चुनाव आयोग बना सत्ता का हथियार? प्रियंका गांधी के 5 सवालों से मचा बवाल

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Ajit Kumar

भारततीसरा पक्ष आलेख
चुनाव आयोग बना सत्ता का हथियार? प्रियंका गांधी के 5 सवालों से मचा बवाल

चुनाव आयोग भाजपा के एजेंट की तरह बर्ताव क्यों कर रहा है आयोग?

तीसरा पक्ष ब्यरो नई दिल्ली, 9 अगस्त 2025 –देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़ा हो गया हैं,क्या भारत का लोकतंत्र खतरे में है?जब देश का चुनाव आयोग ही सवालों के घेरे में आ जाये जब निष्पक्षता की जगह पक्षपात का संदेह गहराने लगे और जब विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश की जाये — तब सवाल उठता है कि, क्या देश की लोकतांत्रिक नींव हिल रहा है?

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने आधिकारिक सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर एक ऐसा बयान दिया है. जिसने पूरे सियासी गलियारों में हलचल मचा दिया है. उन्होंने चुनाव आयोग पर सीधे-सीधे पांच गंभीर आरोप लगाये जो केवल चुनाव प्रक्रिया ही नहीं बल्कि पूरे लोकतंत्र की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गहरा सवाल खड़ा करता हैं.

प्रियंका गांधी का यह हमला केवल एक राजनेता का बयान नहीं है — यह उन करोड़ों भारतीयों की चिंता है जो अपने मत से लोकतंत्र को जिंदा रखता हैं.

आइए, आगे जानते हैं उन पांच बड़े सवालों के बारे में,जिन्होंने न केवल चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली बल्कि सत्तारूढ़ सरकार की नीयत पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया है जिनसे हिल गया है सत्ता और चुनाव आयोग का तंत्र…

क्यों छिपाई जा रही है डिजिटल वोटर लिस्ट? पारदर्शिता से क्यों डर रहा है आयोग?

प्रियंका गांधी ने पहला सवाल बेहद सटीक और स्पष्ट शब्दों में किया है — भारत की जनता को मशीन द्वारा पढ़ी जा सकने वाली डिजिटल वोटर लिस्ट क्यों नहीं दी जा रही है ?

डिजिटल भारत का सपना दिखाने वाली सरकार और चुनाव आयोग इस बुनियादी पारदर्शिता से क्यों कतरा रहा हैं? एक साफ-सुथरी सार्वजनिक रूप से एक्सेसिबल वोटर लिस्ट चुनाव में निष्पक्षता की रीढ़ होता है.अगर सब कुछ ठीक है.तो इसे छिपाया क्यों जा रहा है?

मतदान के वीडियो सबूत नष्ट क्यों हो रहे हैं? क्या कुछ छिपाया जा रहा है?

प्रियंका गांधी का दूसरा सवाल और भी बड़ा धमाका है — आप मतदान से जुड़े वीडियो सबूत क्यों नष्ट कर रहे हैं?

यह सवाल न सिर्फ चुनाव आयोग पर बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र पर संदेह पैदा करता है.आखिर वोटिंग प्रक्रिया के वीडियो फुटेज मिटाना किस बात का संकेत है? क्या इसमें धांधली की बू है? क्या लोकतंत्र की नींव को मिटाया जा रहा है?

वोटर लिस्ट में गड़बड़ी – क्या यह सुनियोजित चुनावी खेल है?

तीसरा सवाल था कि — चुनाव आयोग वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी क्यों कर रहा है?

देश के कई हिस्सों से फर्जी नाम डुप्लिकेट एंट्री और फर्जीवाड़े की शिकायतें सामने आ चुका हैं. लाखों नाम बिना सूचना के काटे गये. क्या यह सब महज संयोग है. या फिर किसी खास पार्टी को फायदा पहुंचाने की एक साजिश है ?

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विपक्ष को धमकाना – आयोग का काम या सत्ता का हथियार बनना?

प्रियंका गांधी का चौथा सवाल सीधे लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट करता है — चुनाव आयोग सवालों का जवाब देने के बजाय विपक्ष को धमका क्यों रहा है?

जब देश का विपक्ष सवाल करता है तो उसका जवाब तर्क से देना लोकतंत्र की ताकत है. न कि धमकी देना.आयोग अगर स्वतंत्र है तो सवालों से डरता क्यों है?

चुनाव आयोग भाजपा का एजेंट क्यों बन गया है? – सबसे बड़ा सवाल

और आखिर में प्रियंका गांधी ने वो सवाल पूछ दिया जो हर जागरूक नागरिक के मन में कहीं न कहीं छिपा बैठा है —
चुनाव आयोग भाजपा के एजेंट की तरह व्यवहार क्यों कर रहा है?

क्या भारत का लोकतंत्र अब निष्पक्ष संस्थाओं के बिना चलाया जाएगा? क्या चुनाव आयोग अब सत्तारूढ़ दल की कठपुतली बन चुका है?

निष्कर्ष: देश पूछ रहा है – लोकतंत्र सुरक्षित है या खतरे में?

प्रियंका गांधी के इन पांच सवालों ने सत्ता और प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर दिया है.अगर चुनाव आयोग इन सवालों का जवाब नहीं देता है तो यह चुप्पी खुद एक बहुत बड़ा जवाब बन जायेगा.

इस समय भारत को पारदर्शिता जवाबदेही और निर्भीक चुनाव आयोग की जरूरत है — न कि एक ऐसे सिस्टम की जो सत्ताधारी दल की मर्ज़ी से चले.

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