पटना से बड़ी खबर: चुनाव आयोग पर माले का तीखा हमला
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 5 अक्टूबर 2025 — माले (माक्र्सवादी लेनिनवादी) के महासचिव श्री दीपंकर भट्टाचार्य ने एक त्वरित प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि चुनाव आयोग अपनी ही पीठ थपथपा लेने का आचरण करता है, लेकिन राजनीतिक दलों के बारे में झूठे दावे अवैध और अनुचित हैं. उन्होंने यह आरोप लगाया कि आयोग यह बताने में विफल है कि उन दलों को धन्यवाद क्यों देना चाहिए, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया और SIR (संशोधित मतदाता सूची) के विरुद्ध संघर्ष किया है.
पटना में राजनीतिक दलों के साथ हुई एक बैठक में आयोग ने यह कह दिया कि “सभी दलों ने SIR के लिए बधाई दिया है .हालांकि, भाकपा(माले) का शिष्टमंडल कल हुई इसी बैठक में उपस्थित रहा और उन्होंने आयोग की लापरवाही और झूठे बयानों की अविलंब जवाबदेही मांगी.
नीचे ज्ञापन की मुख्य मांगों और सुझावों को जोड़ते हुए यह लेख उन बिंदुओं पर प्रकाश डालता है, जो चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और आम जनता के अधिकार संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक हैं.
ज्ञापन की प्रमुख मांगें एवं सुझाव
हटाए गए मतदाताओं की सूची और कारण सहित विवरण
संशोधित (final) सूची में 3,66,000 नामों को मतदाता सूची से बाहर किया गया है — लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ये नाम किस आधार पर हटाया गया है. भाकपा(माले) आयोग से मांग करता है कि इन हटाए गए नामों की पूरी सूची — प्रत्येक नाम, कारण व बूथ वार विवरण — सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाये .सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 65 लाख नामों पर जो विवरण दिया गया था, उसी तरह इस सूची की भी जानकारी जनता को मिलनी चाहिये .
जोड़े गए नामों का विस्तृत विवरण
फाइनल सूची में लगभग 21 लाख नाम जोड़े गए हैं — जिनमें दो प्रकार के मतदाता शामिल हैं: (क) पूरी तरह नए मतदाता, (ख) वे वर्तमान मतदाता जिन्हें ड्राफ्ट सूची से गलती के कारण बाहर किया गया था और फिर दावा-आपत्ति (claim-objection) के बाद वापस शामिल किया गया. इन दोनों प्रकार के नामों की बूथवार सूची व सामंजस्यपूर्ण विवरण सार्वजनिक करना आवश्यक है ताकि विश्वास कायम हो सके.
महिला मतदाताओं की गिरावट — अनुपात में असंगति
बिहार की जनगणना के अनुसार पुरुष/महिला अनुपात 914 है, लेकिन SIR सूची में यह अनुपात 892 दिखाया गया है, जो स्पष्ट रूप से महिलाओं की संख्या में गिरावट का संकेत देता है. आयोग से मांग है कि इस अंतर का स्पष्टीकरण दिया जाए — कौन सा फ़िल्टर या प्रक्रिया इस गिरावट का कारण बनी?
नागरिकता संदिग्ध नामों की सूची व आधार
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि लगभग 6,000 व्यक्तियों की नागरिकता संदिग्ध बताई जा रही है. यदि यह तथ्य है, तो इन लोगों की सूची, उनके नाम और वह आधार (जैसे दस्तावेज, निवास प्रमाण, असंगत जानकारी आदि) सार्वजनिक किया जाना चाहिए.जनहित में यह जानकारी निहायत आवश्यक है ताकि अनुचित कटाव या भेदभाव की संभावना समाप्त हो सके.
दो चरणों में चुनाव कराने की माँग
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे बड़े राज्य में यदि कई चरणों में चुनाव कराए जाते हैं, तो यह पार्टियों के लिए भारी बोझ बन जाता है — आर्थिक, प्रबंधन और श्रम की दृष्टि से. अतः भाकपा(माले) का सुझाव है कि यह चुनाव केवल दो चरणों में संपन्न कराए जाएँ — जिससे संसाधनों की बचत हो और प्रक्रिया सरल बनी रहे.
पर्याडिंग अधिकारी नियुक्ति में भेदभाव की जांच
कई जिलों से यह सूचना मिली है कि वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर कमीश्निंग या पर्याडिंग अधिकारी (officer-in-charge) की जिम्मेदारी कमस्तर अधिकारियों को दी जा रही है. विशेषकर भोजपुर से आरोप है कि दलित, मुस्लिम या कमजोर समुदायों से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों को नजरअंदाज कर वर्चस्व समूहों के लोगों को यह ज़िम्मेदारी दी जा रही है. आयोग से अनुरोध है कि पूरे राज्य में इस प्रकार की नियुक्तियों की तत्काल जांच करवाई जाए और अगर किसी अनुचित प्रक्रिया की पुष्टि हो तो उसे अविलंब रोका जाए.
17C फॉर्म की गारंटी करें
मतदाता सुरक्षा व निगरानी के लिए मतदान दिवस पर पोलिंग एजेंटों को 17C फॉर्म देना आवश्यक है — लेकिन अक्सर यह फॉर्म समय पर नहीं मिलता. इस त्रुटि से पूरे मतदान प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठते हैं.आयोग को इसे सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बूथ पर पोलिंग एजेंट को 17C फॉर्म मिले और इस पर सख्ती लागू हो.
कमजोर समुदायों के लिए बूथ निर्माण
हालाँकि बूथों की संख्या बढ़ाई गई है, फिर भी दलित, मुस्लिम और अन्य कमजोर वर्गों को उनके ही मुहल्ले में बूथ नहीं मिल पाते.आयोग से आग्रह है कि बूथ निर्माण आयोगीय दृष्टि से न्यायसंगत और समान रूप से हो, और यदि सरकारी भवन न हो, तो चलन्त बूथ स्थापित किए जाएं ताकि सभी को मतदान की सुविधा मिल सके.
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निष्कर्ष: जनता का भरोसा ही लोकतंत्र की नींव
भाकपा(माले) का यह ज्ञापन यह संदेश देता है कि चुनाव आयोग को जनता व पार्टियों के प्रति पूर्ण पारदर्शी और जवाबदेह होना चाहिए. SIR सूची में बदलाव, मतदाताओं का कटाव-जोड़ाव, महिला अनुपात में गिरावट, नागरिकता संबंधी शंकाएँ — ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जो आम मतदाता के मन में संशय पैदा करते हैं.
लोगों का भरोसा तभी बचा रहेगा जब चुनाव आयोग समय रहते इन मांगों पर व्याख्या, सुधार और सार्वजनिक जवाबदेही प्रस्तुत करेगा.भाकपा(माले) की ये मांगें सिर्फ एक दल की नहीं, बल्कि समग्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा की आवाज़ हैं.

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