्री है.
पार्टी ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.
जाति-मुक्त राजनीति का दावा करते हुए पीके ने शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छ शासन पर जोर दिया है.
अमेरिकी शैली के, प्राइमरी सिस्टम से उम्मीदवार चयन और विधायक रिकॉल का वादा युवाओं को भा रहा है.
90% नए चेहरों के साथ उतरना उनकी ताकत है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में जातिगत जड़ें कमजोर हैं.
विश्लेषकों का अनुमान है कि जन सुराज को 5–10% वोट मिल सकते हैं, जो दोनों पारंपरिक गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं—खासतौर पर यादव, ईबीसी और मुस्लिम वोटों में.

नेतृत्व का सवाल: नीतीश, तेजस्वी या पीके?
2025 का चुनाव सिर्फ वोटों का नहीं, नेतृत्व का परीक्षण भी है.
नीतीश कुमार (75 वर्ष): अनुभव बनाम थकान
महिलाओं की भागीदारी, कानून व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर नीतीश की उपलब्धियां हैं.
लेकिन बार-बार गठबंधन बदलने की छवि और 2025 में फिर नीतीश? वाला सवाल अब लोगों के बीच संशय पैदा कर रहा है.
बीजेपी मोदी फैक्टर के भरोसे है, लेकिन नीतीश की सीमित ऊर्जा गठबंधन को कमजोर बना सकती है.
तेजस्वी यादव (35 वर्ष): युवा ऊर्जा बनाम पारिवारिक विरासत
उम्र कच्ची, जुबान पक्की के नारे के साथ तेजस्वी बेरोजगारी और पलायन को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं.
युवाओं और निचले तबकों में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है, लेकिन लालू की छवि और भ्रष्टाचार के पुराने आरोप अब भी चुनौती हैं.
प्रशांत किशोर (47 वर्ष): रणनीतिक दिमाग, सीमित पहुँच
डेटा आधारित राजनीति और साफ छवि उनकी ताकत है.
लेकिन ग्रामीण इलाकों में संगठनात्मक ढांचा कमजोर है.
कुछ विश्लेषकों के अनुसार, पीके की एंट्री बीजेपी को अप्रत्यक्ष फायदा दे सकती है क्योंकि वे मुस्लिम और ईबीसी वोट काटेंगे.
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प्रमुख मुद्दे: बेरोजगारी, पलायन और SIR विवाद
बिहार की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और पलायन है.करीब 75 लाख बिहारी दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में हैं.
SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) विवाद में 3.5 लाख वोटरों के नाम कटने का मामला विपक्ष का बड़ा हथियार बना हुआ है.
जाति सर्वे के बाद आरक्षण बढ़ाने की मांग तेज है, जिससे ओबीसी-ईबीसी मतदाता निर्णायक हो सकते हैं.
महिलाओं के लिए नकद सहायता और शिक्षा योजनाएं असरदार साबित हो रही हैं, लेकिन डिजिटल पहुंच अब भी सीमित है.
क्या बिहार तैयार है नए नेतृत्व के लिए?
2025 का चुनाव पुराने बनाम नए बिहार की जंग है.
नीतीश का अनुभव
तेजस्वी की ऊर्जा
और प्रशांत किशोर की रणनीतिक सोच.
तीनों अलग-अलग रास्ते दिखा रहे हैं.
विश्लेषक त्रिशंकु असेंबली की संभावना जता रहे हैं, जो बिहार में नए गठबंधनों की राजनीति को जन्म दे सकती है.
यह चुनाव केवल राज्य की दिशा नहीं तय करेगा, बल्कि 2029 लोकसभा चुनाव के लिए भी राष्ट्रीय राजनीति का संकेत बनेगा.
निष्कर्ष
बिहार बदल रहा है—शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की आकांक्षाएं अब जाति की सीमाओं को चुनौती दे रही हैं.
फिर भी, गरीबी, पलायन और असमानता की जड़ें गहरी हैं.
2025 का जनादेश यही तय करेगा कि क्या बिहार वाकई नए नेतृत्व और नई राजनीति को अपनाएगा,
या फिर जातिगत समीकरणों के उसी पुराने चक्र में फंसा रहेगा.

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