बसपा की मेगा रैली ने मचाया सियासी भूचाल
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,19 अक्टूबर 2025 उत्तर प्रदेश से शुरू हुई बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नई सियासी लहर अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में गूंज पैदा कर रही है.
मायावती की मेगा रैली ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बसपा अब सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं रहना चाहती है , बल्कि दलित, पिछड़े और वंचित वर्ग के वोट बैंक को एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय करने की रणनीति पर काम कर रही है.
इस बार बसपा की रणनीति केवल वोट बैंक पर नहीं, बल्कि सम्मान और प्रतिनिधित्व की राजनीति पर केंद्रित है.
पहले चरण के चुनावी माहौल में ही बसपा की सक्रियता ने विरोधियों के पसीने छुड़ा दिए हैं.
बसपा की मेगा रैली: विरोधियों में मची हलचल
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई बसपा की मेगा रैली ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दिया है.
रैली में जुटी भारी भीड़ ने यह संकेत दिया कि मायावती का जनाधार अब भी कायम है.
और बिहार जैसे पड़ोसी राज्यों में भी बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव बढ़ता जा रहा है.
रैली में मायावती ने साफ कहा
अब वक्त है कि बहुजन समाज अपने वोट की ताकत को पहचाने और सत्ता में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करे.
यह संदेश सीधे बिहार तक पहुँचा
सीमांचल से लेकर मगध और चंपारण तक — बसपा के कार्यकर्ता मैदान में उतर चुके हैं.
जनसंपर्क अभियान तेज़ है और पार्टी का फोकस उन सीटों पर है जहाँ दलित-पिछड़ा समीकरण निर्णायक भूमिका निभाता है.
बिहार में बसपा का उभार: बदलता राजनीतिक समीकरण
बिहार में लंबे समय से राजनीतिक मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच सीमित रहा है.
लेकिन इस बार समीकरण बदलता हुआ दिखाई दे रहा है.
बसपा ने तीसरे विकल्प के रूप में मैदान में उतरकर नए सियासी संतुलन की शुरुआत कर दिया है.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार
बसपा इस बार लगभग 15 से 20 सीटों पर असर डाल सकती है.
कई जगहों पर उसका वोट शेयर किंगमेकर की स्थिति तक पहुँच सकता है.
यह असर खास तौर पर उन क्षेत्रों में देखा जा रहा है जहाँ दलित, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की बसपा की रणनीति साफ़ तौर पर दिखाई दे रहा है.
मायावती की रणनीति: बहुजन एकता का पुनर्जागरण
मायावती इस बार पहले से ज़्यादा एक्टिव दिखाई दे रही हैं.
उनकी रणनीति तीन मुख्य बिंदुओं पर आधारित है:
संगठन विस्तार – हर जिले में बहुजन एकता समितियों का गठन.
विचारधारा पुनर्प्रचार – बाबा साहेब अंबेडकर और कांशीराम के मिशन को फिर से केंद्र में लाना.
वोट बैंक पुनर्संरचना – दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग को एक साझा मंच पर लाना.
बसपा के नारे बहुजन की सरकार, सबके अधिकार ने सोशल मीडिया पर भी जोर पकड़ा है.
युवा मतदाताओं में यह नारा एक नई पहचान बना रहा है.
पार्टी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है और जमीनी स्तर पर बूथ मज़बूती अभियान चला रही है.
विरोधियों की चिंता: वोट बैंक की राजनीति में सेंध
बसपा की बढ़ती सक्रियता से एनडीए और महागठबंधन दोनों में बेचैनी देखा जा रहा है.
जहाँ एनडीए को डर है कि दलित वोट बैंक में सेंध लग सकता है
वहीं महागठबंधन को चिंता है कि पिछड़ा वर्ग का वोट अब बिखर सकता है.
कई सियासी विशेषज्ञ मानते हैं कि बसपा की मौजूदगी
तीसरे मोर्चे की राजनीति को फिर से जीवित कर सकता है.
अगर बसपा ने शुरुआती चरण में अच्छा प्रदर्शन किया
तो अगली बार बिहार की सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल सकता है.
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जनता का मूड: नया विकल्प या असली बदलाव?
ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक़,
बिहार के कई इलाकों में लोग अब तीसरे विकल्प की तलाश में हैं.
बसपा का एजेंडा — समानता, सम्मान और स्वाभिमान —
युवाओं और वंचित वर्ग के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.
राजनीति के जानकार कहते हैं कि
अगर बसपा ने इस ऊर्जा को संगठित रूप में बरकरार रखा,
तो वह न केवल कुछ सीटें जीतेगी,
बल्कि बिहार की पूरी सियासत की दिशा तय कर सकती है.
निष्कर्ष: बिहार की राजनीति में बसपा का बढ़ता प्रभाव
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण का शुरुआत कुछ हीदिनों में शुरू होने बाला है.
लेकिन बसपा ने यह साबित कर दिया है कि उसे नज़रअंदाज़ करना अब आसान नहीं है.
मायावती की रैली, संगठन की मजबूती और बहुजन एकता की रणनीति,
तीनों मिलकर बिहार की सियासत में नई कहानी लिख सकता हैं.
अब देखना यह है कि क्या बसपा सिर्फ चर्चा में रहेगी
या इस बार वाकई परिणामों के केंद्र में भी होगी.
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