गोदी आयोग के जरिए लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश ?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 11 जुलाई: देश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि केंद्र सरकार ने गोदी आयोग के ज़रिए संविधान और लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है. यह बयान ऐसे समय में आया जब बिहार विधानसभा का चुनाव साल के अक्टूबर या नवंबर में होने वाली है. और राजनीतिक विमर्श का पारा लगातार चढ़ता जा रहा है.
गोदी आयोग क्या है? विपक्ष के आरोपों की पृष्ठभूमि
RJD के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में गठित कुछ समितियाँ और आयोग निष्पक्षता से हटकर काम कर रहा हैं. पार्टी का दावा है कि ये आयोग एक खास विचारधारा को बढ़ावा देने, और संवैधानिक संस्थाओं को सरकार के नियंत्रण में लाने के लिए बनाया गया है.
RJD के आधिकारिकसोशल मीडिया एक्स हैंडल से जारी बयान में कहा गया कि “मोदी और संघ मिलकर ‘गोदी आयोग’ के माध्यम से संविधान और लोकतंत्र को खत्म करना चाहते हैं.
आरजेडी ने इस कथन के माध्यम से केंद्र सरकार पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी करने और संस्थागत संतुलन को बिगाड़ने का आरोप लगाया है.
क्या वाकई खतरे में है लोकतंत्र?
आरजेडी का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक स्टैंड नहीं है. यह देश की लोकतांत्रिक प्रकृति पर एक गहरा सवाल भी खड़ा करता है. विश्लेषकों का मानना है कि जब सत्तारूढ़ सरकार की ओर से गठित आयोगों की निष्पक्षता पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा हो तो यह केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं मानी जा सकता है.
लोकतंत्र, संविधान और न्यायिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को लेकर उठी चिंताएं अब जनचर्चा का हिस्सा बन चूका हैं.
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सत्ता बनाम संविधान: क्या देश के सामने खड़ी हो रही है वैचारिक चुनौती?
आरजेडी के बयान में सीधे तौर पर मोदी सरकार और आरएसएस के विचारधारा को निशाना बनाया गया है. पार्टी का तर्क है कि यह संस्थाएँ देश के धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी संविधान को कमजोर करना चाहती हैं ताकि अपने एजेंडे को आसानी से लागू किया जा सके.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि:
- ऐसे बयानों से चुनावी ध्रुवीकरण बढ़ सकता है
- जनता के बीच संविधान और लोकतंत्र को लेकर संवाद तेज़ हो सकता है
- सरकारी नीतियों की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं
आगे की राह: विपक्ष के रणनीति और जन भागीदारी
आरजेडी ने सभी विपक्षी दलों और जागरूक नागरिकों से अपील किया है कि वे एकजुट होकर इस तथाकथित “संवैधानिक हमले” का विरोध करें. पार्टी का मानना है कि यह सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं है बल्कि भारत के लोकतांत्रिक भविष्य की रक्षा की यह लड़ाई है.
निष्कर्ष: यह बहस जरूरी है
राजद के “गोदी आयोग” वाले बयान ने एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है क्या संवैधानिक संस्थाएं निष्पक्ष बनी हुई हैं या वे सत्ता के दबाव में काम कर रहा हैं? यह सवाल अब न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है बल्कि आम जनता भी इन मुद्दों को लेकर जागरूक होते दिख रहा है.आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इन आरोपों पर क्या प्रतिक्रिया देती है.

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