बिहार में BSP की “सर्वजन हिताय जागरूक यात्रा” का आगाज़: क्या बदल जाएगा चुनावी गणित?
तीसरा पक्ष डेस्क,पटना, 10 सितम्बर 2025 –आज बिहार के कैमूर जिले से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ का शुभारंभ किया, जिसका नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद कर रहे हैं. यह यात्रा बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बसपा की सियासी जमीन को मजबूत करने और जनता के बीच एक नया विकल्प प्रस्तुत करने की महत्वाकांक्षी कोशिश है. आकाश आनंद के बिहार में कदम रखते ही सियासी हलचल तेज हो गई है, और राजनीतिक विश्लेषक इस बात का अनुमान लगाने में जुटे हैं कि क्या बसपा बिहार के सियासी समीकरण को बदल सकती है. इस लेख में हम आकाश आनंद के बिहार मिशन, बसपा की रणनीति, और इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण करेंगे.
‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’: बसपा का नया दांव
‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ का शुभारंभ कैमूर के भभुआ में एक विशाल जनसभा के साथ हुआ, जिसमें आकाश आनंद ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधन दिया. यह यात्रा 11 दिनों तक 13 जिलों – कैमूर, बक्सर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, छपरा, सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और वैशाली – से गुजरते हुए 20 सितम्बर को वैशाली – लोकतंत्र की धरती – पर समापन होगा. बसपा ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि जनता की वास्तविक समस्याओं जैसे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय को उठाने का मंच है.

आकाश आनंद ने अपने संबोधन में उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए बिहार में भी ‘मायावती मॉडल’ लागू करने का वादा किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि बसपा का लक्ष्य “जिसकी जितनी जनसंख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी” के सिद्धांत को लागू करना है, जो सामाजिक न्याय और समावेशी विकास का आधार बनेगा. यह संदेश खासकर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा है.
आकाश आनंद: बसपा का नया चेहरा
आकाश आनंद, बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक, इस मिशन के केंद्र में हैं. उनकी युवा छवि, आक्रामक रणनीति और सोशल मीडिया पर सक्रियता ने पार्टी में नई ऊर्जा भरी है. मायावती ने उन्हें बिहार में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की पूरी जिम्मेदारी सौंपी है, और यह उनके लिए पहली बड़ी सियासी परीक्षा मानी जा रही है.
आकाश की वापसी और उनके प्रमोशन की कहानी भी रोचक है. मार्च 2025 में मायावती ने उन्हें उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ के प्रभाव के चलते पार्टी से निष्कासित कर दिया था. हालांकि, अप्रैल में आकाश ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगकर अपनी गलतियों को स्वीकार किया, जिसके बाद मायावती ने उन्हें फिर से पार्टी में शामिल किया और अगस्त 2025 में राष्ट्रीय संयोजक के रूप में प्रमोट किया. यह कदम मायावती की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह आकाश को भविष्य के लिए तैयार कर रही हैं.
आकाश की सभाओं में युवा कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ और X पर उनके समर्थन में पोस्ट्स दर्शाते हैं कि वह दलित और युवा वर्ग में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. उनके भाषणों में आक्रामकता के बजाय अब एक संयमित और रणनीतिक दृष्टिकोण देखा जा रहा है, जो मायावती के मार्गदर्शन में उनकी परिपक्वता को दर्शाता है.
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बसपा की रणनीति: ‘एकल चलो’ और जनता के साथ गठबंधन

बसपा ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. मायावती ने गठबंधनों को ‘ठगबंधन’ करार देते हुए जनता के साथ सीधा गठबंधन करने का दावा किया है. पार्टी का मानना है कि बिहार की जनता एनडीए और महागठबंधन से थक चुकी है और अब एक नए, विश्वसनीय विकल्प की तलाश में है.
बसपा की रणनीति में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
- दलित और पिछड़े वर्गों को एकजुट करना: बसपा का परंपरागत वोट बैंक दलित समुदाय है, खासकर यूपी से सटे बिहार के क्षेत्रों में. इसके साथ ही, पार्टी गैर-यादव ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.
- स्थानीय नेतृत्व का विकास: आकाश आनंद और रामजी गौतम के नेतृत्व में पार्टी स्थानीय नेताओं को संगठित कर रही है और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए कैडर कैंप और रैलियां आयोजित कर रही है.
- सामाजिक न्याय का नैरेटिव: बसपा ‘सामाजिक न्याय’ और ‘हिस्सेदारी’ के मुद्दे को केंद्र में रखकर जनता के बीच अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहती है. यह संदेश उन वर्गों को आकर्षित कर सकता है जो मौजूदा सियासी दलों से असंतुष्ट हैं.
- युवा और डिजिटल रणनीति: आकाश आनंद की सोशल मीडिया पर सक्रियता और युवा कार्यकर्ताओं को जोड़ने की रणनीति बसपा को आधुनिक और युवा-केंद्रित छवि दे रही है.
बिहार के सियासी समीकरण और बसपा की संभावनाएं
बिहार की राजनीति लंबे समय से एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच सिमटी रही है. बसपा का इतिहास बिहार में प्रभावशाली नहीं रहा है. 2000 के दशक में पार्टी ने कुछ सीटें जीती थीं, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे केवल एक सीट मिली. ऐसे में, बसपा के लिए बिहार में सियासी समीकरण बदलना एक बड़ी चुनौती है.
सकारात्मक पहलू:
- दलित वोट बैंक: बिहार में दलित आबादी करीब 20% है, जो बसपा का कोर वोट बैंक है. अगर पार्टी इस वोट बैंक को एकजुट करने में सफल रही, तो वह कई सीटों पर प्रभाव डाल सकती है.
- आकाश आनंद की अपील: उनकी युवा छवि और आधुनिक दृष्टिकोण युवा मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है, जो बदलाव की तलाश में हैं.
- वैकल्पिक विकल्प की मांग: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बिहार की जनता मौजूदा गठबंधनों से असंतुष्ट है, और बसपा इस असंतोष को भुनाने की स्थिति में हो सकती है.
- यूपी से सटे क्षेत्रों में प्रभाव: कैमूर, बक्सर, और रोहतास जैसे यूपी से सटे जिलों में बसपा का पहले से कुछ जनाधार है, जिसे पार्टी मजबूत करने की कोशिश कर रही है.
चुनौतियां:
- सीमित संगठनात्मक ढांचा: बिहार में बसपा का संगठन यूपी की तुलना में कमजोर है. कांशीराम के समय में भी पार्टी बिहार में मजबूत आधार नहीं बना सकी.
- प्रमुख गठबंधनों का दबदबा: एनडीए और महागठबंधन की मजबूत सियासी मशीनरी के सामने बसपा का अकेले टिकना मुश्किल होगा.
- वोटों का बिखराव: बसपा को अकेले लड़ने का फैसला वोटों के बिखराव का कारण बन सकता है, जिससे विपक्षी गठबंधन को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हो सकता है.
- पिछले प्रदर्शन की कमजोरी: 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन यूपी और अन्य राज्यों में निराशाजनक रहा, जिसका असर बिहार में भी पड़ सकता है.
सियासी विश्लेषकों की राय
सियासी विश्लेषकों में इस बात को लेकर मतभेद हैं कि क्या बसपा बिहार में कोई बड़ा बदलाव ला सकती है. कुछ का मानना है कि आकाश आनंद की सक्रियता और ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ से बसपा कुछ सीटों पर प्रभाव डाल सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां दलित और पिछड़े वोटरों की संख्या ज्यादा है. हालांकि, अन्य विश्लेषक मानते हैं कि बिहार की दो-ध्रुवीय राजनीति में बसपा के लिए जगह बनाना बेहद मुश्किल होगा, खासकर जब वह अकेले चुनाव लड़ रही है.
X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि “आकाश आनंद के बिहार में कदम रखते ही माहौल बदल गया है,” और बसपा एक नया विकल्प बनकर उभर रही है. हालांकि, ये दावे अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि बसपा को अभी संगठनात्मक और रणनीतिक स्तर पर काफी मेहनत करने की जरूरत है.
भविष्य की संभावनाएं और प्रभाव
आकाश आनंद का बिहार मिशन न केवल बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश के 2027 विधानसभा चुनाव के लिए भी बसपा की रणनीति को आकार दे सकता है. अगर बसपा बिहार में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में सफल रही, तो यह मायावती के ‘मिशन 2027’ को गति दे सकता है. इसके अलावा, आकाश आनंद की सफलता या असफलता उनकी सियासी विश्वसनीयता और मायावती के उत्तराधिकारी के रूप में उनकी स्थिति को भी प्रभावित करेगी.
निष्कर्ष
आकाश आनंद का बिहार मिशन बसपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है. ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ के जरिए पार्टी न केवल अपनी सियासी मौजूदगी को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, बल्कि बिहार की जनता को एक नए विकल्प का भरोसा दे रही है. हालांकि, बिहार की जटिल सियासी बिसात पर बसपा का यह दांव कितना कारगर होगा, यह देखना बाकी है. आकाश आनंद की युवा ऊर्जा, मायावती का अनुभव, और बसपा का सामाजिक न्याय का नैरेटिव बिहार में एक नया सियासी समीकरण बना सकता है, लेकिन इसके लिए पार्टी को संगठनात्मक मजबूती और रणनीतिक चतुराई दिखानी होगी. क्या बसपा बिहार में उड़ान भर पाएगी? इसका जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा.

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