पूर्णिया में अंधविश्वास की आग में झुलसा एक दलित-आदिवासी परिवार

| BY

Ajit Kumar

बिहार
पूर्णिया में अंधविश्वास की आग में झुलसा एक दलित-आदिवासी परिवार

पूर्णिया की टेटगामा में:डायन बताकर एक ही परिवार के 5 लोगों की नृशंस हत्या

तीसरा पक्ष ब्यूरो पूर्णिया,11 जुलाई:भाकपा-माले जांच दल की रिपोर्ट के अनुसार,पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में 6 जुलाई की रात जो कुछ हुआ उसने न सिर्फ इंसानियत को झकझोर कर रख दिया बल्कि बिहार में आज भी फैले अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों की भयावह तस्वीर को उजागर कर दिया है. एक ही परिवार के पांच लोगों को “डायन” बताकर पहले पीटा गया और फिर उसको जिंदा जलाकर मार दिया गया. इस हृदयविदारक जनसंहार के बाद गांव में सन्नाटा सा पसरा है और पीड़ित परिवार खौफ के साए में जी रहा है.

अंधविश्वास बना हत्या का हथियार

घटना की शुरुआत एक मासूम बच्चे की मौत से हुई. इलाज के अभाव में 10 वर्षीय बच्चा इस दुनियां से चल बसा और उसी शाम गांव में फुसफुसाहट शुरू हो गई कि इनके कारण ही सब हो रहा है. अब इन्हें खत्म करना होगा.कुछ दिन बाद जब एक और बच्चा पेट दर्द से कराहता मिला तो दोष मृतक परिवार की महिला पर डाल दिया गया.गांव में डायन कहकर उसे निशाना बनाया गया और फिर जो घटना हुआ वह मानवता के नाम पर कलंक है.

जिंदा जलाए गए लोग सब एक ही परिवार के सदस्य थे

  • कातो देवी (75 वर्ष) – परिवार की बुजुर्ग महिला
  • बाबूलाल उरांव (55 वर्ष) – कातो देवी के पुत्र
  • सीता देवी – बाबूलाल की पत्नी
  • मंजीत उरांव (25 वर्ष) – बाबूलाल का बेटा
  • रानी देवी (23 वर्ष) – मंजीत की पत्नी

आरोपियों के नाम सामने आए

जांच के दौरान गांव के जिन आरोपियों के नाम सामने आया है वह इस प्रकार है

  • रामदेव उरांव
  • छोटुआ उरांव
  • नकुल उरांव
  • संतलाल उरांव
  • केशव उरांव

इन सभी लोगो ने, स्थानीय लोगों के अनुसार भीड़ को उकसाया और खुद भी हिंसा में शामिल हो गया. भीड़ ने पांचों लोगों को खींचकर मारा और जिंदा आग के हवाले उसको कर दिया.शवों को गायब करने की कोशिश भी किया गया. जिन्हें बाद में खोजी कुत्ते की मदद से शवों को बरामद किया गया.

बचे हुए परिजन और गवाह डरे हुए हैं

कातो देवी के चार बेटे—खुबीलाल, अर्जुन, जितेंद्र और जगदीश—जिंदा हैं लेकिन वह डरे हुए हैं. उन्हें लगातार धमकियां मिल रहा हैं:
“अगर गवाही दोगे, तो तुम्हें भी आग में झोंक देंगे.”

प्रमुख चश्मदीद सोनू उरांव की जान को भी गंभीर खतरा है.

भाकपा-माले की प्रमुख मांगें

  • सभी अपराधियों की अविलंब गिरफ्तारी और सख्त सजा.
  • गवाहों, खासकर सोनू उरांव की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.
  • पीड़ित परिवार को ₹50 लाख का मुआवजा दिया जाए.
  • सोनू उरांव को सुरक्षित स्थान पर पक्का मकान दिया जाए.
  • डायन प्रताड़ना विरोधी कानून तत्काल प्रभाव से लागू हो.
  • गांव में सड़क, बिजली, पानी और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं.
  • राज्य स्तर पर अंधविश्वास विरोधी जागरूकता अभियान चलाया जाए.

केवल अंधविश्वास नहीं, यह था एक सुनियोजित जनसंहार

भाकपा-माले जांच दल का मानना है कि यह घटना सिर्फ अंधविश्वास नहीं है बल्कि दलित-आदिवासी समुदायों पर किया गया सामाजिक हमला था.जिस तरीके से भीड़ को उकसाया गया और पीड़ितों को योजनाबद्ध ढंग से मार डाला गया वह साबित करता है कि यह एक संगठित हिंसा था.

78 साल की आज़ादी के बाद भी टेटगामा जैसे गांवों में विकास और शिक्षा का घोर अभाव है.जिसकी वजह से अंधविश्वास पनपता है और कमजोर तबकों को उसका शिकार बनाया जाता है.

अब जरूरी है जवाबदेही

भाकपा-माले ने राज्य सरकार से मांग किया है कि वह इस त्रासदी को सिर्फ एक घटना न मानते हुए इसे सामाजिक न्याय और मानवाधिकार का सवाल माने और न्याय की दिशा में तेज़ और ठोस कार्रवाई करे.यह घटना न सिर्फ एक गांव की कहानी है. बल्कि पूरे समाज के सामने खड़ा हुआ सवाल है कि क्या हम 21वीं सदी में भी इंसानियत से दूर, अंधविश्वास और हिंसा की अंधी गली में भटकते रहेंगे?

नोट:यह रिपोर्ट भाकपा-माले जांच दल की तथ्यों पर आधारित निष्कर्षों के आधार पर तैयार किया गया है.

Trending news

Leave a Comment