बोले – सत्ता के लिए जाति चले तो नियम, हक की लड़ाई में जाति चले तो अपराध
तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ/नई दिल्ली,23 सितंबर –उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद जातिगत रैलियों और पुलिस रिकॉर्ड में जाति दर्ज करने पर रोक लगा दिया है. सरकार ने इस कदम को समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा फैसला बताया है.लेकिन इस आदेश को लेकर बहस तेज हो गया है.भीम आर्मी चीफ और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने इसे अधूरा और कागजी करार दिया है.उनका कहना है कि सिर्फ रैली रोकने और एफआईआर से जाति हटाने से समाज में बराबरी नहीं आने वाला है .
सरकार का नया आदेश क्या है?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में जातिगत आधार पर रैलियों और रिकॉर्ड रखने को अवैधानिक माना था. इसके बाद योगी सरकार ने तत्काल प्रभाव से आदेश जारी किया कि –
अब पुलिस एफआईआर में जाति का जिक्र नहीं होगा .
किसी भी जाति विशेष के नाम पर रैली आयोजित करने पर रोक रहेगी .
पुलिस रिकॉर्ड और अपराध मामलों में जातिगत पहचान का उल्लेख नहीं किया जाएगा .
सरकार का कहना है कि यह फैसला सामाजिक भेदभाव खत्म करने और सबको समान अधिकार देने की दिशा में एक ठोस कदम है .
चंद्रशेखर आज़ाद का बयान
भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद ने इस आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया दिया है .उन्होंने अपने एक्स, हैंडल पर लिखा:
“सत्ता के लिए जाति चले तो नियम, हक की लड़ाई में जाति चले तो अपराध!”
उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या केवल रैली और एफआईआर से जाति हटाने से ही जातिवाद खत्म हो जाएगा?
आज़ाद की मुख्य बातें:
जातिगत रैली रोकना अधूरा कदम है .
अगर सरकार सच में गंभीर है तो जाति आधारित सरनेम पर रोक लगाई जानी चाहिये .
सरकारी नियुक्तियों और अधिकारियों की पोस्टिंग में जातिगत भेदभाव खत्म होना जरूरी है .
बहुजन समाज की आवाज़ दबाने की साज़िश किया जा रहा है .
ये भी पढ़े :उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक रवैये के खिलाफ आजाद समाज पार्टी का सशक्त विरोध
ये भी पढ़े :नीतीश सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर माले का बड़ा सवाल
बहुजन समाज और विपक्ष की प्रतिक्रिया
आजाद का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है .बहुजन समाज से जुड़े कई संगठन इसे सही ठहराते हुए कह रहे हैं कि जातिवाद तभी खत्म होगा जब सरकार ठोस कदम उठाएगी .वहीं, विपक्षी दलों का आरोप है कि योगी सरकार का यह आदेश केवल दिखावे के लिए है और इसका असली असर समाज पर नहीं पड़ेगा .
क्या सिर्फ आदेश से खत्म होगा जातिवाद?
भारत जैसे देशो में जातिवाद एक बहुत हि गहरी सामाजिक समस्या है, जिसकी जड़ें सदियों पुरानी हैं,और वर्तमान में भी यह परम्परा कायम है . विशेषज्ञों का मानना है कि,
सिर्फ कागज़ी आदेश से जातिवाद खत्म नहीं होगा .
जब तक शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन में जातिगत भेदभाव पर रोक नहीं लगेगी, तब तक वास्तविक समानता संभव नहीं .
सरनेम और सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी जातिगत पहचान को खत्म किए बिना समाज में बदलाव मुश्किल है .
निष्कर्ष
योगी सरकार का यह आदेश निस्संदेह एक ऐतिहासिक कदम माना जा सकता है, लेकिन भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं का मानना है कि यह अधूरा है . उनका कहना है कि अगर सरकार जातिवाद को सच में खत्म करना चाहती है, तो सरनेम बैन, नियुक्तियों में भेदभाव खत्म करने और अधिकारियों की जातिगत पोस्टिंग पर रोक जैसे बड़े कदम उठाने होंगे .
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार आगे बढ़कर इन मुद्दों पर कठोर निर्णय लेती है या फिर यह आदेश केवल “कागजी खाना” बनकर रह जाता है .
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















