भीम आर्मी प्रमुख ने शिक्षा के नाम पर सरकार की कथनी और करनी पर उठाए सवाल
तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ 24 जुलाई :उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल लगातार उठता रहा हैं. लेकिन अब इस मुद्दे पर भीम आर्मी के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर आज़ाद ने सीधे योगी सरकार पर हमला बोला है. उन्होंने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ,एक्स हैंडल पर एक पोस्ट के जरिये राज्य सरकार के शराब नीति और शिक्षा नीति पर करारा तंज कसा है.
दारू की मधुशाला, ज्ञान की पाठशाला से आगे!
चंद्रशेखर ने कविता के रूप में अपनी बात रखते हुए लिखा कई कि,
बस्ती-बस्ती खुल रही अब दारू की मधुशाला
और दूर हो रही बच्चों से ज्ञान की पाठशाला.
जिस देश में ठेके नजदीक और स्कूल हों दूर
समझो वहां बेखबर हैं हाकिम, अंधे हैं दस्तूर.
इस पोस्ट में उन्होंने सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. उनका कहना है कि योगी सरकार ने कंपोजिट विद्यालय खोलने का वादा किया था. लेकिन असल में इसके जगह पर गांव-गांव में शराब की दुकानों का जाल बिछाया जा रहा है.
शिक्षा बनाम शराब: किसे मिल रही प्राथमिकता?
उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाकों में अब भी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की भारी संख्या में कमी है.सरकार ने कई बार दावा किया है कि कंपोजिट विद्यालय (जहां कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा एक ही परिसर में दी जा सके) खोला जायेगा.ताकि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके.
लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद का आरोप है कि इन स्कूलों की जगह पर कंपोजिट शराब की दुकानें खोलना सरकार की प्राथमिकताओं को उजागर करता है.उनका इशारा साफ है. राजस्व के लिए सरकार शिक्षा को पीछे धकेल रहा है.
ग्रामीण भारत में शिक्षा की गिरती स्थिति
2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में अभी भी बड़ी संख्या में बच्चे ऐसे हैं जिन्हें गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा नहीं मिल रहा है. वहीं दूसरी ओर.हर कस्बे और गांव के पास एक शराब की दुकान मौजूद है. जिससे यह सवाल उठता है कि क्या शिक्षा से ज्यादा मुनाफा कमाना सरकार की प्राथमिकता बन गया है?
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सामाजिक प्रतिक्रिया: समर्थन और आलोचना दोनों
चंद्रशेखर की यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है. कई यूज़र्स ने उनके बयान का समर्थन किया है. कुछ लोग इसे सियासी ड्रामा भी बता रहे हैं.लेकिन इतना तो तय है कि अब ‘शराब बनाम शिक्षा’ की ये लड़ाई सिर्फ सोशल मीडिया तक नहीं रहा यह गांव-गली तक पहुँच चुकी है.
सरकार का पक्ष क्या है?
अब तक इस मुद्दे पर योगी सरकार की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आया है. हालांकि सरकार पहले हि कह चुका है कि शराब से मिलने वाला राजस्व कई कल्याणकारी योजनाओं में उपयोग होता है. लेकिन विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि शिक्षा प्राथमिकता होता. तो स्कूलों का नेटवर्क पहले मजबूत होता.
निष्कर्ष: सवाल गंभीर हैं, जवाब कब मिलेगा?
चंद्रशेखर आज़ाद की यह टिप्पणी केवल एक कविता नहीं है बल्कि एक सच्चाई का बयान है. जिसमें आज के ग्रामीण भारत की शिक्षा और व्यवस्था की असल तस्वीर छिपा हुआ है..जब शराब की दुकान हर मोहल्ले के पास और स्कूल मीलों दूर हो. तो यह सवाल उठना लाज़मी है. हम कैसा समाज बना रहे हैं?

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