बिहार: गांधी की प्रतिमा पर राजनीति का रंग, मीनापुर से उठी गरम बहस

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Ajit Kumar

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बिहार: गांधी की प्रतिमा पर राजनीति का रंग, मीनापुर से उठी गरम बहस

जनता की आवाज: सम्मान चाहिए, राजनीति नहीं

तीसरा पक्ष ब्यूरो मुजफ्फरपुर, 14 सितंबर 2025 – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को राजनीतिक प्रतीकों से सजाना बिहार की राजनीति में बवंडर ला खड़ा हुआ है. यह मामला केवल एक प्रतिमा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र, संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान पर गहरी चोट करता है.मीनापुर की घटना ने न सिर्फ स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया हैं, बल्कि पूरे राज्य की राजनीति को भी गरमा दिया है.

मीनापुर की घटना: गांधी की प्रतिमा पर झंडा, टोपी और पट्टा

मीनापुर की घटना: गांधी की प्रतिमा पर झंडा, टोपी और पट्टा

मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर इलाके में गांधी जी की प्रतिमा को राजनीतिक प्रतीकों से सजा दिया गया है. बताया जाता है कि प्रतिमा के डंडे पर एक विशेष रंग का झंडा लगाया गया, सिर पर टोपी और गले में पट्टा पहनाया गया.इस दृश्य ने लोगों को चौंका दिया है. तस्वीरें वायरल होते ही सोशल मीडिया पर बवाल मच गया है.

पृष्ठभूमि में मेले जैसा माहौल, लोगों की भीड़ और बैनरों की मौजूदगी ने यह संकेत दिया कि यह कोई साधारण हरकत नहीं, बल्कि एक संगठित राजनीतिक ‘प्रदर्शन’ था.

आरजेडी का हमला: भारतीय मूल्यों का अपमान

आरजेडी की प्रदेश प्रवक्ता सरिका पासवान ने इस घटना को भारतीय संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा पर हमला करार दिया है. उन्होंने कहा कि,

गांधी जी जैसे महापुरुषों की प्रतिमा का राजनीतिक इस्तेमाल शर्मनाक है.यह न केवल भारतीय मूल्यों का अपमान है बल्कि देश की एकता और स्वाभिमान को भी चोट पहुँचाता है.

पासवान ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर तस्वीर साझा कर लिखा कि ऐसी घटनाएं प्रशासन की लापरवाही और सत्ता की मौन स्वीकृति का नतीजा हैं.
मुजफ्फरपुर के मीनापुर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने महात्मा गांधी की प्रतिमा का राजनीतिकरण कर दिया।उन्होंने प्रतिमा के हाथ में लगे डंडे पर भाजपा का झंडा टांग दिया, सिर पर पार्टी की टोपी चढ़ा दी और गले में भाजपा का पट्टा डाल दिया है यह कृत्य दर्शाता है कि भाजपाई भारतीयता के प्रतीकों के प्रति सम्मान नहीं बल्कि उपेक्षा का भाव रखते हैं.राष्ट्र की एकता, स्वाभिमान, स्वतंत्रता संग्राम की विरासत और संप्रभुता जैसे मूल्यों से उन्हें असहजता होती है.

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प्रशासन की चुप्पी: सवालों के घेरे में सरकारी मशीनरी

सबसे बड़ा सवाल प्रशासन और पुलिस पर खड़ा होता है.अब तक न तो किसी जांच की घोषणा हुई है, न ही किसी पर कार्रवाई.

क्या गांधी की प्रतिमा पर राजनीतिक झंडा लगाना अपराध नहीं? क्या यह राष्ट्रीय प्रतीकों और इतिहास का अपमान नहीं?
स्थानीय लोग सवाल कर रहे हैं कि प्रशासन आखिर किसके दबाव में खामोश है.

यह चुप्पी यह संदेश देती है कि या तो प्रशासन ऐसी गतिविधियों को गंभीरता से नहीं लेता, या फिर राजनीतिक दबाव में बंधा हुआ है। दोनों ही स्थितियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते विवाद:प्रतिमाओं का राजनीतिकरण”

मीनापुर की घटना कोई पहली नहीं है.हाल ही में उत्तर प्रदेश के बस्ती में एक राष्ट्रीय नेता की प्रतिमा को कचरे में फेंकने का मामला सामने आया था। बिहार से लेकर बंगाल और महाराष्ट्र तक, आए दिन प्रतिमाओं से जुड़ी घटनाएं सामने आ रही हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रवृत्ति खतरनाक है क्योंकि इससे समाज में विभाजन, नफरत और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलता है. गांधी, अंबेडकर, भगत सिंह जैसे राष्ट्रीय प्रतीक किसी पार्टी के नहीं, बल्कि पूरे देश के हैं.

जनता की आवाज: सम्मान चाहिए, राजनीति नहीं

स्थानीय निवासियों ने साफ कहा कि इस तरह की हरकतें समाज को बांटती हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों को ठेस पहुंचाती हैं.मीनापुर जैसे इलाकों में लोग सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में एक साथ हिस्सा लेते हैं, लेकिन जब राष्ट्रीय प्रतीकों का राजनीतिकरण होता है तो समाज में तनाव और अविश्वास पैदा होता है.

जनता की यह आवाज सरकार और प्रशासन के लिए चेतावनी है कि अगर राष्ट्रीय प्रतीकों की मर्यादा नहीं बचाई गई, तो आने वाली पीढ़ियां इतिहास से कट जाएंगी.

निष्कर्ष: प्रशासन कब जागेगा?

गांधी जी की प्रतिमा से जुड़ा यह विवाद बिहार की राजनीति को नया मोड़ दे सकता है.विपक्ष इसे सरकार की नाकामी बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष की चुप्पी इसे और संदिग्ध बनाती है.

राष्ट्रीय प्रतीकों और नेताओं का सम्मान केवल नारेबाजी से नहीं होगा, बल्कि ठोस कार्रवाई से होगा.अगर प्रशासन और सरकार अभी भी चुप रहे, तो जनता का गुस्सा इन्हें चुनावी मैदान में कड़ी सजा दे सकता है.

यह घटना सिर्फ मीनापुर तक सीमित नहीं है.यह सवाल है कि क्या आज का भारत अपने महान नेताओं को सिर्फ राजनीतिक बैनर और झंडों में समेट देगा, या उनके विचारों और आदर्शों को भी जिंदा रखेगा.

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