डॉग बाबू से सनी लियोनी तक: फर्जीवाड़े के दलदल में चुनावी व्यवस्था?

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Ajit Kumar

बिहार
डॉग बाबू से सनी लियोनी तक: फर्जीवाड़े के दलदल में चुनावी व्यवस्था?

RJD का चुनाव आयोग और नीतीश सरकार पर करारा वार

तीसरा पक्ष डेस्क पटना,31 जुलाई :बिहार की राजनीति में इन दिनों एक ऐसा दृश्य सामने आया है. जो जितना हास्यास्पद है. उतना ही चिंताजनक भी है. मतदाता सूची में डॉग बाबू ,सोनालिका ट्रैक्टर और सनी लियोनी, जैसे नामों का शामिल होना केवल सोशल मीडिया की सुर्खियाँ नहीं हैं. बल्कि यह हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में गहराते फर्जीवाड़े और प्रशासनिक लापरवाही की खौफ़नाक तस्वीर पेश करता है.

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इस घटनाक्रम पर तीखा प्रहार करते हुए आरोप लगाया है कि बिहार में फर्जी नामों और नकली दस्तावेज़ों के दम पर सरकारी प्रमाणपत्र जारी किया जा रहा है. जबकि असली और योग्य नागरिकों को मतदाता सूची से बाहर रखा जा रहा है. यह सवाल सिर्फ नीतीश सरकार की कार्यप्रणाली पर नहीं बल्कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता और संपूर्ण चुनावी व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी उठ खड़ा हुआ है.

जब लोकतंत्र की सबसे बुनियादी प्रक्रिया,वोट डालने का अधिकार, ही मज़ाक बन जाए तो यह सिर्फ एक राज्य की प्रशासनिक विफलता नहीं पूरे राष्ट्र की लोकतांत्रिक चेतना के लिए खतरे की घंटी है.

आइए अब इस पूरे मुद्दे को विस्तार से एक-एक परत खोलते हुए समझते हैं. कि आखिर RJD ने ऐसा तीखा हमला क्यों किया? “डॉग बाबू” और “सनी लियोनी” जैसे नाम मतदाता सूची में कैसे शामिल हो गए? और इससे लोकतंत्र को कितना गहरा खतरा है?

जब लोकतंत्र मज़ाक बन जाए

सोचिए, अगर आपके पड़ोसी का नाम “डॉग बाबू”, सामने वाले खेत का मालिक “सोनालिका ट्रैक्टर” और मोहल्ले की सबसे चर्चित हस्ती “सनी लियोनी” हो — और सभी के पास वैध आवासीय प्रमाणपत्र भी हों – तो क्या आप हँसेंगे या डर जाएंगे?

बिहार में राजनीति अब हंसी-ठिठोली से कहीं आगे बढ़ चुकी है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के हालिया ट्वीट ने जिस सच्चाई का पर्दाफाश किया है, वह सिर्फ एक सोशल मीडिया ट्रेंड नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर गहराते खतरे की ओर इशारा करता है.

सोशल मीडिया का विस्फोटक बयान

RJD ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल @RJDforIndia से एक तीखा और व्यंग्यात्मक ट्वीट किया जिसमें लिखा था कि :

“नीतीश बाबू के सरकार में फर्जी डॉग बाबू, सोनालिका ट्रैक्टर और सनी लियोनी का आवासीय प्रमाणपत्र बन सकता है. ऐसी फर्जी सरकारी व्यवस्था द्वारा निर्गत फर्जी आवासीय प्रमाणपत्र को मतदाता सत्यापन के लिए मान्य माना जा सकता है पर असली आधार कार्ड या अन्य प्रमाणपत्रों के आधार पर किसी असली बिहारवासी मतदाता का असली मतदाता प्रमाणपत्र नहीं बन सकता!

इस ट्वीट ने न केवल लाखों यूज़र्स का ध्यान खींचा, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है.

फर्जीवाड़े की कहानी: हंसी में छिपा डर

यह कोई नया मुद्दा नहीं है. इससे पहले भी बिहार की मतदाता सूचियों में सनी लियोनी नाम जैसी एंट्रियां सामने आ चुका हैं. एक बार नहीं बल्कि बार-बार. हाल ही में दरभंगा, मुजफ्फरपुर और वैशाली जैसे जिलों में भी अजीबोगरीब नामों पर मतदाता पंजीकरण के मामले सामने आया है.

इतना ही नहीं, कथित रूप से पालतू जानवरों के नाम, ट्रैक्टर के नाम और फर्जी आईडी पर सरकारी प्रमाणपत्र जारी होने की घटनाएं सरकार के सिस्टम की गंभीर विफलता को उजागर करता हैं.

कैसे सामने आए ये नाम? “डॉग बाबू”, “सनी लियोनी” और लोकतंत्र का मज़ाक

“सनी लियोनी”
वर्ष 2023 में बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले में वोटर लिस्ट में अभिनेत्री सनी लियोनी का नाम दर्ज हुआ. न केवल नाम, बल्कि जन्मतिथि और पता भी मौजूद था.

“डॉग बाबू” और “सोनालिका ट्रैक्टर”
2024-25 की मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान दरभंगा और मधुबनी जैसे ज़िलों से ऐसी नामचीन और अविश्वसनीय प्रविष्टियाँ पाया गया.

यह दिखाता है कि कुछ लोग जानबूझकर सिस्टम में सेंध लगा रहे हैं.या फिर ये सरकार के तंत्र पर भरोसे की गिरावट की प्रतिक्रिया भी हो सकता है.

लोकतंत्र की चीरहरण या लापरवाही की चरम सीमा?

भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में चुनाव सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं है बल्कि जन-इच्छा की अभिव्यक्ति है.जब वही प्रक्रिया मज़ाक का रूप लेने लगे. और डॉग बाबू , सनी लियोनी या सोनालिका ट्रैक्टर, जैसे नाम सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज होने लगें. तब प्रश्न उठता है: क्या हम एक फर्जी लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं?

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने हाल ही में एक ट्वीट कर बिहार सरकार और चुनाव आयोग पर करारा प्रहार किया. जिसमें यह आरोप लगाया गया कि असली नागरिकों को मतदाता सूची से बाहर रखा जा रहा है, जबकि फर्जी नामों को मान्यता मिल रही है.

वास्तविकता: असली मतदाता, नकली व्यवस्था

RJD का आरोप सिर्फ राजनीतिक स्टंट नहीं है.उनका दावा है कि आम बिहारवासी, जो हर कागज़ी प्रक्रिया पूरी करता है. आधार कार्ड, राशन कार्ड, जाति प्रमाणपत्र, बिजली बिल तक देता है. उसे भी मतदाता सूची में जगह नहीं मिल पाती है.वहीं दूसरी ओर, सिस्टम में सेंध लगाकर फर्जी नामों को वैधता मिल रहा है.

यह स्थिति चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान की प्रामाणिकता को सवालों के घेरे में ले आता है. अगर इस पुनरीक्षण में ही फर्जी दस्तावेज़ पास हो रहे हैं.तो चुनाव की निष्पक्षता कैसे सुनिश्चित होगी?

ये नाम मज़ाक नहीं, हकीकत हैं

सनी लियोनी का नाम मतदाता सूची में:
2023 में मुजफ्फरपुर जिले के एक वोटर रजिस्ट्रेशन ड्राइव में बॉलीवुड अभिनेत्री सनी लियोनी का नाम और जन्मतिथि दर्ज हो गया था. पता लिखा था: मुजफ्फरपुर नगर निगम, वार्ड नंबर 27.

डॉग बाबू और सोनालिका ट्रैक्टर
2024-25 की समीक्षा में सामने आया कि दरभंगा और मधुबनी जिलों में कुछ आवेदन ऐसे भी मिले जिनमें नाम था.डॉग बाबू और “सोनालिका ट्रैक्टर यह जानबूझकर सिस्टम में सेंधमारी करने या सरकार की निष्क्रियता का मज़ाक उड़ाने की कोशिश हो सकता है.

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि नामों की सत्यता की कोई प्रभावी जाँच प्रणाली नहीं है.

आधार पर खड़े लोकतंत्र को हिला रहा है फर्जीवाड़ा

एक तरफ सरकार आधार कार्ड को लगभग हर सरकारी योजना से लिंक करने पर जोर दे रहा है.वहीं मतदाता पहचान जैसे मूलभूत अधिकार को फर्जी आवेदनों के हवाले किया जा रहा है. सवाल उठता है कि जब सरकारी पोर्टल से जुड़ा डिजिटल सत्यापन तंत्र इतना कमजोर है कि काल्पनिक और अपमानजनक नाम भी पार हो जाता हैं.तो आम आदमी के अधिकारों की क्या गारंटी है?

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चुनाव आयोग की भूमिका, निष्पक्ष या नाकारा?

भारत का चुनाव आयोग संविधान के तहत एक स्वायत्त संस्था है. जिसका कर्तव्य है स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है परंतु जब एक राज्य में इतने बड़े स्तर पर फर्जी मतदाता नामांकन और असली नामों को खारिज करने की घटनाएं हों. तब उसकी चुप्पी और निष्क्रियता संदेहास्पद हो जाता है.

क्या आयोग सिर्फ आंकड़ों की खानापूर्ति कर रहा है?
क्या विशेष गहन पुनरीक्षण सिर्फ एक औपचारिकता बन गया है?

इन सवालों का जवाब जरूरी है, क्योंकि एक भी फर्जी मतदाता लोकतंत्र के साथ धोखा है.

चुनाव आयोग की निष्क्रियता पर सवाल!

चुनाव आयोग, जो संविधान द्वारा स्थापित एक निष्पक्ष संस्था है. उसका दायित्व है कि वह हर मतदाता को समान अवसर दे.

लेकिन RJD के अनुसार विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान केवल नाम के लिए चल रहा है.
सैकड़ों वास्तविक लोगों को रिकॉर्ड नहीं मिला, प्रमाण अपूर्ण, सत्यापन लंबित जैसे बहाने देकर बाहर रखा जा रहा है.

वहीं,सनी लियोनी जैसे नाम बिना किसी रोक-टोक के सूची में दर्ज हो रहा हैं.

राजनीतिक निहितार्थ — RJD का रणनीतिक वार

RJD का यह हमला केवल सरकार पर तंज नहीं है बल्कि एक गहरी चुनावी रणनीति का हिस्सा भी है. तेजस्वी यादव यह मुद्दा न केवल ट्विटर तक. बल्कि विधानसभा और सड़कों पर भी ले जाने के मूड में हैं.
यह मुद्दा

  • जातीय जनगणना के बाद उपजे सवर्ण-ओबीसी विवाद को नया मोड़ देगा
  • नीतीश सरकार की प्रशासनिक क्षमता पर सीधा प्रहार करेगा
  • चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को राष्ट्रीय बहस में लाएगा

नीतीश सरकार की भूमिका पर सवाल

RJD ने नीतीश कुमार सरकार पर सीधा हमला बोला है. उन्हें फर्जीवाड़े की सरकार करार देते हुये. सवाल उठता है कि क्या यह केवल चुनाव आयोग की नाकामी है. या फिर सरकारी तंत्र की मिलीभगत से चल रहा एक सुनियोजित खेल?

सत्तारूढ़ दल की ओर से अब तक इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट सफाई नहीं आया है.विपक्ष का आरोप है कि फर्जी मतदाताओं के जरिए चुनावी लाभ लेने की रणनीति बनाई जा रहा है.

लोकतंत्र का खतरा: एक गंभीर चेतावनी

एक मज़ाकिया ट्वीट से शुरू हुई बात आज लोकतंत्र की गंभीर चिंता में तब्दील हो गया है.अगर वोट डालने का अधिकार भी फर्जी नामों और पहचान पत्रों के हवाले हो जाए.तो असली नागरिक कहां खड़ा रहेगा?

चुनाव आयोग की निष्पक्षता, पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा. ये वो तीन स्तंभ हैं जिन पर भारत का लोकतंत्र टिका हुआ है.लेकिन जब ये स्तंभ खुद भ्रष्टाचार, लापरवाही और राजनीतिक दबाव के नीचे दबने लगें तो लोकतंत्र केवल एक दिखावा बनकर रह जाता है.

क्या समाधान है?

  • डिजिटल सत्यापन प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिये.
  • मतदाता पंजीकरण के लिए आधार की अनिवार्यता पर फिर से विचार हो.
  • फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने वालों पर आपराधिक कार्यवाही की जाये .
  • चुनाव आयोग को पूर्ण स्वायत्तता और जवाबदेही के साथ कार्य करने दिया जाये.

निष्कर्ष: ये केवल नाम नहीं, लोकतंत्र की चीत्कार है

डॉग बाबू , सनी लियोनी, सोनालिका ट्रैक्टर ये नाम हँसी के पात्र नहीं हैं. ये भारतीय लोकतंत्र की कमजोर होती दीवारों में दरार के एक प्रतीक हैं.

RJD ने इस मसले को नारा नहीं चेतावनी बना दिया है. अब ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग, सरकार और जागरूक नागरिकों का है कि वे इन मुद्दों को गंभीरता से लें.

लोकतंत्र केवल EVM या बैलट पेपर से नहीं चलता है. वह चलता है सत्य, न्याय और पारदर्शिता से. और यदि वही खो जाए, तो चुनाव एक औपचारिक मज़ाक बनकर रह जाता हैं.

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