आपातकाल: लोकतंत्र पर सबसे बड़ा प्रहार:डॉ. दिलीप जायसवाल

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Ajit Kumar

बिहार
आपातकाल: लोकतंत्र पर सबसे बड़ा प्रहार:डॉ. दिलीप जायसवाल

इतिहास का वह पन्ना है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 29 जून:भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय ‘आपातकाल’ की 50वीं वर्षगांठ पर भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा पटना के विद्यापति भवन में ‘मॉक पार्लियामेंट’ का आयोजन किया गया. इस मौके पर वक्ताओं ने आपातकाल की विभीषिका को याद करते हुए वर्तमान पीढ़ी को उस दौर की सच्चाई से रूबरू कराने की आवश्यकता पर बल दिया.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल ने तीखे शब्दों में कहा कि “आपातकाल के दौरान देश का संविधान एक परिवार की सत्ता की भूख की बलि चढ़ गया. उस दौर में लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलते हुए तानाशाही थोप दी गई.

आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में धक्का था:डॉ. जायसवाल

आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में धक्का था:डॉ. जायसवाल

डॉ. जायसवाल ने कहा कि आपातकाल केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा धक्का था, जिससे देशवासी दशकों तक उबरते रहे.उस अंधेरे दौर की यादें आज भी जनता के मन में बुरे सपने की तरह ताजा हैं. यह इतिहास का वह पन्ना है, जिसे चाह कर भी मिटाया नहीं जा सकता.

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उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वर्तमान पीढ़ी, जो उस दौर से अंजान है, उसे उस समय की क्रूर सच्चाई से अवगत कराना बेहद जरूरी है ताकि भविष्य में कोई भी लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके. पचास साल का यह कालखंड दो पीढ़ियों के बराबर है. इन पीढ़ियों को यह समझाना जरूरी है कि सत्ता के लालच में किस प्रकार लोकतंत्र को कुचला गया था.

इतिहास का वह पन्ना है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता

डॉ. जायसवाल ने कांग्रेस पार्टी पर सीधा निशाना साधते हुए कहा की जिस पार्टी ने देश की लोकतांत्रिक रीढ़ को कुचल डाला, आज वही संविधान की रक्षा की बात कर रही है — यह सबसे बड़ा राजनीतिक धोखा है.

कार्यक्रम में उपस्थित उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव, मंत्री नितिन नवीन और भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष भारतेन्दु मिश्रा समेत अनेक गणमान्यजनों ने भी विचार व्यक्त किए.

इस आयोजन के दौरान एक क्विज प्रतियोगिता का भी आयोजन हुआ, जिसमें विजेताओं को डॉ. दिलीप जायसवाल ने सम्मानित किया. कार्यक्रम का उद्देश्य था युवा पीढ़ी को इतिहास के उस काले अध्याय से परिचित कराना, ताकि वे लोकतंत्र की कीमत को समझ सकें और संविधान की रक्षा के लिए सदैव सजग रहें.

निष्कर्ष:

आपातकाल के 50 साल बीत जाने के बावजूद वह दौर भारतीय राजनीति और जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ गया है. ऐसे आयोजनों के माध्यम से न केवल इतिहास की सही तस्वीर सामने आती है, बल्कि नई पीढ़ी को लोकतंत्र की अहमियत भी समझ में आती है.

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