बिहार चुनाव: मायावती का तंज, नीतीश कुमार का रोजगार वादा ‘अच्छे दिन’ जैसा छलावा

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Kumar Ranjit

बिहारभारत
बिहार चुनाव: मायावती का तंज, नीतीश कुमार का रोजगार वादा 'अच्छे दिन' जैसा छलावा

BSP बनाम NDA: क्या जनता फिर खाएगी वादों का धोखा?

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना/लखनऊ14 जुलाई 2025:बिहार में विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू होते ही राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गया है. एनडीए गठबंधन की सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हालिया रोजगार वादों पर अब सवाल उठने लगा है.इस कड़ी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी ने एक बड़ा बयान दिया है.जिसने बिहार की सियासत को जो पहले से तो गर्म था हि उसको और गर्म कर दिया है.

मायावती का हमला: यह वादा नहीं, छलावा है

मायावती ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X, पूर्व ट्विटर) हैंडल से एक विस्तृत पोस्ट साझा करते हुए बिहार सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा किया है और उन्होंने लिखा कि,

बिहार में क़ानून-व्यवस्था की बदहाल स्थिति की राष्ट्रीय चर्चाओं के बीच, संभवतः लोगों का ध्यान बाँटने के लिए, राज्य में एनडीए गठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार द्वारा चुनाव बाद सरकार बनने पर अगले पाँच साल में एक करोड़ लोगोें को नौकरी और रोज़गार उपलब्ध कराने की घोषणा वास्तव में लोगों को हकीकत से दूर, उनके अनुभवों के आधार पर, ’अच्छे दिन’ जैसी जुमलेबाज़ी व चुनावी छलावा ज़्यादा लगता है.”

इस टिप्पणी के माध्यम से मायावती ने न सिर्फ नीतीश सरकार के नीतियों पर कटाक्ष किया है.बल्कि केंद्र सरकार के 2014 के ‘अच्छे दिन’ जैसे नारों को भी निशाने पर ले लिया.

नीतीश कुमार का रोजगार वादा: क्या है सच्चाई?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में एक घोषणा किया था कि अगर उनकी सरकार दोबारा सत्ता में आती है, तो अगले पाँच वर्षों में एक करोड़ नौकरियाँ और स्वरोज़गार के अवसर बिहारवासियों को दिया जायेगा. यह बयान राज्य में बढ़ती बेरोजगारी और युवाओं के पलायन की पृष्ठभूमि में दिया गया था.

लेकिन मायावती समेत कई विपक्षी नेताओं ने भी इसे एक और चुनावी जुमला मान रहे हैं. उनका मानना है कि जनता अब ऐसे वादों से गुमराह नहीं होने वाली है.

जनता के अनुभव को बताया सबसे बड़ा प्रमाण

मायावती ने अपने पोस्ट में यह भी कहा कि:

जनता विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के चुनावी वादों, दावों व घोषणाओं को उनके कार्यकाल के अनुभवों के आधार पर भलीभाँति जानती है. फिर भी ये दल लोकलुभावने वादे करने से नहीं चूकते.”

इस बयान से साफ है कि BSP प्रमुख मायावती जी चाहती हैं कि जनता इस बार केवल नारों और प्रचार पर नहीं बल्कि पार्टियों के इतिहास और हकीकत के आधार पर वोट करे.

निष्पक्ष चुनाव की माँग

चुनावों की निष्पक्षता पर चिंता जताते हुए मायावती ने कहा कि चुनाव बाहुबल, धनबल और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से मुक्त होने चाहिए.उन्होंने चुनाव आयोग से अपील किया है कि ,

“ग़रीबों, मज़दूरों और अन्य मेहनतकश लोगों को मतदान का पूरा अवसर मिले इसकी निगरानी चुनाव आयोग को ज़रूर करनी चाहिए.”

सरकारें बदलें लेकिन अनुभव न बदला- मायावती का इशारा

मायावती ने यह भी आरोप लगाया कि बिहार में गठबंधन सरकार के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए लोगों को रोजगार देने का यह वादा भी उन्हीं खोखले वादों जैसा है. जो पहले भी जनता ने सुने हैं लेकिन अनुभव नहीं किया.

निष्कर्ष: क्या जनता झूठे वादों से बचेगी?

बिहार के राजनीति में हर चुनाव से पहले बड़े वादे, घोषणाएं और आरोप-प्रत्यारोप आम हो चूका हैं. मायावती का यह बयान न सिर्फ सत्ताधारी गठबंधन को कटघरे में खड़ा करता है.बल्कि यह भी संकेत देता है कि आगामी चुनाव केवल विकास के वादों पर नहीं. बल्कि भरोसे की राजनीति पर केंद्रित होंगे.

अब देखना यह है कि बिहार की जनता किन वादों पर भरोसा करती है और किसे सत्ता की चाबी सौंपती है.ये तो आने वाला समय ही बतायेगा.

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