बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन पर बवाल: क्या ‘SIR’ है छुपा हुआ NRC?

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Ajit Kumar

बिहारभारत
बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन पर बवाल: क्या 'SIR' है छुपा हुआ NRC?

सड़क से संसद तक विरोध: बिहार बना ‘वोटर युद्ध’ का मैदान”

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना 22 जुलाई:बिहार की राजनीतिक फिजा में उस समय उबाल आ गया जब 2025 विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किया गया विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने तीखा विरोध दर्ज कराया है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे सीधा “मतदान के अधिकार को छीनने की साजिश” बताया है वहीं INDIA गठबंधन ने इस मुद्दे को वोटबंदी का नाम देते हुए केंद्र सरकार पर हमला बोला. यह विवाद न केवल बिहार की राजनीति को गर्मा रहा है. बल्कि अब देशव्यापी बहस का केंद्र बन गया है.

क्या है एसआईआर (SIR)?

चुनाव आयोग के अनुसार, एसआईआर एक नियमित प्रक्रिया है. जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को नवीनतम करना है. जैसे मृत मतदाताओं को हटाना, दोहराए गए नामों को समाप्त करना और केवल पात्र भारतीय नागरिकों को सूची में रखना. आयोग ने 25 जुलाई 2025 को गणना फॉर्म जमा करने काअंतिम तिथि तय किया है. इसके बाद 1 अगस्त को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी होगा. जबकि अंतिम सूची 30 सितंबर को आयेगा .

विपक्ष के आरोप: ‘गुप्त एनआरसी’ और लोकतंत्र पर हमला

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा कि बिहार में चल रही प्रक्रिया महाराष्ट्र में हुए कथित मतदाता हेरफेर की पुनरावृत्ति है. उनका दावा है कि गरीबों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों को जटिल दस्तावेजों की मांग कर हाशिए पर धकेला जा रहा है. खासकर 1987 से पहले के राशन कार्ड या माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र की मांग को लेकर व्यापक चिंता जताया गया है.

संसद परिसर में ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सवाल किया कि जब 2003 में देशव्यापी मतदाता सूची संशोधन हो चुका है. तब बिहार को ही इस प्रक्रिया के लिए क्यों चुना गया? उनका आरोप है कि यह कदम सीमांचल क्षेत्र में अल्पसंख्यक मतदाताओं को लक्षित करने के लिए उठाया गया है.

संसद परिसर में ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन

22 जुलाई को दिल्ली की संसद के बाहर विपक्ष की पार्टियों ने कंधे से कंधा मिलाकर जोरदार विरोध किया है जैसे कोई सियासी मोर्चा खोल दिया गया हो . कांग्रेस, आरजेडी, टीएमसी, सपा, शिवसेना (यूबीटी), सीपीएम, एनसीपी (एसपी), और जेएमएम सहित कई दलों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया और.प्रदर्शनकारियों ने ,एसआईआर को रद्द करो और संविधान बचाओ, जैसे नारे लगाया.INDIA गठबंधन ने इसे “संविधान को कुचलने की साजिश” बताया है.

चुनाव आयोग का पक्ष: “यह फर्जीवाड़ा रोकने का प्रयास

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष है. उनका तर्क है कि इसका मकसद केवल मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है. उन्होंने स्पष्ट किया कि दस्तावेज़ों की सूची में कोई बदलाव नहीं हुआ है.भ्रम एक भ्रामक विज्ञापन के कारण फैला है.

सुप्रीम कोर्ट की सावधानीपूर्ण भूमिका

एसआईआर के खिलाफ कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रिया को तत्काल रोकने से इनकार किया है.परंतु इसके समय और तरीके पर गंभीर सवाल उठाया हैं. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से पूछा कि आम दस्तावेज़ों, जैसे आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड, को प्रमाण के रूप में क्यों नहीं अपनाया जा रहा? कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि मतदाता सूची संशोधन को नागरिकता सत्यापन से क्यों जोड़ा जा रहा है.जबकि नागरिकता की पुष्टि गृह मंत्रालय का काम है. अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित है.

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बिहार चुनाव पर संभावित असर

बिहार में इस समय लगभग 7.9 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं. जिनमें से चुनाव आयोग ने 43.92 लाख को असत्यापित के रूप में चिह्नित किया है. विपक्ष को आशंका है कि यदि ये मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया. तो यह चुनावी संतुलन को एनडीए के पक्ष में झुका सकता है.

सीमांचल और अन्य अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में मतदाताओं में भय और असमंजस की स्थिति है. कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चेताया है कि यह प्रक्रिया एनआरसी की तरह एक “छुपा हुआ नागरिकता परीक्षण” बन सकता है.

आगे की राह: सुप्रीम कोर्ट और जनता की नजर

यह स्पष्ट है कि सीधा-सादा दफ्तर का काम लगने वाला एसआईआर अब बड़ी सियासी बहस का मुद्दा बन चुका है. यह मतदाता अधिकारों बनाम प्रणालीगत संशोधन की लड़ाई में तब्दील हो गया है .सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला इस बात को तय कर सकता है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव कितने निष्पक्ष और समावेशी होंगा.

निष्कर्ष:

जहाँ एक ओर चुनाव आयोग मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रहा है. वहीं विपक्ष और नागरिक समाज इस प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक और भेदभावपूर्ण मान रहे हैं. “वोटबंदी” शब्द जितना तीखा है, उतना ही गहरा है इससे जुड़ा जनसरोकार.सवाल अब यह नहीं है कि संशोधन जरूरी है या नहीं. बल्कि यह है कि क्या यह निष्पक्ष और सबके लिए सुलभ है?

क्या आप बिहार के मतदाता हैं? क्या आपने SIR प्रक्रिया में भाग लिया है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें या हमें लिखें. लोकतंत्र आपके अनुभवों से ही मजबूत होता है.

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