अब तक कितने विदेशी नागरिकों के नाम सूची में मिले इस पर आयोग ने कोई जानकारी नहीं दी
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 1 अगस्त: बिहार की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब चुनाव आयोग द्वारा आयोजित राजनीतिक दलों की बैठक में इंडिया गठबंधन द्वारा उठाए गए कई महत्वपूर्ण सवालों का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया. इस बैठक में शामिल दलों ने मतदाता सूची से जुड़े कई गंभीर मुद्दों को उठाया.लेकिन आयोग की ओर से ज़्यादातर सवालों पर चुप्पी ही बना रहा .
चुनाव आयोग ने नहीं दिया स्पष्ट जवाब
राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि गठबंधन ने आयोग से यह स्पष्ट करने को कहा कि जनवरी 2025 में प्रकाशित मतदाता सूची से जिन 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गये है.उनके हटाने का आधार क्या रहा? क्या उन्हें मृत घोषित किया गया. क्या वे स्थानांतरित हो गए. या फिर दोहरी प्रविष्टियों के कारण उनका नाम हटा दिया गया? इससे भी महत्वपूर्ण यह रहा कि क्या मतदाता सूची से नाम हटाने से पहले संबंधित व्यक्तियों को नोटिस भेजा गया. जैसा कि चुनाव प्रतिनिधित्व अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है?
इस पर चुनाव आयोग कोई स्पष्ट या दस्तावेज़ आधारित उत्तर नहीं दे सका है.
विदेशी नागरिकों पर भी बना रहस्य
इंडिया गठबंधन की ओर से यह भी पूछा गया कि अब तक कितने विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में पाया गया है.आयोग इस सवाल पर भी जवाब देने से बचता नजर आया है.
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दस्तावेज़ों के अभाव में मतदाता अधिकार से वंचित होंगे लाखों लोग
गठबंधन के नेताओं ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि प्रारूप मतदाता सूची में जिन लोगों के नाम दर्ज हुआ है.उनमें लाखों ऐसे मतदाता हैं जो आयोग द्वारा अधिसूचित 11 वैध दस्तावेजों में से कोई भी प्रस्तुत नहीं कर पाया है. ऐसे में यदि दस्तावेज़ न होने के कारण उनके नाम अंतिम सूची से हटा दिए जाता हैं. तो यह सीधे-सीधे उनके संवैधानिक मताधिकारों का उल्लंघन होगा.
ज्ञापन सौंपा गया, दस बिंदुओं पर मांगे जवाब

बैठक के दौरान इंडिया गठबंधन के प्रतिनिधियों ने चुनाव आयोग को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें दस प्रमुख बिंदुओं पर स्पष्ट जवाब की मांग किया गया है.

इस बैठक में राजद से चित्तरंजन गगन, मदन शर्मा और मुकुंद सिंह, सीपीआई (माले) से कुमार परवेज, कांग्रेस की ओर से मुनन जी और संजय भारती, जदयू की ओर से अनिल कुमार, भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे.
बैठक ने यह साफ कर दिया कि आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर विपक्षी दलों में गहरी चिंता है.और चुनाव आयोग की चुप्पी इन आशंकाओं को और गहरा कर रहा है.
निष्कर्ष
इस बैठक ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या चुनावी प्रक्रिया में सभी नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पारदर्शिता और जवाबदेही है? यदि नहीं तो यह लोकतंत्र की बुनियाद पर एक बड़ा सवालिया निशान है.

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