जिम्मेदारी तय करने की बजाय चुप बैठा है आयोग—क्या कोई दबाव में है?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 4 अगस्त: कांग्रेस नेता राजेश राम ने आज चुनाव आयोग से पारदर्शिता को लेकर बड़ा सवाल खड़ा किया है.उन्होंने कहा है कि पार्टी ने आयोग को पत्र लिखकर वोटर लिस्ट से हटाये गये नामों की विस्तृत जानकारी मांगा गया था. लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.
राजेश राम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा,
“हमने चुनाव आयोग को पत्र लिखे और सवाल पूछे, लेकिन उनकी तरफ से इसका जवाब नहीं आया”
उनके मुताबिक, पार्टी ने यह जानना चाहा था कि किन मतदाताओं को मृत घोषित किया गया, किन्हें स्थायी रूप से अनुपलब्ध पाया गया, और किनके नाम किसी कारणवश वोटर लिस्ट से हटाया गया. कांग्रेस ने यह भी मांग की थी कि इस संबंध में विस्तृत सूची पार्टी को उपलब्ध कराया जाये।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला आने वाले चुनावों से पहले एक बड़ा मुद्दा बन सकता है. खासकर जब विपक्ष लगातार ECI की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है. आइये समझते है बिस्तार से …
हमने पूछा, जवाब नहीं मिला: चुनाव आयोग की चुप्पी पर राजेश राम का तीखा हमला
कांग्रेस नेता राजेश राम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट कर चुनाव आयोग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा किये हैं. उन्होंने लिखा है कि,
“हमने चुनाव आयोग को पत्र लिखे और सवाल पूछे, लेकिन उनकी तरफ से इसका जवाब नहीं आया.”
उनका दावा है कि आयोग ने जिन लोगों को मृत घोषित किया, जो स्थायी रूप से अनुपलब्ध थे, या जिनके नाम बिना सूचना के वोटर लिस्ट से हटा दिया गया, उसकी विस्तृत सूची कांग्रेस पार्टी को दी जाए लेकिन उनकी जानकारी कांग्रेस पार्टी को अब तक नहीं दिया गया है.
कांग्रेस की मांग: वोटर लिस्ट से हटाए गए नामों की दें पूरी सूची
राजेश राम ने चुनाव आयोग से साफ तौर पर यह पूछा है:
- किस आधार पर मतदाताओं को मृत घोषित किया गया?
- क्या स्थायी रूप से अनुपस्थित लोगों को नोटिस भेजा गया?
- वोटर लिस्ट से हटाए गए नामों की आधिकारिक और सार्वजनिक सूची कब जारी होगा?
पार्टी का कहना है कि यह जनादेश की हत्या है.अगर बिना कारण या बिना प्रक्रिया के लाखों लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया.
चुनाव आयोग की निष्क्रियता: क्या लोकतंत्र की नींव हिल रही है?
अब तक चुनाव आयोग की तरफ से कोई बयान नहीं आया है. यह चुप्पी केवल संदेह को जन्म दे रहा है.क्या यह सब कुछ जानबूझकर किया गया? क्या कोई राजनीतिक दबाव है?
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यह वही आयोग है जिस पर निष्पक्षता की उम्मीद किया जाता है.लेकिन जब जनता का वोट ही लिस्ट से ग़ायब हो जाए और जवाबदेही से बचा जाए. तो सवाल उठेंगा ही.
यह सिर्फ डेटा नहीं, ये लोकतंत्र की आत्मा है — राजेश राम का बयान
राजेश राम का कहना है कि यह केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं है. बल्कि जनता के संवैधानिक अधिकार से जुड़ा मुद्दा है.
“अगर मतदाता सूची से नाम हटाना इतना आसान हो गया है और उसकी जानकारी तक छिपाया जाता है. तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है.”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस इस मामले को संसद, कोर्ट और जनता के बीच उठायेगा.
वोटर लिस्ट क्लीनिंग या राजनीतिक गेमप्लान? बड़ा सवाल यह है…
क्या वोटर लिस्ट की सफाई एक नियोजित राजनीतिक रणनीति है?
क्या यह सब कुछ विपक्षी मतदाताओं को हटाने का तरीका है?
क्या चुनाव आयोग दबाव में काम कर रहा है?
इन सवालों के जवाब न मिलना अपने आप में एक संवेदनशील संकेत है कि भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े स्तंभों में से एक,चुनाव आयोग,आज सवालों के घेरे में है.
निष्कर्ष: लोकतंत्र खतरे में है, जवाब ज़रूरी है
भारत में जब भी चुनाव होता है. हर वोट की कीमत होता है.अगर लोगों के नाम चुपचाप लिस्ट से हटा दिए जाएं और कोई जवाबदेही न हो. तो यह सिर्फ ग़लती नहीं है बल्कि संविधान के खिलाफ एक साजिश है.इसलिये ,कांग्रेस की मांग जायज़ है.और चुनाव आयोग को अब चुप्पी नहीं इस मामले पर जवाब देना चाहिये.

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