महाबोधि महाविहार की मुक्ति को लेकर हजारों लोगों की हुंकार
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना 23 जुलाई :भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है. जहाँ सभी धर्मों को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त है. लेकिन जब किसी समुदाय की धार्मिक आस्था, पहचान और संवैधानिक अधिकारों का निरंतर हनन होता है.तो शांतिपूर्ण आंदोलन अनिवार्य हो जाता है.बौद्ध धर्म, जिसकी जड़ें भारत की पवित्र भूमि से निकलीं है आज अपने ही देश में उपेक्षा और भेदभाव का शिकार है.विशेष रूप से उस भूमि पर जहाँ स्वयं तथागत बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था.बोधगया.

महाबोधि महाविहार केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि करोड़ों बौद्ध अनुयायियों की आस्था, पहचान और सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक है. फिर भी, बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 के तहत इसके प्रबंधन में गैर-बौद्धों की भूमिका, और हाल की घटनाओं में राज्यपाल द्वारा तथागत बुद्ध की प्रतिमा की अवमानना जैसी घटनाएं, पूरे बौद्ध समुदाय में गहरी पीड़ा और आक्रोश का कारण बना हैं.
इन्हीं मुद्दों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए 23 जुलाई 2025 को पटना के गर्दनीबाग में एक विशाल शांतिपूर्ण प्रदर्शन आयोजित किया गया है जिसने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश का ध्यान इस गंभीर विषय की ओर आकर्षित किया है
आइए, इस विस्तृत रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर यह आंदोलन क्यों महत्वपूर्ण है, इसमें क्या मांगें रखी गईं और आने वाले समय में इसका सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव क्या हो सकता है.

बौद्ध अस्मिता की लड़ाई तेज
पटना के गर्दनीबाग में 23 जुलाई का दिन इतिहास में दर्ज हो गया जब बुद्धिस्ट समन्वय संघ (BSS) बिहार के नेतृत्व में हजारों की संख्या में बौद्ध उपासक, अनुयायी और सामाजिक कार्यकर्ता एक मंच पर जुटे. महाबोधि महाविहार बोधगया की मुक्ति और बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम 1949 को समाप्त करने की मांग को लेकर यह प्रदर्शन आयोजित किया गया.
यह महज एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि बौद्ध अस्मिता, धार्मिक स्वतंत्रता और सांवैधानिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की एक पुकार थी.
प्रदर्शन की शुरुआत: बुद्ध वंदना और एकजुटता का आह्वान
कार्यक्रम की शुरुआत भंते डॉ. करुणाशील राहुल द्वारा बुद्ध वंदना से किया गया.जिसने माहौल को शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया. इसके बाद वक्ताओं ने एक के बाद एक मंच से अपने विचार रखते हुए बौद्ध समुदाय के अधिकारों की बहाली की माँग दोहराया गया.

मुख्य वक्ता के तौर पर भाकपा माले विधायक सत्यदेव राम ने ऐलान किया कि बोधगया महाविहार की मुक्ति अब बिहार की जनता की अगुवाई में होगा.उन्होंने कहा कि जल्द ही गांधी मैदान में एक और विशाल आमसभा का आयोजन किया जायेगा।जो इस आंदोलन को निर्णायक दिशा देगी.
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व: विपक्ष से समर्थन
इस जनसभा में केवल बौद्ध भिक्षु ही नहीं बल्कि राजनीति और समाजसेवा से जुड़े कई प्रमुख नेताओं ने भी हिस्सा लिया.
मुख्य वक्ताओं में शामिल रहे.
- सत्यदेव राम – भाकपा (माले) विधायक दल के उपनेता
- राजेन्द्र पाल गौतम – दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री व कांग्रेस के SC विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष
- सतीश दास – राजद विधायक, मखदूमपुर
- सूर्यकांत पासवान – भाकपा विधायक, बखरी
- साथ ही जयप्रकाश गौतम, पिंटू भारती, भंते अनिरुद्ध, भंते धम्मदीप, सहित दर्जनों सामाजिक और धार्मिक कार्यकर्ता मंच पर मौजूद रहे.
भंते विनाचार्य की वापसी और बौद्ध नेतृत्व की नई लहर
हाल ही में जेल से रिहा होकर बाहर आए भंते विनाचार्य ने पहली बार सार्वजनिक रूप से मंच से अपना पक्ष रखा. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें फर्जी मुकदमों में फँसाकर जेल भेजने की साजिश उन्हीं कुछ तथाकथित बौद्ध नेताओं ने रची, जो सरकार से मिले हुए हैं.
भंते विनाचार्य ने कहा:
“यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं बल्कि पूरे बौद्ध समुदाय की अस्मिता और स्वतंत्रता का है.हम शांतिपूर्ण तरीकों से अपना अधिकार मांग रहे हैं. और अब यह आंदोलन थमने वाला नहीं है.
मुख्य माँगें: ज्ञापन में 4 बिंदुओं पर ज़ोर
प्रदर्शन के समापन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम एक ज्ञापन स्थानीय मजिस्ट्रेट को सौंपा गया.ज्ञापन में बौद्ध अनुयायियों ने चार प्रमुख माँगें रखीं:
- बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 को समाप्त किया जाये.
यह अधिनियम बौद्धों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. क्योंकि इससे मंदिर का प्रबंधन बौद्धों के बजाय गैर-बौद्धों (मुख्यतः हिन्दू व सरकारी अधिकारियों) के हाथों में चला गया है. - महाबोधि महाविहार का पूर्ण प्रबंधन बौद्ध समुदाय को सौंपा जाये
यह स्थल न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के बौद्धों के लिए आस्था और पहचान का प्रतीक है. - भंते विनाचार्य समेत सभी आंदोलनरत बौद्ध अनुयायियों पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिए जाये.
संविधानिक अधिकारों के तहत शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस कार्रवाई को निंदनीय बताया गया . - बिहार के राज्यपाल को हटाया जाए.
ज्ञापन में 12 मई 2025 की घटना का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. जिसमें बुद्ध पूर्णिमा के दिन राज्यपाल द्वारा तथागत बुद्ध की प्रतिमा की पीठ की ओर शिवलिंग की पूजा को बौद्ध प्रतीकों का अपमान बताया गया.
संवैधानिक उल्लंघन का आरोप
ज्ञापन में यह भी स्पष्ट किया गया कि मौजूदा मंदिर अधिनियम और हालिया घटनाएं भारत के संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों का उल्लंघन करता हैं.
- अनुच्छेद 13 – मौलिक अधिकारों की रक्षा
- अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 15 – धर्म के आधार पर भेदभाव निषेध
- अनुच्छेद 25 – धार्मिक स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 26 – धार्मिक मामलों के स्वतंत्र प्रबंधन का अधिकार
आंदोलन की अगली कड़ी: गांधी मैदान में महासभा की तैयारी
बुद्धिस्ट समन्वय संघ ने घोषणा किया है कि आने वाले समय में पटना के गांधी मैदान में एक विशाल आमसभा का आयोजन किया जाएगा.जिसमें देशभर के बौद्ध अनुयायियों के शामिल होने की उम्मीद है. इसका उद्देश्य महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना है.
निष्कर्ष: शांतिपूर्ण संघर्ष, मगर दृढ़ संकल्प
पटना का यह जनप्रदर्शन न केवल बौद्धों की बढ़ती जागरूकता का प्रतीक है. बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में धार्मिक अल्पसंख्यकों की आस्था और प्रतीकों की पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित हो पा रही है?
बौद्ध समुदाय की यह लड़ाई अब महज धार्मिक नहीं. बल्कि संवैधानिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अधिकारों की रक्षा का आंदोलन बन चुका है.
:डॉ. कमल उसरीप्रभारी, बुद्धिस्ट समन्वय संघ, बिहार
यह लेख स्वतंत्र पत्रकारिता के सिद्धांतों के तहत जनसरोकार आधारित समाचार कवरेज का हिस्सा है. यदि आप महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन से जुड़े अपडेट चाहते हैं, तो जुड़े रहें.

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