“क्या यही अमृतकाल है?” – आइसा का तीखा सवाल
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 10 सितंबर 2025 बिहार की राजधानी पटना में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे शिक्षक अभ्यर्थियों पर हुए पुलिसिया लाठीचार्ज और गिरफ्तारियों ने पूरे राज्य की राजनीति को हिला कर रख दिया है.छात्र संगठन आइसा (AISA) ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए सरकार और प्रशासन पर सीधा निशाना साधा है.
युवाओं की आवाज़ दबाने पर उतरी सरकार
आइसा की राज्य अध्यक्ष प्रीति कुमारी और राज्य सचिव सबीर कुमार ने कहा कि भावी शिक्षकों की मांगें बिल्कुल वैध थीं. वे केवल न्यायसंगत भर्ती और नौकरी के अधिकार के लिए आवाज़ उठा रहे थे.लेकिन सरकार ने उनका समाधान करने के बजाय लाठियां, आँसू गैस और गिरफ्तारियों से उन्हें चुप कराने की कोशिश की है.
उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही का खुला प्रदर्शन है.
“क्या यही अमृतकाल है?” – आइसा का तीखा सवाल
प्रीति कुमारी ने तंज कसते हुए कहा,
क्या यही अमृतकाल का भारत है, जहाँ बेरोज़गार युवाओं को नौकरी देने के बजाय सड़कों पर पीटा जाता है? शांतिपूर्ण ढंग से अपनी माँग रखने वाले छात्रों को अपराधियों की तरह ट्रीट करना किस लोकतंत्र की निशानी है?
उन्होंने कहा कि यह रवैया न केवल युवाओं का अपमान है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों का भी खून है.
बेरोज़गारी-महंगाई और अब लाठियां – कब तक सहेंगे युवा?
आइसा नेताओं ने कहा कि पहले से ही बिहार का युवा बेरोज़गारी और महंगाई से जूझ रहा है. शिक्षित बेरोज़गारों के सामने भविष्य अंधकारमय है. ऐसे में नौकरी की मांग करने वालों पर लाठियां बरसाना और गिरफ्तार करना सरकार के असंवेदनशील रवैये को दिखाता है.
उन्होंने चेतावनी दी कि यह आक्रोश जल्द ही बड़ा जनांदोलन बनकर सामने आएगा और सत्ता परिवर्तन की नींव रखेगा.
लोकतंत्र में जनता की आवाज़ दबाना कुशासन की पहचान
आइसा ने अपने बयान में कहा कि इतिहास गवाह है, जब-जब छात्र-युवाओं की आवाज़ दबाने की कोशिश की गई है, तब-तब सरकारों को गद्दी छोड़नी पड़ी है.
“आज शिक्षक अभ्यर्थियों पर लाठी बरसाई गई है, कल यह गुस्सा सड़कों पर जनलहर बनकर डबल इंजन की सरकार को उखाड़ फेंकेगा.
आइसा की माँगें: न्याय के बिना संघर्ष थमेगा नहीं
आइसा ने सरकार के सामने चार सख़्त माँगें रखी हैं.
लाठीचार्ज और दमन की उच्चस्तरीय जाँच कराई जाए.
दोषी अधिकारियों पर सख़्त कार्रवाई की जाए.
गिरफ्तार अभ्यर्थियों को तुरंत रिहा किया जाए.
भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाए.
संगठन ने साफ किया कि जब तक युवाओं को न्याय नहीं मिलेगा, संघर्ष की आग बुझने वाली नहीं है.
हम नौकरी माँग रहे थे, लाठियां क्यों मिली?
लाठीचार्ज से घायल एक अभ्यर्थी ने आंसुओं के बीच कहा–
हम तो बस अपनी नौकरी और योग्यतानुसार हक माँग रहे थे, लेकिन हमें अपराधियों की तरह पीटा गया.यही है न्याय?
वहीं कई अभ्यर्थी हाथ में तख्ती लिए चिल्ला रहे थे – “नौकरी दो, नौकरी दो… तानाशाही बंद करो!”
ये नारे पूरे शहर की हवा में गूंजते रहे और आसपास खड़े लोग भी स्तब्ध रह गए.
बेरोज़गारी और महंगाई की मार के बीच दमन
बिहार में वैसे ही बेरोज़गारी की दर देश में सबसे ऊँची है.लाखों शिक्षित बेरोज़गार हर साल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, लेकिन भर्ती प्रक्रिया या तो अधर में लटकी रहती है या वर्षों तक पूरी नहीं होती
आइसा नेताओं ने कहा कि जब युवाओं के धैर्य का बांध टूट गया और वे सड़कों पर उतरे, तब सरकार ने समाधान देने के बजाय पुलिस का डंडा थमा दिया.
आइसा की चेतावनी: आक्रोश सैलाब बनकर लौटेगा
आइसा ने साफ कहा कि संगठन हर उस युवा के साथ खड़ा है, जो अपने अधिकार और न्याय की लड़ाई लड़ रहा है.उन्होंने सरकार से माँग की कि–
लाठीचार्ज और दमन की उच्चस्तरीय जाँच हो.
दोषी पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई हो.
गिरफ्तार छात्रों को तुरंत रिहा किया जाए.
शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से पूरी की जाए.
आइसा ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस दमन को बंद नहीं किया, तो यही आंसू और खून से भीगा आक्रोश आने वाले दिनों में सैलाब बनकर सरकार की नींव हिला देगा.

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