लोकतंत्र पर उठे नए प्रश्न : CPIML का बड़ा बयान
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,16 नवंबर 2025 — बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में गहरी हलचल पैदा कर दिया है .मतदाताओं की उम्मीदों, राजनीतिक विश्लेषणों और ज़मीनी समीकरणों सभी को उलट देने वाले इन नतीजों पर CPIML महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने गम्भीर सवाल उठाए हैं.
उनका कहना है कि यह परिणाम न तो अपेक्षित है और न ही सहज समझ में आने वाला , बल्कि यह उसी दिशा की ओर इशारा करता है जहाँ विपक्ष-विहीन लोकतंत्र की कोशिशें तेज़ी से बढ़ रही हैं.
संवाददाता सम्मेलन में पार्टी ने न केवल अपने विश्लेषण रखे, बल्कि आगे की राजनीतिक लड़ाई की रणनीति भी साफ कर दी.
जनसंपर्क अभियान की घोषणा: जनता के बीच लौटेगी माले
का. दीपंकर ने बताया कि चुनाव में उतरे सभी उम्मीदवारों की बैठक में यह तय हुआ है कि 18 से 24 नवंबर तक जीते और हारे सभी उम्मीदवार राज्यभर में सघन जनसंपर्क अभियान चलाएँगे.
यह अभियान दो उद्देश्यों पर केंद्रित होगा.
जिन्होंने माले पर भरोसा किया, उनका आभार व्यक्त करना
और जिन्होंने वोट नहीं दिया, उनके सवालों और नाराज़गी को समझना
माले का कहना है कि चुनाव खत्म हो सकता है, लेकिन जनता की लड़ाई अभी जारी है और जनता की पीड़ा को समझना ही उनकी प्राथमिकता होगी.
मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर छेड़छाड़: चुनावी पारदर्शिता पर सबसे बड़ा सवाल
का. दीपंकर ने चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सीधा सवाल उठाते हुए बताया कि चुनाव से कुछ दिन पहले SIR प्रक्रिया के नाम पर पूरी मतदाता सूची को नया रूप दिया गया.
चौंकाने वाले तथ्य —
70 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए
22 लाख नाम जोड़े गए
SIR की अंतिम सूची के बाद सिर्फ 10 दिनों में 3.5 लाख नए नाम जोड़े गए
कई लोग वोट डालने पहुँचे, लेकिन उन्हें पता चला कि उनका नाम सूची से गायब है.
का. दीपंकर का कहना है कि यह कोई सामान्य तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि एक संगठित पैटर्न है, जिसने चुनाव के नतीजे को गहराई से प्रभावित किया है.
चुनाव आयोग की भूमिका पर उठ रहे सवाल नए नहीं हैं, लेकिन इस बार इनकी तीव्रता कहीं अधिक दिखी.
चुनाव घोषणा से पहले सरकारी पैसों और योजनाओं की बाढ़
उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव की घोषणा तब तक टाली गई जब तक सरकार अपनी सारी बड़ी योजनाएँ और आर्थिक घोषणाएँ जारी नहीं कर सकी.
सबसे बड़ा मुद्दा था,
10,000 रुपये योजना का पैसा चुनाव अभियान के दौरान खुले तौर पर बांटा जाना.
का. दीपंकर का आरोप है कि सिर्फ 30 दिनों में 30,000 करोड़ रुपये खर्च करने की छूट दी गई.
भारत के चुनाव इतिहास में ऐसा उदाहरण बहुत दुर्लभ है.
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भविष्य में सरकारों को चुनाव से ठीक पहले इतनी बड़ी रकम जनता में बाँटने की खुली छूट मिलती रही, तो चुनाव की निष्पक्षता और लोकतंत्र दोनों ही खतरे में पड़ जाएंगे.
वोट प्रतिशत और सीटों के बीच गहरी असमानता
माले को इस चुनाव में 14 लाख से अधिक वोट मिले.
फिर भी सीटों में यह समर्थन दिखाई नहीं देता.
माले का वोट प्रतिशत: 3%
सीटें: लगभग 1%
राजद सबसे अधिक वोट पाने वाली पार्टी, लेकिन सिर्फ 25 सीटें
का. दीपंकर ने इसे चुनाव प्रणाली की गहरी विडंबना बताया, जहाँ वोटों का बड़ा हिस्सा होने के बावजूद सीटों में उसका प्रतिबिंब नहीं दिखता.
यह सवाल सिर्फ माले या राजद का नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र का है.
क्या हमारी चुनाव प्रणाली मतदाता की वास्तविक इच्छा को प्रतिबिंबित करती है?
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बिहार के असली मुद्दों पर संघर्ष जारी
माले महासचिव ने स्पष्ट किया कि चुनाव परिणाम चाहे जो हों, लेकिन पार्टी बिहार के असली मुद्दों से पीछे नहीं हटेगी.
- मुख्य मुद्दे
- रोजगार
- शिक्षा
- सुरक्षित आवास
- जीने लायक वेतन
- दलित उत्पीड़न
- महिलाओं पर हिंसा
- अल्पसंख्यकों पर हमले
उन्होंने कहा कि बिहार में ये मुद्दे सिर्फ चुनावी भाषण नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की रोजमर्रा की पीड़ा हैं, जिनके लिए संघर्ष तेज़ किया जाएगा.
इंडिया गठबंधन को झटका, लेकिन SIR राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा
का. दीपंकर ने माना कि इंडिया गठबंधन को बड़ा झटका लगा है और लोग दुखी हैं.
लेकिन साथ ही उन्होंने बताया कि SIR को लेकर पूरे देश से फोन आ रहे हैं.
कई राज्यों में लोग कह रहे हैं कि यह सिर्फ बिहार नहीं, पूरे भारत का लोकतांत्रिक संकट है.
उनका दावा है कि SIR आने वाले समय में राष्ट्रीय मुद्दा बनने वाला है और विपक्ष को भी इसे लेकर एकजुट होना पड़ेगा.
विपक्ष विहीन लोकतंत्र की कोशिशें खतरनाक संकेत
का. दीपंकर ने कहा कि राजनीति में विपक्ष का कमजोर होना किसी भी लोकतंत्र के लिए बड़ा ख़तरा है।
उन्होंने चेताया कि बिहार में जो रुझान दिख रहा है, वह विपक्ष-विहीन लोकतंत्र की ओर धकेलने वाली प्रवृत्ति है.
लेकिन उन्होंने उम्मीद भी जताई— चिंता जितनी गहरी होती है, रास्ता उतना ही स्पष्ट होता है.
निष्कर्ष
बिहार चुनाव 2025 ने सिर्फ राजनीतिक समीकरण नहीं बदले हैं, बल्कि लोकतंत्र, पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा किया है.
माले का यह विश्लेषण और आगे की रणनीति इस बहस को और तेज़ करेगी.
आने वाले हफ्तों में होने वाली पार्टी की केंद्रीय और राज्य कमिटी की बैठकों से तय होगा कि यह संघर्ष किस दिशा में आगे बढ़ेगा.
एक बात साफ है,
बिहार में परिणाम भले अप्रत्याशित रहे हों, लेकिन राजनीति अब और तेज़, विस्तृत और निर्णायक मोड़ लेने जा रही है.

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