रोटी, रोजगार और संविधान पर वार: पटना में व्यापारी-मजदूरों की हुंकार

| BY

Ajit Kumar

बिहार
रोटी, रोजगार और संविधान पर वार: पटना में व्यापारी-मजदूरों की हुंकार

“पटना से उठी त्रिकोणीय एकता की लहर: व्यापारी, किसान और मजदूर एक साथ”

तीसरा पक्ष ब्यूरो, पटना,13 जुलाई 2025: आज पटना के रविंद्र भवन में व्यवसायी महासंघ, बिहार का स्थापना सम्मेलन में बिहार के कानून व्यवश्था को लेकर साकार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश देखने को मिला. मंच पर नेता थे, पर भीड़ केवल नारे लगाने नहीं, अपनी ज़िंदगी की लड़ाई लड़ने पहुंची थी. मौका था व्यवसायी महासंघ, बिहार के स्थापना सम्मेलन का. इस सम्मेलन ने न सिर्फ राज्य के छोटे और मझोले व्यापारियों को एकजुट किया, बल्कि उनके संघर्ष को किसानों और मजदूरों से जोड़ते हुए त्रिकोणीय एकता का बिगुल भी फूंका.

देश आर्थिक तूफ़ान में, सरकार अमीरों की नाव खे रही है: दीपंकर

भाकपा-माले महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीधा सवाल उठाया: “क्या देश की अर्थव्यवस्था अब केवल चंद कॉरपोरेट घरानों की सेवा में लगी है?” उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक नीतियाँ गरीब को और ज़्यादा गरीब बना रही हैं जबकि अमीर पहले से और अमीर होते जा रहे हैं.

उन्होंने चेताया कि छोटे दुकानदार, किसान और मज़दूर, तीनों तबकों को अब एक साथ आना होगा. “ये लड़ाई किसी एक वर्ग की नहीं है. जब तक हम एकजुट नहीं होंगे, तब तक लूट और शोषण का ये चक्र नहीं रुकेगा,” उन्होंने कहा.

“मेट्रो और एयरपोर्ट से पेट नहीं भरता”

रोटी, रोजगार और संविधान पर वार: पटना में व्यापारी-मजदूरों की हुंकार

दीपंकर ने बिहार सरकार की “विकास योजनाओं” पर तीखा हमला बोला. “हर तरफ मेट्रो, ओवरब्रिज और एयरपोर्ट की बातें हो रही हैं, लेकिन जो ज़मीन पर जी रहे हैं—छोटे व्यापारी, किसान, मज़दूर—उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही,” उन्होंने कहा.

वो बोले कि बिहार में रोजगार नहीं, बल्कि रोज़ तबाही की खबरें हैं. छोटे दुकानदार दुकानें बंद कर रहे हैं, नौकरियां खत्म हो रही हैं, और किसान-मज़दूर कर्ज में डूब रहे हैं.

ये भी पढ़ें:
“अराजकता से नहीं चलता व्यापार”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि व्यापार के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ होती है – शांति और भाईचारा। लेकिन आज समाज में अपराध, नफरत और उन्माद का माहौल है, जो छोटे व्यापार के लिए खतरनाक है.

दीपंकर ने आरोप लगाया कि संविधान पर सीधा हमला हो रहा है, और कानून का राज कमजोर हो रहा है. “देश को आज़ादी इसलिए नहीं मिली थी कि हम अमेरिका की दादागीरी में सिर झुकाएं,” उन्होंने कहा.

“नोटबंदी और जीएसटी ने तोड़ी रीढ़, अब कर्ज से टूट रही महिलाएं”

दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों ने देश की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी है. बिहार में महिलाओं पर कर्ज की वसूली के नाम पर शोषण हो रहा है, और आत्महत्याएं तक हो रही हैं.

उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि बिहार को बदलाव चाहिए, और ये बदलाव सरकार बदलकर ही संभव है. उन्होंने मौजूदा “डबल इंजन” सरकार को “डबल बुलडोज़र” बताते हुए आरोप लगाया कि अब सरकार ही विकास के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट बन चुकी है.

“अपराध को चुनौती दो, तभी व्यापार बचेगा”: सांसद राजाराम सिंह
रोटी, रोजगार और संविधान पर वार: पटना में व्यापारी-मजदूरों की हुंकार

काराकाट से माले सांसद कॉ. राजाराम सिंह ने भी सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अपराध की राजनीति के खिलाफ लड़ना ही अब व्यापारियों की ज़िम्मेदारी है.

उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए लोकतंत्र को कुचलने में लगी है. उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ये सब अब और बर्दाश्त नहीं करेगी.

व्यापारी की हत्या से उपजा गुस्सा, सुरक्षा आयोग की मांग

आरा से माले सांसद सुदामा प्रसाद ने व्यापारी गोपाल खेमका की हत्या का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अब पूरे कारोबारी समाज को एक मंच पर आना ही होगा। उन्होंने मांग की कि व्यापारियों की सुरक्षा के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए।

मंच पर था जनप्रतिनिधियों और कारोबारियों का संगम

सम्मेलन में मंच पर बैठे थे छोटे दुकानदारों, राइस मिल मालिकों, टायर कारोबारी, ईंट भट्ठा संचालक, बस चालक और फुटपाथ दुकानदारों से लेकर भाकपा-माले के सांसद और विधायक.

पटना की मशहूर लेमनचूस फैक्ट्री के पूर्व संचालक शंभूनाथ मेहता, फर्नीचर व्यवसायी सुरेन्द्र सिंह, और राइस मिल एसोसिएशन के सच्चिदानंद राय जैसे कई अनुभवी कारोबारी इस संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाते नजर आए.

निष्कर्ष: बिहार में एक नया कारोबारी आंदोलन आकार ले रहा है?

पटना में 13 जुलाई को हुआ यह सम्मेलन केवल एक संगठन की स्थापना नहीं थी. यह एक संकेत था कि अब बिहार का व्यापारी वर्ग चुप नहीं रहेगा. जब किसान, मज़दूर और दुकानदार एक साथ खड़े होंगे, तो व्यवस्था को बदलने की ताकत पैदा होगी.

यह सम्मेलन एक नई उम्मीद लेकर आया है—आर्थिक न्याय, सामाजिक सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की बहाली की उम्मीद.

Trending news

Leave a Comment