सी. पी. सिन्हा का निधन: बिहार के समाजसेवी और अर्जक आंदोलन के स्तंभ को श्रद्धांजलि

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Advocate Ajit Kumar

बिहारतीसरा पक्ष आलेख
सी. पी. सिन्हा का निधन: बिहार के समाजसेवी और अर्जक आंदोलन के स्तंभ को श्रद्धांजलि

विधान परिषद तक का सफर और शिक्षा क्षेत्र में योगदान, समाजसेवा को समर्पित जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक

तीसरा पक्ष डेस्क, पटना: बिहार के प्रख्यात समाजसेवी, चन्देश्वर प्रसाद सिन्हा उर्फ सी. पी. सिन्हा, का शनिवार सुबह पटना के एम्स अस्पताल में निधन हो गया. वे लगभग 80 वर्ष थे। वे कुशवाहा समाज के सम्मानित नेता के साथ साथ अर्जक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता भी थे. अपने संपूर्ण जीवन को उन्होंने समाज सुधार, शिक्षा और समानता के लिए समर्पित कर दिया.

दिहुली से शुरू हुआ संघर्षमय सफर

सी. पी. सिन्हा का जन्म पटना जिले के दुल्हिन बाजार के पास दिहुली गांव में हुआ था. छात्र जीवन से ही वे अत्यंत मेधावी थे. सी. पी. सिन्हा साहब कुशवाहा समाज के अग्रदूत थे. उन्होंने एम.कॉम. की शिक्षा पूरी कर सेंट्रल बैंक में नौकरी प्राप्त की, लेकिन उनका झुकाव समाज सेवा की ओर अधिक था. यही कारण था कि उन्होंने आरंभ से ही सामाजिक सुधार को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया.

लंबा कद, तेजस्वी ललाट, ऊर्जा से भरे हुए व्यक्तित्व के धनी. जन्मभूमि दिहुली और कर्मभूमि समस्त बिहार. संघर्षों को जीवन का साथी बनाकर, मृदुभाषी स्वभाव के साथ उन्होंने समाज में जो योगदान दिया, वह अमिट है.

जगदेव प्रसाद के विचारों से प्रभावित होकर समाज जागरण

सी. पी. सिन्हा, बिहार का लेनिन कहे जानेवाले जगदेव प्रसाद के विचारों से प्रेरित होकर ब्राह्मणवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ सक्रिय हुए. उन्होंने अर्जक संघ के माध्यम से समता और सामाजिक न्याय का संदेश गांव-गांव तक पहुंचाया.

शिक्षा को बनाया परिवर्तन का माध्यम

उनकी सोच थी कि सामाजिक बदलाव की नींव शिक्षा से ही पड़ती है. इसी भावना से उन्होंने अपने गांव में जगदेव प्रसाद उच्च विद्यालय, दिहुली की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह विद्यालय आज भी उनकी प्रेरणा से समाज में ज्ञान का दीप जला रहा है.

राजनीतिक पहचान: बिहार विधान परिषद सदस्य

अपने समर्पण और संघर्षशीलता के कारण वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. यहां से उन्होंने समाज के हक और अधिकार की आवाज बुलंद की. उनका राजनीतिक जीवन भी वैचारिक स्पष्टता और सामाजिक सरोकार से जुड़ा रहा. 2001 के पंचायती चुनावों की चर्चाओं में भी उनका उत्साह देखने लायक था.विधान परिषद के सदस्य बनने के पहले वे किसान आयोग के अध्यक्ष भी रहे.

अंतिम समय तक समाज के लिए चिंतित

हमने पिछले 40-41 वर्षों तक उन्हें निकट से देखा और साथ काम किया . अंतिम दो वर्षों से वे लकवाग्रस्त थे, लेकिन मानसिक रूप से सक्रिय रहे. पंचायत चुनावों से लेकर सामाजिक मुद्दों तक, उनकी गहरी भागीदारी बनी रही. उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि समर्पण के आगे शारीरिक बाधाएं भी छोटी हो जाती हैं.

गांव-दिहुली का अमिट ऋण

सी. पी. सिन्हा का पैतृक गांव दिहुली आज उन्हें श्रद्धा से याद कर रहा है. उन्होंने गांव को जो पहचान दी, वह भविष्य में पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी. गांववासियों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके सपनों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया.

समाज में शोक की लहर, श्रद्धांजलि अर्पित

उनके निधन पर बिहार के जदयू नेताओं के साथ अन्य गणमान्य लोगो ने भी गहरी शोक प्रकट किये हैं. उनके निधन पर कुशवाहा समाज, अर्जक संघ और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने शोक जताया है.

“सी. पी. सिन्हा जैसे कर्मयोगी विरले होते हैं. उनका जीवन समाज को दिशा देने वाला था.” मैं उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ, अपना शीश झुकाकर उन्हें नमन करता हूँ.
उनके शोकसंतप्त परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएँ हैं. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह परिवार को इस दुःख को सहने की शक्ति दे.
मैं अपनी ओर से और अपने गाँव की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

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